
दो बच्चों की मां मोना अग्रवाल (mona agarwal) हर दिन निशानेबाजी परिसर में उस समय भावुक हो जाती थी, जब उनके बच्चे वीडियो कॉल पर मासूमियत से यह समझते थे कि वह घर वापस आने का रास्ता भूल गई हैं और उन्हें वापस लौटने के लिए जीपीएस की मदद लेनी होगी. पहली बार पैरालंपिक खेलों में भाग ले रही 37 साल की मोना ने शुक्रवार को महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल में कांस्य पदक जीता. वह काफी समय तक स्वर्ण पदक की दौड़ में बनी हुई थी जो अंततः भारत की अवनि लेखरा (Avnil Lekhara) के पास गया. अपने बच्चों से दूर रहने और यहां तक कि वित्तीय समस्याओं का सामना करने के संघर्षों से गुजरने के बाद मोना ने पैरालंपिक में पदक जीतने का अपना सपना पूरा किया.
𝐁𝐑𝐄𝐀𝐊𝐈𝐍𝐆: 𝐆𝐎𝐋𝐃 & 𝐁𝐫𝐨𝐧𝐳𝐞 𝐦𝐞𝐝𝐚𝐥 𝐟𝐨𝐫 𝐈𝐧𝐝𝐢𝐚 𝐢𝐧 𝐒𝐡𝐨𝐨𝐭𝐢𝐧𝐠 𝐚𝐭 𝐏𝐚𝐫𝐢𝐬 𝐏𝐚𝐫𝐚𝐥𝐲𝐦𝐩𝐢𝐜𝐬
— India_AllSports (@India_AllSports) August 30, 2024
Avani Lekhara wins GOLD & Mona Agarwal wins Bronze medal in 10m Air Rifle Standing SH1 (Shooting). #Paris2024 #Paralympics2024 pic.twitter.com/C897FJPuQS
मोना ने मीडिया को बताया, ‘जब मैं अभ्यास के लिए जाती थी तो अपने बच्चों को घर पर छोड़ना पड़ता था. इससे मेरा दिल दुखता था. मैं हर दिन उन्हें वीडियो कॉल करती थी और वे मुझसे कहते थे, ‘मम्मा आप रास्ता भूल गयी हो, जीपीएस पर लगा के वापस आ जाओ. मैं अपने बच्चों से बात करते समय हर शाम रोती थी. फिर मैंने उन्हें सप्ताह में एक बार फोन करना शुरू कर दिया.' मोना ने अन्य बाधाओं के बीच वित्तीय कठिनाइयों का सामना करने को भी याद किया.
सिर्फ ढाई साल पहले ही शुरुआत की
उन्होंने कहा, ‘वह मेरा सबसे मुश्किल समय में से एक था, वित्तीय संकट एक और बड़ी समस्या थी. मैंने यहां तक पहुंचने के लिए वित्तीय तौर पर काफी संघर्ष किया है. मैं आखिरकार सभी संघर्षों और बाधाओं से पार पाकर पदक हासिल करने में सक्षम रही. मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है.' मोना ने कहा, ‘यह मेरा पहला पैरालंपिक है. मैंने ढाई साल पहले ही निशानेबाजी शुरू की थी और इस अवधि के अंदर पदक जीतना शानदार रहा.'
Mona Agarwal brings home India's first medal at the Paris Paralympics 2024.
— The Bharat Army (@thebharatarmy) August 30, 2024
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कई साल पहले घर छोड़ दिया था
पोलियो से पीड़ित मोना ने कहा कि उन्होंने खेलों में अपना करियर बनाने के लिए 2010 में घर छोड़ दिया था लेकिन 2016 तक उन्हें नहीं पता था कि पैरालंपिक जैसी प्रतियोगिताओं में उनके लिए कोई गुंजाइश है. उन्होंने कहा, ‘मुझे 2016 से पहले पता नहीं था कि हम किसी भी खेल में भाग ले सकते हैं. जब मुझे अहसास हुआ कि मैं कर सकती हूं, तो मैंने खुद को यह समझने की कोशिश की कि मैं अपनी दिव्यांगता के साथ खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हूं. मैंने तीन-चार खेलों में हाथ आजमाने के बाद निशानेबाजी को चुना.'
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