लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में बिहार का राजनीतिक परिणाम कई कारणों से चौंकाने वाला रहा. पहला किसी को इस बात का अंदाज नहीं था कि पूरा विपक्ष मात्र एक सीट जीत पाएगा. लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा दो दल भाजपा और लोक जनशक्ति का शत प्रतिशत स्ट्राइक रेट. लेकिन जनता दल जिसने 17 में से 16 सीटें जीती. कुछ सीटें जीतकर बिहार की राजनीति का भूगोल ही बदल दिया हैं. आइए जानते हैं कि ये कौन सी सीटें हैं और वहां क्या ऐसी खास बात हुई.
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1. कटिहार लोकसभा: इस सीट से जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर डॉक्टर दुलाल चंद गोस्वामी क़रीब साठ हज़ार के अंतर से कांग्रेस पार्टी के तारिक अनवर को हराया. गोस्वामी अति पिछड़ी जाति से आते हैं और पिछले विधानसभा के चुनाव में वह हार गए थे. यह पहली बार है जब कोई अति पिछड़ी जाति से इस सीट से सांसद चुना गया है और माना जाता है कि ये सीट जनता दल यूनाइटेड के खाते में आने के कारण ही गोस्वामी प्रत्याशी को यहां से टिकट मिला और वो जीते भी. इस सीट पर या तो तारीक अनवर जीते थे या भारतीय जनता पार्टी से अगड़ी जाति से आने वाले निखिल चौधरी.
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2. भागलपुर: इस सीट से भी जो भारतीय जनता पार्टी का एक परंपरागत सीट माना जाता था, पहली बार जनता दल यूनाइटेड चुनाव लड़ रही थी और उसमें राजद के बुलो मंडल जो अति पिछड़ी समुदाय के कम गंगोता जाति से आते हैं, उनके सामने अजय मंडल को मैदान में उतारा. हालांकि, अजय मंडल की अपनी व्यक्तिगत छवि बहुत अच्छी नहीं रही लेकिन गंगोता उम्मीदवार के सामने भंगुरता जाति के ही उम्मीदवार को उतारकर यह सीट लाख के अधिक के अंतर से जनता दल यूनाइटेड जीती और अब भविष्य की राजनीति में यह तय माना जा रहा है कि वे इस सीट पर लड़ाई अति पिछड़ी समुदाय के ही दो उम्मीदवारों के बीच में इस चुनाव के तरह ही होगा इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर शाहनवाज़ हुसैन चुनाव जीते थे या जनता दल या राजद के टिकट पर चुन चुन यादव.
3. जहानाबाद सीट: इस सीट का राजनीतिक इतिहास बृहस्पतिवार को चुनाव परिणाम के पहले यही रहा था कि जीतने वाला उम्मीदवार या तो यादव जाति से होता था या भूमिहार जाति से, लेकिन नीतीश कुमार ने इस चुनाव में अति पिछड़ी जाति के चंदेश्वर प्रसाद चन्द्रवंशी को मैदान में उतारकर एक तरह से नई रेखा खींच दी. चंद्रवंशी मात्र कुछ हज़ार बोर्ड से चुनाव तो जीत गए लेकिन उनकी जीत सुनिश्चित करने में नीतीश कुमार को काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ी और उन्हें इस बात का बार-बार आभास दिलाया गया कि उनके इस निर्णय से भूमिहार जाति के मतदाताओं में काफ़ी रोष है लेकिन अब देखना यह है कि नीतीश कुमार इस जीत के बाद इस सीट पर इस अपने नए राजनीतिक एक्सपेरिमेंट को बरकरार रखते हैं या फिर पुराने ढर्रे पर किसी अगड़ी जाति के उम्मीदवार को मौक़ा देते हैं.
4. सीतामढ़ी: इस सीट पर चुनाव के बीच में नीतीश कुमार को अपना प्रत्याशी बदलना पड़ा. उन्होंने भाजपा के पूर्व विधायक, सुनील पिंटू जो वैश्य समाज से आते हैं उन्हें टिकट दिया और पिंटू ढाई लाख वोट से चुनाव जीते. इस सीट पर भी पिछले लोकसभा तक दल कोई हो विजेता यादव जाति से होता था लेकिन 2014 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के टिकट पर राम कुमार शर्मा जीते.
इस तरह चुनाव परिणाम के बाद जहां अतिपिछड़ी जाति के लोगों के लिए मुज़फ़्फ़रपुर और झंझारपुर दो वक़्त की सीट मानी जाती थी उसमें नीतीश कुमार ने इस बार के चुनाव परिणाम के बाद जहानाबाद, कटिहार और भागलपुर का भी नाम जोड़ दिया. हालांकि अररिया से BJP के प्रदीप सिंह भी स्वर चुनाव जीते हैं, लेकिन यह पहला चुनाव है जब अतिपिछड़ी समुदाय से इतनी बड़ी संख्या में संसद में लोग बिहार से चुनकर जा रहे हैं.
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