तमिलनाडु की बदलती राजनीति पर प्रणव रॉय का विश्लेषण
चेन्नई: बीते तीन सालों में तमिलनाडु की राजनीति के सबसे बड़े नेताओं में से जे जयललिता और एम करुणानिधि के निधन के बाद राज्य की राजनीति में एक खालीपन सा आ गया है. जिसे भरने के लिए कई युवा राजनेता कतार में खड़े दिखते हैं. इसी कड़ी में एक तरफ जहां ई पलानीस्वामी और ओ पन्नीरसेलवम हैं तो दूसरी तरफ स्टालीन जैसे युवा हैं. राज्य में बड़े नेताओं के निधन के बाद बनी स्थिति को भरने के लिए कई अभिनेताओं ने भी राजनीति में अपनी नई पारी शुरू की. इनमें कमल हासन और रजनीकांत जैसे नाम शामिल हैं. कुछ नेता एक्स फैक्टर की तरफ हैं. जैसे टीटीवी दिनाकरण, जो जयललिता की करीबी वी के शशिकला के भतीजे हैं. दिनाकरन सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक के विभाजन का कारण बना और जयललिता के घरेलू सीट - चेन्नई की आरके नगर सीट में उनकी विरासत का असली उत्तराधिकारी होने का दावा करके एक आश्चर्यजनक जीत दिलाई.
देश के हर राज्य में विजेता पार्टी और उपविजेता के प्रदर्शन में व्यापक असमानता की उम्मीद की जा सकती है.
बीते कुछ चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 1952 से अब तक हुए चुनाव में हर राज्य में किसी ने किसी पार्टी को बड़ा बहुमत मिला है. लोकसभा चुनाव के आधार पर देश के 77 फीसदी राज्यों में जीतने वाली पार्टी को हारने वाली पार्टी की तुलना में हर बाद दोगुना सीट मिली है. अपने प्रतिद्वंदी से जीत के मामले में दूसरे राज्यों की तुलना तमिलनाडू शीर्ष स्थान पर है. इतना ही नहीं तिमलनाडू ने जीतने वाली पार्टी को बड़े अंतर से जीत दिलाई है. अभी तक हुए चुनाव में पार्टी को मिली जीत में से 94 फीसदी जीत बड़ी थी.
इन सब के बावजूद को कांग्रेस और भाजपा जैसी मुख्यधारा की पार्टियों को दशकों में राज्य के इस उत्थान से कोई फायदा नहीं हुआ है.
क्षेत्रिय पार्टी के इस उत्थान का खामियाजा राष्ट्र स्तर की पार्टियों को भी उठाना पड़ा है. यही वजह है कि एक समय में जिस कांग्रेस का राज्य में कुल वोट शेयर 20 फीसदी के आस पास था वह अब घटकर चार फीसदी से भी नीचे चला गया है.
जबकि तमिलनाडु में बीजेपी कभी भी अपनी मौजूदगी नहीं दर्ज करा पाई. हालांकि बीजेपी ने एआईएडीएमके साथ गठबंधन जरूर किया. 1998 में एआईएडीएमके ने अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए को अपना समर्थन जरूर दिया था. लेकिन महज 13 महीने के बाद ही अपना समर्थन खींच भी लिया था. जिस वजह से वाजपेयी सरकार संसद में विश्वास मत नहीं जीत पाई थी और सरकार 1999 में गिर गई थी.
जयललिता के समय AIADMK ने महिला मतदाताओं के बीच 10 प्रतिशत की बढ़त हासिल किया था. वहीं, एम करुणानिधि की द्रमुक, जिसका कांग्रेस के साथ गठजोड़ है, पुरुषों में 2 प्रतिशत की बढ़त है, 2014 के एक्जिट पोल और हंसा रिसर्च के बाद के सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है.
तमिलनाडु में 10 बेलवेस्टर सीटें हैं - जिनमें से एक ने 11 लोकसभा चुनावों के परिणामों की सही भविष्यवाणी की है.
तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव 18 अप्रैल को एक ही चरण में होंगे. परिणाम 23 मई को घोषित किए जाएंगे.