2014 के लोकसभा के चुनाव में 'मोदी लहर' थी उस लहर में राजनीति का बड़े से बड़ा दरख्त भी धराशाई हो गए था. कई सीटों पर जीत का अंतर इतना था कि सारे समीकरण फेल हो गए थे. लेकिन उस प्रचण्ड आंधी में भी कई नेता ऐसे थे जो हारे जरूर थे लेकिन बहुत ही मामूली अंतर से. दूसरे शब्दों में कहें तो उस प्रचण्ड लहर में भी उनकी हार अंतर 10 प्रतिशत से भी कम था. इन सीटों पर अगर एक नज़र डालें तो सबसे पहले संभल की सीट आती है जहां बीजेपी के सत्यपाल सिंह सपा के सकीकुर्रहमान से सिर्फ 5174 मतों के अंतर से ही जीते थे यानी जीत का प्रतिशत मात्र 0.5 यानी आधा फीसदी थी. रामपुर में भी बीजेपी सिर्फ 2.44 फीसदी से ही किसी तरह जीत पाई थी. रामपुर में बीजेपी के नेपाल सिंह ने सपा के नासिर अहमद खान को 23562 मतों से ही शिकस्त दी. रामपुर के बाद कौशाम्बी में भी भाजपा के विनोद कुमार सोनकर सिर्फ 4.71 प्रतिशत वोटों से सपा के शैलेन्द्र कुमार को हरा पाए थे. यही हाल सीतापुर का भी था जहां से राजेश वर्मा 4.97 फीसदी वोटों से जीते थे. सहारनपुर से बीजेपी के राघव लखनपाल अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के इमरान मसूद को सिर्फ 5.45 फीसदी के मतों के अंतर से ही हरा पाये थे. इलाहबाद में भी बीजेपी के श्यामा चरण गुप्ता सपा के रेवती रमन सिंह को 7.01 फीसदी से ही चुनाव में पटकनी दे पाए.
लालगंज सुरक्षित से नीलम सोनकर ने भी सिर्फ 7.01 प्रतिशत से ही चुनाव जीता था. मुरादाबाद के कुंवर सर्वेश कुमार 7.75 फीसदी से ही चुनाव जीत पाये. हरदोई सुरक्षित से बीजेपी के अंशुल वर्मा ने बसपा के शिव प्रसाद वर्मा को 8.36 फीसदी यानी 85913 मतों से हराया था. श्रावस्ती से भी बीजेपी के दद्दन मिश्र 85913 मतों के अंतर से ही जीत हासिल कर पाए ये अंतर और भी कम तब नज़र आता है जब उनके खिलाफ सपा के बाहुबली अतीक अहमद खड़े थे बावजूद इसके दद्दन मिश्र उन्हें सिर्फ 8.77 फीसदी मतों के अंतर से ही हरा पाए थे. मिश्रिख सुरक्षित से बीजेपी की अंजू बाला 8.75 फीसदी वोट के मतों के अंतर से ही जीती तो कुशीनगर से राजेश पांडेय 9 फीसदी वोट के अंतर से ही चुनाव जीत पाये. संत कबीर नगर से बीजेपी के शरद त्रिपाठी बसपा के भीष्म शंकर तिवारी को 9.68 फीसदी से तो नगीना सुरक्षित से बीजेपी के यशवंत सिंह 9.80 फीसदी मतों के अंतर से अपने प्रतिद्वंदी को हरा पाए थे. इन 16 सीटों के अलावा प्रदेश में खासतौर पर पूर्वांचल में 8 और ऐसी सीटे हैं जिनमे जीत का अंतर 10 प्रतिशत से तो अधिक है लेकिन इतना बड़ा नहीं जिसे पाटा न जा सके. सबसे पहले कुशीनगर है जहां बीजेपी के राजेश पाण्डेय कांग्रेस के आरपीएन सिंह से 85,540 मतों के अंतर से जीते थे. डुमरियागंज से बीजेपी के जगदम्बिका पाल है जो बसपा के मो. मुकीम को एक लाख तीन मतों से परास्त किया था.
खीरी से बीजेपी के जीत का अंतर एक लाख दस हज़ार का था यहां बीजेपी के अजय कुमार बसपा के अरविन्द गिरी को हराया था. खीरी के बाद धौरहरा में भी भाजपा की प्रत्याशी रेखा के तीन लाख साठ हज़ार मतों के जवाब में बसपा के दाऊद अहमद दो लाख चौतीस हज़ार के पास वोट पाकर कड़ी टक्कर दी थी. बांदा में बीजेपी के भैरव प्रसाद मिश्र के तीन लाख बयालीस हज़ार वोट के जवाब में बसपा के आरके सिंह पटेल ने दो लाख छब्बीस हज़ार वोट पा कर कड़ा मुकाबला किया था. बलिया में सपा के नीरज शेखर ने भाजपा के भरत सिंह को कड़ी टक्कट दी थी. भरत सिंह के तीन लाख उनसठ हज़ार वोट के जवाब में नीरज शेखर को दो बीस हज़ार वोट मिले थे. जौनपुर में भी लगभग यही हाल था. बीजेपी के कृष्णप्रताप बसपा के सुभाष पांडेय को एक लाख छियालीस हज़ार मतों के अंतर से हराया था. घोसी में ये अंतर थोड़ा ज़्यादा है बसपा के दारा सिंह भाजपा के हर नारायण राजभर से एक लाख छियासठ हज़ार मतों के अंतर से हारे थे. इन सीटों के जीत के अंतर को थोड़े से भी वोट स्विंग से हराया जा सकता है.
लोकसभा चुनाव 2019 : हरियाणा में 2014 की तरह इस बार भी चलेगी 'मोदी लहर' ?
उत्तर प्रदेश की ये वो सीटें हैं जिन पर बीजेपी को पसीना बहना पड़ेगा क्योंकि इस बार 2014 की तरह मोदी की लहर नहीं है. जनता पांच साल के शासन का जवाब भी मांग रही है. बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं , और 2014 के चुनाव में किए गए वादे जो की पूरे नही हो पाए हैं, बीजेपी को परेशान कर सकते हैं. इसके अलावा सपा-बसपा का गठबंधन और प्रियंका के मैदान में आने के बाद नए कलेवर और जोश में उतरी कांग्रेस इन सीटों पर भारी पड़ सकती है. ऐसे में बीजेपी को अपने मत प्रतिशत को तकरीबन 20 फीसदी के आसपास बढ़ा कर लाना होगा तभी वो इन सीटों पर अपना दवा बरकरार रख पाएगी.
बागपत में खोई जमीन वापस पाने की जयंत की जंग
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