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This Article is From Mar 08, 2022

मिलिए धनंजय चौहान से, पंजाब यूनिवर्सिटी के पहले ट्रांसजेंडर स्टूडेंट, संघर्ष और शक्ति से भरी है इनकी कहानी

Trans Woman Dhananjay ने चाहे कितनी ही चुनौतियां झेली हों लेकिन कभी हार नहीं मानी. वे अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने जैसी अनेक महिलाओं के हक में बुलंद खड़ी हैं.

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LGBTQ: धनंजय साहस की जीती जागती मिसाल हैं.

नई दिल्ली:

Dhananjay Chauhan: ट्रांस वुमेन धनंजय LGBTQ कम्युनिटी के लिए विधाता से कम नहीं हैं. उन्होंने हजारों ट्रांसजेंडरों को एक नई उड़ान दी है जो समाज की अंधकार भरी जेल की जंजीरों को तोड़ते हुए आसमान को छू रही हैं. वो कहती हैं कि 'समाज या तो उन्हें नीच मानता है या परमात्मा, मगर कभी इंसान नहीं.' इसी के चलते उन्होंने खुदकों आगे बढ़ाने का बेड़ा उठाया और आज ट्रांस ही नहीं बल्कि अनेक महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. धनंजय पंजाब यूनिवर्सिटी में ट्रांसजेंडर वॉशरूम की मांग करने वाली पहली महिला हैं. 

धनंजय बचपन से ही इस बात से वाकिफ थीं कि वे गलत शरीर में हैं. उनकी समाज (Society) से अपने जेंडर के लिए लड़ाई 5 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी जब उन्होंने मुंडन करवाने से मना कर दिया था. वे जानती थीं कि अब उन्हें बाल बढ़ाने का मौका दोबारा नहीं मिलेगा. फिर भी उन्होंने अपने मां-बाप से यह मांग रखी कि वे मुंडन तभी करवाएंगी जब उन्हें फ्रॉक पहनने का मौका मिलेगा. 6 साल की धनंजय (Dhananjay) जब स्कूल में ज्ञान बटोरने गईं तो बच्चों ने उन्हें बहुत सताया लेकिन उन्हें किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वे कहती हैं कि स्कूल में वो लड़कियों के वॉशरूम में ही चली जाती थीं और एक दिन उन्हें बच्चों ने वॉशरूम में ही बंद कर दिया था. बच्चों की बात फिर भी एक पल के लिए समझ आ जाए लेकिन उनके गणित के टीचर के दुस्साहस का क्या कहना.

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लड़का-लड़की और जेंडर के असमंजस में धनंजय ने 'कथक' को अपना साथी बना लिया था. एक दिन जब वे कथक सीखने जा रही थीं तो उनके गणित के टीचर ने उन्हें अपने घर में बुलाया और उनका यौन शोषण किया. यही नहीं वे धनंजय को ब्लैकमेल भी करते कि अगर नहीं आए तो एग्जाम के नंबर काट दिए जाएंगे. 

जब लोगों को भनक पड़ जाए कि आप दूसरों से अलग हो तो दुनिया जीना मुश्किल कर देती है. धनंजय 'जेंडर डिस्फोरिया' की शिकार थीं. आपको बता दें कि जेंडर डिस्फोरिया उस स्थिति को कहते हैं जब यह महसूस होता है कि प्राकृतिक लिंग किसी व्यक्ति के लैंगिक पहचान से मेल नहीं खाता है. उन्हें बचपन में किन्नर से बहुत डर लगता था, वे सोचती थीं कि शायद वो उन्हें उठा ले जाएंगे. जब उनकी पहली बार किसी किन्नर से मुलाकात हुई तो धनंजय से उस किन्नर (Kinnar) ने पूछा 'तुम कोती (Koti) हो?' जब एक-दूसरे को बुलाना हो या पहली मुलाकात हो तब 'कोती' शब्द का इस्तेमाल किन्नर समाज में किया जाता है.  

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वैसे तो वे अपने आप को जानती थीं मगर उस दोस्त ने उन्हें दोबारा उन्हें अपनेआप से मिलवाया. फिर 15 अप्रैल 2014 को भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय, नालसा यूनियन ऑफ इंडिया एंड ऑथर्स, में थर्ड जेंडर को एक अलग पहचान दी. इस फैसले ने धनंजय और उनके जैसे कई लोगों को वो दर्जा दिया जो 1871 के 'एंटी-ट्राइबल एक्ट' (Anti Tribal Act) ने छीन लिया था. यह एतिहासिक फैसला उन सभी लोगों के लिए वो दरवाजा था जो बहुत सारे अवसरों को खोलने वाला था.
 

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लेकिन, 2014 के बाद भी किन्नर स्कूल-कॉलेज में पहला कदम रखने से झिझक रहे थे. तब धनंजय ने पंजाब यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर औरों को भी पढ़ने की हिम्मत दी. आज उनके पास डबल एम. ए. की डिग्री है लेकिन नौकरी नहीं. उन्होंने बताया, "यह समाज की गलती है कि डबल एम. ए. के बाद भी मुझे नौकरी नहीं मिली, न कि मेरी. समाज कहता है कि पढ़ाई करो तो काम, इज्जत और रोटी मिलेगी. मैंने विद्या प्राप्त की और हक से की मगर मुझे काम नहीं मिला. यह समाज की नाकामयाबी है मेरी नहीं."

कहते हैं कि हार न मानना अपने आप में एक जीत का सबूत है, लेकिन रास्ते में आने वाली ठोकरों का हिसाब कब तक झेला जाए. बिना लोगों की परवाह करते हुए जनवरी 2021 में उन्होंने कुर्ता-पजामा पहन कर और लंबे बालों को काटे बिना ही अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और दिसंबर 2021 में उन्होंने अपना ऑपरेशन करवाया. ऑपरेशन के वक्त उनके साथ हमसफर रुद्र प्रताप (ट्रांसमेन) ही थे. उन्होंने उनका हर मोड़ पर साथ दिया. धनंजय जैसे लोग औरत होने के उन हिस्सों को दर्शाते हैं जहां औरत को तबतक चुप रहना पड़ता है जबतक कि उनकी मुलाकात उनके अधिकारों से न हो. धनंजय कहती हैं कि "अधिकारों की लड़ाई लंबी है मेरा यह युद्ध तबतक चलता रहेगा जबतक मेरी सांसे चलेंगी." उनके इसी साहस और आत्मविश्वास को हम सलाम करते हैं.

जब कहीं जाती हूं, सोचती हूं कि दोबारा लड़ना पड़ेगा, अब तो मुझे मेरी आखिरी लड़ाई का इंतजार है, जब इंसान मेरी इंसानियत देखेंगे, मेरे जेंडर को नहीं, मुझे देखेंगे.

- धनंजय

(उपरोक्त लेख पूर्ण रूप से ट्रांसजेंडर धनंजय से हुई बातचीत पर आधारित है.)

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