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Acharya Prashant ने बताया क्या करियर और पैशन साथ-साथ चल सकते हैं, युवाओं को जरूर सुननी चाहिए यह सलाह

Acharya Prashant On Career And Passion: आचार्य प्रशांत ने एनडीटीवी युवा कोन्क्लेव में कहा कि संतुलन की बात आते ही असंतुलन पैदा हो जाता है. युवाओं के लिए करियर और पैशन को एकसाथ लेकर चलने के सवाल पर आचार्य प्रशांत का जवाब युवाओं की उलझन को कम कर सकता है.

Acharya Prashant ने बताया क्या करियर और पैशन साथ-साथ चल सकते हैं, युवाओं को जरूर सुननी चाहिए यह सलाह
Acharya Prashant ने बताया कि पैशन और करियर के बीच क्या है सही चुनाव. 

Acharya Prashant Advice: प्रशांत त्रिपाठी को आचार्य प्रशांत के नाम से जाना जाता है. IIT दिल्ली से इंजीनियरिंग और IIM अहमदाबाद से मैनेजमेंट करने के बाद उन्होंने आध्यात्मिकता की ओर रुख किया. एनडीटीवी युवा कोन्क्लेव (NDTV Yuva Conclave) में सिक्ता देव से आचार्य प्रशांत ने आज के युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों, समाधान और जीवन के सही मार्गदर्शन पर चर्चा की. यहां आचार्य प्रशांत ने करियर और पैशन को साथ लेकर चलने पर भी बात की है. युवाओं के सामने करियर और पैशन (Career Or Passion) के बीच चुनाव को लेकर कशमकश बनी रहती है. पैसे कमाने हैं तो करियर ऐसा होना चाहिए, जिसमें महीने के अंत में हाथ में मोटी तनख्याह आए, लेकिन मन पेंटिंग या गाना गाने में लगता है तो क्या करें. ऐसे में करियर और पैशन के इस सवाल पर आचार्य प्रशांत की सलाह सभी युवाओं को एक बार जरूर सुन लेनी चाहिए. अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक आचार्य प्रशांत मोटिवेशनल स्पीकर हैं, विचारक हैं और आज के युवाओं के लिए करियर और जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं.

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करियर और पैशन के बीच किसे चुनें 

युवाओं की सबसे बड़ी परेशानी है कि वे करियर और पैशन को लेकर कैसे चलें या जीवन में संतुलन कैसे बनाए. सवाल किया गया कि क्या करियर और पैशन साथ-साथ चल सकते हैं, इसपर आचार्य प्रशांत ने कहा, जब भी संतुलन शब्द आएगा असंतुलन पैदा हो जाएगा, गड़बड़ हो जाएगी क्योंकि संतुलन का मतलब ही होता है दो ऐसी चीजों को एकसाथ लेकर चलने की कोशिश, उनमें समन्वय बनाने की कोशिश या एडजस्ट करने की कोशिश जिनको साथ लेकर चलना बड़ा मुश्किल है." 

"जब भी संतुलन शब्द आएगा असंतुलन पैदा हो जाएगा."

आचार्य प्रशांत (Acharya Prashant) ने आगे कहा कि "इन दोनों को एकसाथ लेकर चलने के बजाय अगर एक कर लिया तो जिंदगी में मौज है, आनंद है. लेकिन, अगर यह दोनों अलग-अलग रहेंगे तो इंसान संतुलन बनाने की कोशिश में हर तरीके से असुंलित रह जाएगा.  जिसे हम वर्क लाइफ बैलेंस कहते हैं या प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को अलग रखने की बात करते हैं, तो यह एक ऐसी खाई है जिसे पाटा नहीं जा सकता है. इसे अगर पाटने की कोशिश करेंगे, कि ये दोनों अलग हैं और दोनों को बचाकर ले चलो, तो आदमी बिल्कुल दो नावों पर सवार होने जैसा हो जाता है. फिर तमाम तरीकों की मानसिक समस्याएं पैदा होने लगती हैं. जिदंगी जोकि उन्मुक्त हो सकती थी, आनंदित हो सकती थी, वो चिड़चिड़ी सी बीतती है और एक भाव रहता है कि समय बर्बाद जा रहा है."

घर चलाने के लिए सैलरी चाहिए तो पैशन कैसे करें फॉलो 

आचार्य प्रशांत से यह सवाल किया गया कि आखिर युवा क्या करे. अगर वह गिटारिस्ट बनना चाहता है लेकिन यह पैशन है और घर चलाने के लिए सैलरी चाहिए और गिटार बजाकर शायद उतनी सैलरी ना मिले, तो क्या किया जाए, क्या नौकरी ही करें और फिर जब वक्त मिले तब गिटार बजाएं? इस सवाल के जवाब में आचार्य प्रशांत ने कहा, "आपको और अच्छा गिटारिस्ट बनना पड़ेगा. एक साधारण एंप्लॉई बनना और सोचना कि वहां आसानी से सैलरी मिल जाएगी, वहां रास्ता सुरक्षित है और भीड़ उस रास्ते पर चल रही है तो उसे देखकर भरोसा मिलता है कि उसमें एक सेफ और सेक्योर सैलरी मिल जाती है, तो उससे बेहतर है कि आप गिटारिस्ट ही बनें और बहुत अच्छे गिटारिस्ट बनें." आचार्य प्रशांत ने आगे कहा कि "अगर आपका कोई पैशन है तो वो बाकी लोगों को भी अपील करता होगा और इसे आप उन लोगों तक लेकर जा सकते हैं. शर्त बस यह है कि जिसे आप अपना पैशन बोलते हैं उसमें आप मिडियोकर ना रहें. पैशन की मांग ही होती है कि आप उसमें कुछ बहुत अच्छा करें." उनका कहना है कि पैशन फॉलो करके जब अच्छा कमाएंगे तो करियर, बेरोजगारी और सेक्योरिटी जैसे डर बेमतलब के रह जाते हैं.

"शर्त बस यह है कि जिसे आप अपना पैशन बोलते हैं उसमें आप मिडियोकर ना रहें. पैशन की मांग ही होती है कि आप उसमें कुछ बहुत अच्छा करें."

लोग क्या कहेंगे का दबाव, पारिवारिक दबाव का क्या करें 

युवाओं पर अच्छे करियर के लिए ना सिर्फ पारिवारिक दबाव बल्कि यह दबाव भी रहता है कि आखिर लोग क्या कहेंगे. एक अच्छी नौकरी और एक अच्छे करियर को समाज में हाई स्टेटस की तरह भी देखा जाता है. ऐसे में अगर पैशन को चुन लिया जाए तो इस पारिवारिक दबाव से कैसे निकलें, इसके जवाब में आचार्य प्रशांत ने कहा, "माता-पिता (Parents) भी बच्चे की भलाई ही चाहते हैं. वे चाहते हैं कि बच्चे के साथ अच्छा हो और जो सबसे अच्छा हो वही हो. लेकिन, यह जरूरी नहीं कि उन्हें सचमुच पता ही हो की अच्छाई किसमें निहित है. नीयत सही हो सकती है लेकिन उससे यह साबित नहीं हो जाता कि अवेयरनेस भी है."

आचार्य प्रशांत कहते हैं कि "जिंदगी में युवाओं को क्या करना है यह उन्हें अपने दिल से ही पूछना होगा. साधारण, औसत या मिडियोकर जिंदगी ही जीनी है तो आप मां-बाप को क्या दे रहे हैं. आप भी एक घुटा हुआ जीवन जिएंगे और जितने आपके आस-पास लोग हैं उनमें भी वही घुटन बांट देंगे. इससे बेहतर है कि आप उन्हें समझा दें कि आप अगर मेरी भलाई चाहते हैं तो मुझे वैसे जीने दीजिए जैसा मुझे ठीक लग रहा है. मैं गलतियां कर सकता हूं, ठोकर खा सकता हूं लेकिन जो भी करुंगा सीखूंगा. "  वे कहते हैं कि किसी के दबाव को हमेशा मजबूरी में नहीं माना जाता बल्कि कई बार स्वार्थ होता है लेकिन घर में रिश्ता प्रेम का होना चाहिए स्वार्थ का नहीं. 

माता-पिता कैसे लें निर्णय

माता-पिता के सामने यह कशमकश रहती है कि बच्चे पर अगर जरा भी दबाव ना डालें तो शायद वह आगे बढ़ेगा ही नहीं लेकिन वे यह भी नहीं चाहते कि बच्चे पर प्रेशर डाला जाए. ऐसे में सवाल किया गया कि माता-पिता को कितना दबाव बनाना चाहिए या कहां रुक जाना चाहिए, जवाब में आचार्य प्रशांत ने कहा, कि "यह सही है कि बच्चे को प्रेरणा देनी होती है और कुछ हद तक उसे अनुशासित भी करना होता है, लेकिन आंख खुली रखनी चाहिए कि आप जो कुछ कर रहे हैं उसका बच्चे पर प्रभाव क्या पड़ रहा है. अगर आप मां-बाप हैं तो एक सवाल आपको अपनेआप से जरूर पूछना चाहिए कि क्या आप ठीक-ठीक यह जानते हैं कि जिंदगी में आपके लिए क्या अच्छा है. आप जितने भी साल के हैं, क्या आपने अपने लिए यह जाना है कि क्या ठीक है जिंदगी में. और अगर आप यह ठीक-ठीक नहीं जान पाए हैं तो आपको इतना भरोसा क्यों हैं कि आपको बिल्कुल साफ पता है कि आपके बच्चे के लिए क्या ठीक है."

आचार्य प्रशांत ने माता-पिता को यह सलाह दी कि किसी एक निष्कर्ष पर ना आएं कि अब मैने कह दिया है तो ऐसा होकर ही रहेगा. लगातार इस बात का विकल्प खुला रखें कि रास्ता बदला जा सकता है. 

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