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देशभर में छिड़ी बहस के बीच संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में उसके द्वारा सुझावे गए परिवर्तनों को वापस लेते हुए अनिवार्य अंग्रेजी भाषा परीक्षा की आवश्यकता समाप्त कर दी है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारियों का चयन करने के लिए प्रतिष्ठित परीक्षा लेने वाले यूपीएससी ने गत मंगलवार को एक शुद्धिपत्र जारी करके किसी भी एक भारतीय भाषा और अंग्रेजी पेपर में अर्हता प्राप्त करने की पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी। हालांकि इसमें प्राप्त अंकों को रैंकिंग के लिए जोड़ा नहीं जाएगा।
इसमें कहा गया है, ‘‘भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के पेपर मैट्रिक या उसके समकक्ष स्तर के होंगे और यह अर्हता प्रकृति के ही होंगे। इन पत्रों में प्राप्त अंकों को रैंकिंग के लिए नहीं जोड़ा जाएगा।’’ भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में प्रश्नपत्र का उद्देश्य अभ्यर्थियों की पढ़ने और गंभीर तर्कमूलक गद्य समझने की उनकी क्षमता और विचारों को स्पष्ट और सही तरीके से व्यक्त करने की परीक्षा लेना है।
मुख्य परीक्षा में बैठने वाले अभ्यर्थियों के लिए नैतिकता, सत्यनिष्ठा और एपीट्यूड और निबंध के ढाई-ढाई सौ अंक के अलग-अलग प्रश्नपत्र होंगे।
नैतिकता, सत्यनिष्ठा और एपीट्यूड के प्रश्नपत्र में अभ्यर्थियों का एपीट्यूड तथा सत्यनिष्ठा एवं सामाजिक जीवन में ईमानदारी संबंधी मुद्दों के प्रति उनका रुख जांचने के लिए प्रश्न होंगे तथा इससे विभिन्न मुद्दों को सुलझाने तथा समाज में काम करने के दौरान सामने आने वाली परेशानियों के प्रति उनके दृष्टिकोण की जांच होगी।
अभ्यर्थियों को एक विशिष्ट विषय और अपनी पसंद की भाषा में निबंध लिखना होगा। आयोग द्वारा पेश नये नियम के तहत एक भाषा को परीक्षा के माध्यम के रूप में तभी स्वीकार किया जाएगा जब न्यूनतम 25 अभ्यर्थी ऐसा चाहें।
यूपीएससी ने कहा, ‘‘यह भी कहा जा सकता है कि सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है जिसका आयोजन 26 मई 2013 को होगा।’’ यूपीएससी ने गत पांच मार्च को एक परिपत्र जारी किया था जिसमें अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व दिया गया था। इस कदम को लेकर संसद के भीतर और बाहर हंगामा हुआ था। इसके बाद सरकार ने गत 15 मार्च को इस पर रोक लगा दी थी।
कार्मिक राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने लोकसभा को बताया था कि सुझाये गए परिवर्तनों पर ‘यथास्थिति’ बहाल रहेगी।
अब कोई भी अभ्यर्थी साहित्य को वैकल्पिक विषय के रूप में ले सकेगा। इस मामले अब अभ्यर्थी पर यह शर्त नहीं होगी कि वह जिस भाषा के साहित्य को अपना वैकल्पिक विषय बना रहा है उस विषय में उसका स्नातक होना अनिवार्य है।
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