- 10 जुलाई 2025 को गुरुग्राम में 25 साल की राधिका यादव की हत्या ने सबको हैरान कर दिया. हत्यारा कोई और नहीं, उसका अपना पिता दीपक यादव है.
- जिस बाप ने राधिका को टेनिस स्टार बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च किए, स्कूल छुड़वाया, एकेडमी खुलवाई, उसी ने एक दिन उसे किचन में खड़े-खड़े गोलियां मार दीं.
- क्या यह सिर्फ एक झगड़े का नतीजा था? या इस घर में कुछ ऐसा हुआ, जो अभी तक सामने नहीं आया है? मां का झूठ, भाई की गैरमौजूदगी और सोशल मीडिया का एंगल - यह हत्याकांड कई सवाल छोड़ गया है.
क्या कोई पिता इतना क्रूर हो सकता है कि जिस बेटी को उसने प्यार से पाला, चलना सिखाया, उसी की जान ले ले? क्या बेटी की सफलता पिता की जलन का कारण बन सकती है? क्या सोशल मीडिया पर वीडियो बनाना या एक्टिव रहना गुनाह है? और अगर है भी, तो सजा मौत क्यों? ये सवाल पूरे देश में इस वक्त गूंज रहे हैं. 10 जुलाई 2025 को गुरुग्राम में 25 साल की राधिका यादव की हत्या ने सबको हैरान कर दिया. हत्यारा कोई और नहीं, उसका अपना पिता दीपक यादव है. जिस बाप ने राधिका को टेनिस स्टार बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च किए, स्कूल छुड़वाया, एकेडमी खुलवाई, उसी ने एक दिन उसे किचन में खड़े-खड़े गोलियां मार दीं. क्या यह सिर्फ एक झगड़े का नतीजा था? या इस घर में कुछ ऐसा हुआ, जो अभी तक सामने नहीं आया है? मां का झूठ, भाई की गैरमौजूदगी और सोशल मीडिया का एंगल - यह हत्याकांड कई सवाल छोड़ गया है.
उस दिन घर में हुआ क्या था?
एफआईआर के मुताबिक, 10 जुलाई 2025 की सुबह करीब 10:30 बजे गुरुग्राम के वजीराबाद गांव में राधिका के चाचा कुलदीप यादव ने घर में एक तेज आवाज सुनी. उन्हें लगा कि शायद किचन में प्रेशर कुकर फटा हो. वे अपने बेटे पीयूष के साथ ऊपर की मंजिल पर दौड़े. लेकिन वहां जो देखा, वह किसी बुरे सपने से कम नहीं था. किचन के फर्श पर राधिका खून से लथपथ पड़ी थी. सामने उसका पिता दीपक यादव खड़ा था, हाथ में पिस्तौल लिए. पुलिस के मुताबिक, दीपक ने पीछे से पांच गोलियां चलाईं, जिनमें से तीन राधिका को लगीं. उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी. दीपक ने पुलिस के सामने कबूल किया कि उसने ही राधिका को मारा. लेकिन यह कहानी इतनी साधारण नहीं है.
राधिका यादव: एक मेहनती टेनिस खिलाड़ी
राधिका कोई आम लड़की नहीं थी. 25 साल की उम्र में वह इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन (ITF) में 1999 की रैंकिंग वाली खिलाड़ी थी. उसने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेले. अपनी मेहनत से उसने गुरुग्राम में एक टेनिस एकेडमी शुरू की थी. वह अपने पैरों पर खड़ी थी, अपनी पहचान बना रही थी, और अपने सपनों के लिए डटी हुई थी. लेकिन यही आजादी शायद उसके पिता को खटकने लगी थी.
हत्या की वजह: झगड़ा, जलन या कुछ और?
पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला कि राधिका और दीपक के बीच टेनिस एकेडमी को लेकर तनाव था. दीपक को यह बर्दाश्त नहीं था कि लोग उसे “बेटी की कमाई पर जीने वाला बाप” कहते थे. वह चाहता था कि राधिका एकेडमी बंद कर दे, लेकिन राधिका अपने सपनों पर अड़ी रही. क्या यह तनाव इतना बढ़ गया कि दीपक ने अपनी बेटी की जान ले ली? या इसके पीछे कोई और गहरी वजह थी?
अनुत्तरित जवाब
इस हत्याकांड ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिनके जवाब अभी तक साफ नहीं हैं.
- 1. मां का झूठ : राधिका की मां मंजू ने पुलिस को बताया कि हत्या के वक्त वह ग्राउंड फ्लोर पर थीं और गोली की आवाज सुनकर ऊपर गईं. लेकिन दीपक के भाई कुलदीप ने कहा कि मंजू उस वक्त फर्स्ट फ्लोर पर थीं, यानी हत्या के समय मौके पर मौजूद थीं. अगर मंजू वहां थीं तो उन्होंने पुलिस से झूठ क्यों बोला? क्या वे कुछ छिपा रही हैं? या कुलदीप की बात गलत है? कोई तो सच नहीं बोल रहा, और यह झूठ इस केस की सबसे अहम कड़ी हो सकता है.
- 2. भाई कहां था? : राधिका का भाई धीरज इस घटना के समय कहां था? न पुलिस को, न रिश्तेदारों को इसका साफ जवाब मिला. क्या वह घर पर था? अगर नहीं, तो कहां गया? और अगर था, तो सामने क्यों नहीं आया? मां कहती हैं कि वे नीचे थीं, भाई का कोई पता नहीं, और ऊपर सिर्फ दीपक और राधिका थे. सुबह-सुबह एक सामान्य घर में ऐसा कैसे हो सकता है कि मां और भाई दोनों गायब हों? यह संयोग नहीं, बल्कि साजिश जैसा लगता है. क्या मां और भाई भी उस वक्त ऊपर थे और बाद में कहानी गढ़ी गई?
- 3. सोची-समझी हत्या: पुलिस का कहना है कि राधिका किचन में खाना बना रही थी, जब दीपक ने पीछे से पांच गोलियां चलाईं. यह कोई गुस्से में की गई हत्या नहीं थी. पांच गोलियां, वो भी पीछे से, यह बताता है कि यह सोची-समझी साजिश थी. दीपक ने अपराध कबूल कर लिया, लेकिन सवाल है- इतना गहरा गुस्सा या नफरत कहां से आई?
सोशल मीडिया का कोण
इस हत्याकांड में सबसे ज्यादा चर्चा सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर हो रही है. दो बातें सामने आई हैं:
1. रील्स और वीडियो: राधिका इंस्टाग्राम पर अपने दोस्तों के साथ रील्स बनाती थी, ट्रेंडिंग डांस या म्यूजिक वीडियो अपलोड करती थी. यह उसके पिता और भाई को पसंद नहीं था. उन्हें लगता था कि यह परिवार की “इज्जत” के खिलाफ है. घर में कई बार इस बात पर झगड़े हुए. परिवार का कहना था कि राधिका एक स्पोर्ट्सपर्सन है, उसे ऐसी चीजें नहीं करनी चाहिए. लेकिन राधिका अपनी आजादी पर अड़ी रही.
2. म्यूजिक वीडियो: एक साल पहले राधिका ने एक म्यूजिक वीडियो में काम किया था. यह वीडियो क्या था, यह साफ नहीं, लेकिन इसके बाद दीपक का गुस्सा बढ़ गया. उन्हें डर था कि रिश्तेदार और समाज इस वीडियो को देखकर क्या कहेंगे. लोग जो राधिका की तारीफ करते थे, अब वही ताने मारेंगे. क्या इस डर ने दीपक को इतना उकसाया कि उसने बेटी की जान ले ली?
समाज के ताने और पिता की मानसिकता
स्थानीय लोगों के मुताबिक, दीपक कोई गरीब या असफल व्यक्ति नहीं था. वह प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता था और हर महीने 15-17 लाख रुपये किराए से कमाता था. उसने राधिका के लिए लाखों के टेनिस रैकेट खरीदे, स्कूल छुड़वाया और उसकी एकेडमी के लिए जमीन दिलाई. फिर वह अपनी बेटी की सफलता से जलने क्यों लगा? कुछ का मानना है कि समाज के ताने - “बेटी की कमाई पर जी रहा है” - दीपक को चुभने लगे. वह नहीं चाहता था कि उसकी पहचान सिर्फ “राधिका के पिता” तक सीमित हो.
2023 की स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कई परिवारों में बेटी के काम करने को अच्छा नहीं माना जाता, खासकर अगर परिवार आर्थिक रूप से संपन्न हो. बेटी की कमाई को सम्मान की जगह “शर्म” का कारण माना जाता है. दीपक का परिवार भी इस सोच का शिकार लगता है. राधिका की सफलता और स्वतंत्रता शायद दीपक की पुरुषवादी सोच को चुनौती दे रही थी.
सोशल मीडिया: नया खतरा?
यह हत्याकांड बताता है कि सोशल मीडिया अब सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि परिवारों में तनाव का कारण भी बन रहा है. भारत में 78 करोड़ लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, और औसतन हर दिन 7.5 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं. हर मिनट इंस्टाग्राम और फेसबुक पर 13.8 करोड़ रील्स देखी जाती हैं. लेकिन जब परिवार वाले खासकर माता-पिता या भाई, इस पर रोक लगाने की कोशिश करते हैं तो यह तनाव हिंसा में बदल जाता है.
पिछले कुछ सालों में ऐसी कई खबरें आई हैं, जहां रील्स बनाने या मोबाइल इस्तेमाल करने पर हत्याएं हुईं. यह वही गुस्सा है, जो पहले शराब या जुए की लत छुड़ाने पर देखा जाता था. फर्क सिर्फ इतना है कि अब यह लत फोन की स्क्रीन में छिपी है.
यह सिर्फ एक हत्या नहीं
राधिका की हत्या सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि समाज में गहरे बैठी सोच का नतीजा है. यह पुरानी मानसिकता और नई पीढ़ी की आजादी का टकराव है. जब बेटी अपनी मेहनत से आगे बढ़ती है, अपने फैसले लेती है तो वह उसी घर में खटकने लगती है, जो कभी उसकी सफलता पर गर्व करता था.
यह घटना हमें चेतावनी देती है. अगर हमने सोशल मीडिया और “इज्जत बनाम आजादी” की बहस को नहीं सुलझाया तो ऐसी घटनाएं बढ़ेंगी. समाज को समझना होगा कि बेटी की कमाई पर गर्व होना चाहिए, न कि शर्म. बेटियां जब आगे बढ़ती हैं तो वे बोझ नहीं, बल्कि परिवार का गौरव होती हैं. लेकिन जब तक यह सोच नहीं बदलेगी, न राधिकाएं सुरक्षित होंगी, न समाज में इज्जत का असली मतलब समझा जाएगा.
राधिका यादव की हत्या एक त्रासदी है, जो हमें अपने समाज, रिश्तों और सोच पर सवाल उठाने को मजबूर करती है. क्या एक बेटी की सफलता और आजादी इतनी बड़ी गलती है कि उसकी सजा मौत हो? दीपक यादव ने अपनी बेटी को खो दिया, लेकिन समाज ने भी एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी और स्वतंत्र महिला को खो दिया. अब जरूरत है कि हम इस घटना से सबक लें और अपने घरों में सम्मान, बराबरी और समझ को बढ़ावा दें ताकि कोई और राधिका ऐसी त्रासदी का शिकार न बने.
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