नई दिल्ली. उत्तराखंड के जोशीमठ में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. लगातार जमीन धंसने की घटनाओं के मद्देनजर जोशीमठ को 'sinking zone (धंसता क्षेत्र)' घोषित किया गया है. 4000 से ज्यादा लोगों को यहां से सुरक्षित क्षेत्रों में भेजा जा रहा है. इस बीच वहां लोग विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर समय रहते सचेत नहीं हुई, जिसका ख़मियाज़ा हजारों लोगों को चुकाना पड़ रहा है. क्या वाकई ऐसा है? आखिर क्या है जोशीमठ के कई इलाकों के धंसने की वजह है...? क्या अकेला जोशीमठ ऐसा शहर है जो धंस रहा है?
राज्य सरकार जोशीमठ के धंसने की वजह जानने के लिए जांच कर रही है. राष्ट्रीय भूभौतिक अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के विशेषज्ञों की एक टीम जोशीमठ पहुंच रही है. कई विशेषज्ञों की टीम इस दिशा में काम कर रही हैं. इस बीच जोशीमठ के धंसने की कुछ निम्न वजह सामने आ रही है...
- जोशीमठ पूरी तरह से लैंडस्लाइड के मलबे पर बसा हुआ है। ऐसे में यहां अत्याधिक निर्माण करना खतरे से खाली नहीं था. ऐसे में प्रशासन को जल्द से जल्द इस पूरे इलाके को खाली करा लेना चाहिए। 1939 में एक किताब सेंट्रल हिमालया, जियोलॉजिकल ऑब्जर्वेशन ऑफ द स्विस एक्सपेडिशन में इसके लेखकर प्रो. अर्नोल्ड हेम और प्रो. आगस्टो गैंसर ने जोशीमठ को लेकर चेतावनी देते हुए कहा था कि यह पूरी तरह पहाड़ों के मलबे पर बसा हुआ है।
- कुछ जानकारों का मानना है कि सुरंग खोदने वाली मशीन से प्राकृतिक जल भंडार को हुए नुकसान हुआ. इससे इलाके के कई झरने और पानी के सोते सूख चुके हैं. इसकी वजह से जिस पहाड़ पर जोशीमठ बसा है, उसके अंदर की जमीन भी सूख चुकी है. इसलिए पहाड़ का मलबा धंसकने लगा है.
- वर्ष 1976 में जोशीमठ में लैंडस्लाइड हुआ था. तब तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में सरकार ने एक कमेटी गठित की थी. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि जोशीमठ में हो रहे निर्माण कार्यों पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए. हालांकि, प्रशासन ने इस सलाह पर ध्यान नहीं दिया और यहां हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और सड़कें बनाने का काम चलता रहा.
- एक्सपर्ट बताते हैं कि जोशीमठ के नदियों से घिरे होने के कारण यहां जमीन के नीचे और ऊपर पानी का बहाव झरने की तरह लगातार होता रहता है. इससे तल पर नमी हमेशा बनी रहती है. जोशीमठ जहां स्थित है उस इलाके में जमीन के भीतर की चट्टानें कमजोर हैं, जो नमी के प्रभाव से धंस रही है.
- जोशीमठ के ऊपर के इलाके में काफी बर्फबारी और तेज बारिश होती है. मौसम बदलता है और बर्फ पिघलती है, तब जोशीमठ के चारों ओर नदियों में पानी का बहाव तेज हो जाता है. सतह के कमजोर होने और भूस्खलन का यह भी एक बड़ा कारण है.
- जोशीमठ के अधिकतर क्षेत्रों में तापमान और हवा की वजह से तेजी से आकार बदलती नीस चट्टानें हैं. यह क्षेत्र में धंसान की एक वजह है.
जोशीमठ ही नहीं... 2050 तक डूब सकता है जकार्ता!
जोशीमठ अकेला ऐसा शहर नहीं है, जिसकी जमीन धंस रही है और लोगों को यहां से जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. बीबीसी की खबर के मुताबिक, इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में रहने वाले लाखों लोगों के पैरों तले भी जमीन खिसक रही है. यहां हर साल 25 सेंटीमीटर जमीन धंस रही है. एक्सपर्ट बताते हैं कि बीते 10 सालों में ये शहर ढाई मीटर जमीन में धंस चुका है. दलदली ज़मीन पर बसे इस शहर के नीचे से 13 नदियां निकलती हैं. इंडोनेशिया के तकनीक संस्थान बैंडंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलोजी में 20 सालों से जकार्ता की ज़मीन पर अध्ययन कर रहे हैरी एंड्रेस कहते हैं कि अगर हम अपने आंकड़ों को देखें, तो 2050 तक उत्तरी जकार्ता का 95 फ़ीसद हिस्सा डूब जाएगा." यानि ये शहर पानी में समा जाएगा. जकार्ता में रहने वाले लोगों के लिए पानी एक बड़ी समस्या है. सप्लाई वाला पानी लोगों के लिए पर्याप्त नहीं होता, ऐसे में लोगों को भूमिगत जल के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है. जैसे-जैसे लोग भूमिगत जल को निकालते जा रहे हैं, वैसे वैसे जमीन धंसती जा रही है.
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