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This Article is From Feb 06, 2014

प्राइम टाइम इंट्रो : जांच के पीछे सियासत कितनी?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। एक दिन हमें समर्थन देने पर उन्हें अफसोस करना पड़ जाएगा। अरविंद केजरीवाल ने जब तल्ख़ी सख़्ती और चुटकी के साथ बरखा दत्त से कहा था, तब विपक्ष को लगा कि ऐंवईं कह रहे हैं। तो क्या वो एक दिन आज आ गया जिस पर कांग्रेस अब अफ़सोस करेगी या वो दिन अभी आने वाला है।

केजरीवाल सरकार ने शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने के आदेश देकर गठबंधन को मज़बूत कर दिया या जनलोकपाल लाने से पहले झटका दिया है। वैसे एफ़आईआर या जेल भेज देने से गठबंधन हमेशा टूट ही जाता हो, यह तथ्य नहीं है। यूपीए टू के टूजी घोटाले में ए राजा और कनिमोई के जेल जाने के बाद भी उस समय गठबंधन की स्थिरता पर कोई फर्क नहीं पड़ा। जिस तरह केंद्र में डीएमके उस वक़्त सहनशील हो गई, क्या उसी तरह दिल्ली में कांग्रेस या शीला दीक्षित सहनशील हो जाएंगी। बेसिक कोच्चन तो ये है।

विधानसभा चुनावों के दौरान अरविंद केजरीवाल, शीला दीक्षित को टारगेट किए रहे। चुनाव नज़दीक आते ही शीला ने कहना शुरू कर दिया कि कोई आरोप नहीं है। किसी अदालत ने भ्रष्ट साबित नहीं किया है। शायद उन्हीं आरोपों और तथ्यों की तलाश में केजरीवाल सरकार ने जांच करने का फैसला किया है कि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली की सड़कों पर स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए जिस कंपनी को ठेका दिया गया, उसे एक बार रिजेक्ट कर देने के बाद किस आधार पर दोबारा दिया गया।

आरोप है कि सात आठ हज़ार की स्ट्रीट लाइट को 31 हज़ार तक में लगवा कर दिल्ली की जनता को कथित रुप से 31 करोड़ का चूना लगा दिया गया। एफआईआर में मुख्यमंत्री, मंत्री, पीडब्ल्यूडी और एमसीडी अधिकारियों के ख़िलाफ़ जांच की बात कही गई है। एमसीडी तो बीजेपी के तहत आती है।

अब सवाल उठता है कि क्या नई सरकार को नए सबूत मिले हैं या सीएजी और शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ही पर्याप्त है। सरकार ने आज कहा कि इस मामले को कोर्ट नहीं भेजा गया और प्राथमिक जांच के स्तर पर ही बंद कर दिया गया। तो अब फाइल खुलेगी। वैसे मामला यह है कि स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए एक कंपनी स्पेस एज का आवेदन रिजेक्ट हो गया। चार पैमानों में कमी पाई जाने के कारण उसे 100 में 48 नंबर मिले। कंपनी ने सीधे मुख्यमंत्री से अपील की और मुख्यमंत्री ने कथित रुप से फाइल चीफ इंजीनियर को भेज दी।

चीफ इंजीनियर ने उनकी फाइल वापस उसी बोर्ड को भेज दी जहां से रिजेक्ट हुई थी। इस बार उस कंपनी के नंबर 48 से 67 हो गए। शुंगलू कमेटी ने इसे गंभीर माना है। हमारे पास कंपनी का कोई पक्ष नहीं है। एक बात और। एक साथ तीन कंपनियां रिजेक्ट हुईं थीं। उन दो कंपनियों को पुनर्विचार के लिए अपना केस रखने का मौका नहीं मिला।

तो इस एफआईआर में एक साथ कांग्रेस और बीजेपी आ गई है। राजनीतिक रूप से।

अब एक और मामला। 5 नवबंर 2013 को लोकायुक्त ने रिपोर्ट दी कि शीला दीक्षित सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए गलत तरीके से ऐसी कॉलोनियों को अधिकृत करने के प्रोविज़नल सर्टिफ़िकेट दिए जो मौजूद नहीं थीं। सर्टिफ़िकेट देने में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश का भी पालन नहीं हुआ। लोकायुक्त ने यह रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज दी और राष्ट्रपति ने वापस मुख्यमंत्री की राय के लिए भेज दी।

28 दिसंबर 2013 को जब अरविंद केजरीवाल ने शपथ ली तब यह फाइल उन्हें विरासत में मिली। इसी फाइल पर उन्होंने लिख कर भेज दिया कि इस पर सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

बिना कॉलोनी में मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराने का मामला राजनीतिक है या इसमें भ्रष्टाचार हुआ है, इन सवालों पर बात करेंगे। लेकिन बीजेपी के डॉ हर्षवर्धन का कहना है कि राष्ट्रमंडल खेलों में स्ट्रीट लाइट तो एक सबजेक्ट है। लगता है कि करप्शन के मामले स्कूल कालेज के कोर्स की तरह होने लगे हैं।

डॉक्टर साहब कहते हैं कि टिशू पेपर स्टेडियम का पुनर्निर्माण, पुल, दवा, एंबुलेंस से लेकर कई सबजेक्ट हैं। दिल्ली सरकार देश की जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने हमारी मांगों पर सांकेतिक कदम उठाए हैं। क्या जांच शुरू हुई है। विजेंद्र गुप्ता तो कह रहे हैं कि दिल्ली सरकार, शीला दीक्षित को बचा रही है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, बीजेपी को रोकने में लगे हैं।

कानून मंत्री ने भी कहा है कि जांच में किसी एक व्यक्ति को टारगेट नहीं किया जाएगा।

पर सवाल ये है कि अरविंद केजरीवाल जब भी जांच की पहल करते हैं, उस पर कांग्रेस इतनी शालीन क्यों हो जाती है।
दूसरा सवाल है कि बीजेपी को किस बात से यकीन होगा कि केजरीवाल सरकार शीला दीक्षित के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकती है। क्या शीला दीक्षित पर एफ़आईआर दर्ज कर केजरीवाल बीजेपी के इम्तिहान में पास हो गए। कांग्रेस क्या शीला के बचाव में उतरेगी या दो−चार बयान देकर छोड़ देगी। क्या सही में नई सरकार को ऐसे ठोस सबूत मिले हैं जो मंशा से आगे जाकर मुख्यमंत्री की भूमिका साबित कर दे। प्राइम टाइम...
 

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