
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा कर लिया है. इसके साथ ही उन्होंने इस पद पर अपना ग्यारहवां साल भी पूरा कर लिया है. इन 11 सालों में गृह मंत्रालय ने देश से नक्सलवाद के खात्मे के लिए पूरा ज़ोर लगाया है. इस प्रयास का नतीजा भी सामने आने लगा है.
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट
गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद को ख़त्म करने का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य को पाने के लिए सुरक्षा बलों का ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट अभियान तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. इस अभियान में सुरक्षा बलों को कई सफलताएं भी मिली हैं जबकि उसके कई जवानों ने शहादत दी है.
इस साल 226 नक्सल मारे जा चुके
आंकड़ों के मुताबिक़, इसी साल अबतक 226 नक्सली मारे जा चुके हैं . इनमें 27 हार्डकोर नक्सली शामिल हैं जिन्हें सटीक ख़ुफ़िया जानकारी और ज़बरदस्त समन्वय के ज़रिए सुरक्षा बलों ने मार गिराया. पिछले महीने ही नक्सलियों के संगठन सीपीआई माओवादी के जनरल सेक्रेटरी बासवराजू को सुरक्षा बलों ने मार गिराया जिसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है. बासवराजू पर कुल मिलाकर एक करोड़ से ज़्यादा का इनाम था. इसी तरह पिछले 10 सालों में 18 सबसे बड़े नक्सली कमांडरों को मारने में सुरक्षा बल सफ़ल हुए हैं.
418 गिरफ़्तार , 896 कर चुके हैं सरेंडर
इस साल अबतक 418 नक्सली गिरफ्तार भी हो चुके हैं जिनमें 2 सेंट्रल कमिटी सदस्य भी शामिल हैं. इतना ही नहीं , इस साल अबतक 896 नक्सलियों ने सरेंडर भी किया है. पिछले महीने ही बीजापुर में 24 हार्डकोर नक्सलियों ने सरेंडर किया था. इसी तरह 2024 में 290 नक्सली मारे गए, 1090 गिरफ़्तार किए गए जबकि 881 नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया.
यूपीए की तुलना में नक्सली वारदात काफ़ी घटी
आंकड़े बताते हैं कि 2004 से 2014 के बीच नक्सली घटनाओं के मुक़ाबले 2014 से 2024 , यानि मोदी सरकार के कार्यकाल में 50 से 70 फ़ीसदी तक की कमी हुई है. मसलन , 2004 से 2014 तक जहां नक्सली हिंसा की 16463 घटनाएं घटी वहीं मोदी के कार्यकाल में ये घटकर 7714 हो गई , यानि 53 फ़ीसदी की कमी. इसी तरह, यूपीए के दस सालों में जहां सुरक्षा बलों के 1851 जवान और 4766 आम नागरिकों की मौत हुई वहीं 2014 के बाद से अबतक 509 जवान और 1495 नागरिक मारे गए हैं, यानि क्रमशः 73 फीसदी और 70 फ़ीसदी की कमी.
ट्रेस, टारगेट, न्यूट्रलाइज
सूत्रों के मुताबिक़, नक्सली संगठन की सबसे बड़ी इकाई पोलित ब्यूरो के टॉप सदस्यों के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए सुरक्षा बलों की रणनीति साफ़ है - ट्रेस , टारगेट , न्यूट्रलाइज. यानि सटीक ख़ुफ़िया जानकारी से पहले इन नक्सलियों के ठिकानों का पता लगाया जाता है , फिर उनकी घेराबंदी कर निशाने पर लिया जाता है और अंत में उन्हें ख़त्म कर दिया जाता है. सुरक्षा बलों की इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि नक्सल समस्या अब देश के कुछ ज़िलों में सिमट कर रह गई है.
विकास को मिली रफ़्तार
नक्सली घटनाओं में आई कमी का सीधा असर प्रभावित इलाकों में विकास की गति में आई तेज़ी में दिखता है. छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार स्थानीय निकाय चुनावों में 66 जगहों पर मतदान हुआ. इनमें सुकमा , दंतेवाड़ा , बीजापुर और कांकेड़ जैसे इलाके शामिल हैं. दुर्दांत नक्सली हिडमा के गांव में आज़ादी के बाद पहली बार मतदान संपन्न हुआ. अकेले बस्तर के इलाके में 33 स्कूल फिर खोले गए जबकि 23 नए स्कूल स्वीकृत किए गए हैं . कौशल विकास योजना के तहत नक्सल प्रभावित 48 ज़िलों में 38 आईटीआई खोलने को भी मंजूरी दी गई है.
जम्मू कश्मीर में क्रांतिकारी बदलाव
जम्मू कश्मीर के मोर्चे पर भी पिछले ग्यारह सालों में ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है. सबसे बड़ा और क्रांतिकारी बदलाव था जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को निरस्त किया जाना. आंकड़ों के मुताबिक़ धारा 370 हटने के बाद राज्य में हिंसक घटनाओं और सुरक्षा बलों के साथ साथ नागरिकों की मृत्यु में 50 से 80 फीसदी तक की कमी आई है. इसी का परिणाम है कि 33 सालों बाद सिनेमा हॉल खुल रहे हैं और 34 सालों में पहली बार राज्य में मुहर्रम का जुलूस निकल सका. पिछले साल जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में 65 फीसदी मतदान हुआ जो बिल्कुल शांतिपूर्वक संपन्न हो गया. राज्य में कहीं से भी चुनाव में गड़बड़ी की शिकायत नहीं मिली.
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