चेन्नई:
पिछले महीने 22 जुलाई को लापता हुए भारतीय वायुसेना के AN32 विमान में अंडर वॉटर डिस्ट्रेस बीकन नहीं था. AN32 में 2 बीकन थे लेकिन उनसे अंडर वॉटर ट्रांसमिशन संभव नहीं था. अंडर वॉटर बीकन से क्रैश हुए विमान को ढूंढने में मदद मिलती है. भारतीय वायुसेना ने माना है कि लापता विमान में अंडर वॉटर बीकन मौजूद नहीं था लेकिन इसकी जगह दो इंमरजेंसी लोकेटर ट्रांसमीटर मौजूद थे. ये ट्रांसमीटर समुद्र के सतह पर ही काम कर सकते हैं, समुद्र के अंदर नहीं. वायुसेना के मुताबिक AN32 के अपग्रेड पर काम चल रहा है लेकिन उससे पहले ये दुखद हादसा हो गया.
गंभीर सवाल खड़े हुए
गौरतलब है कि 22 जुलाई को चेन्नई से 29 लोगों को लेकर चले AN32 विमान में इस बीकन के न होने से मलबे को ढूंढने में बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि अभी तक बंगाल की खाड़ी से एयरक्राफ्ट का मलबा नहीं मिल सका है. इस उपकरण की गैरमौजूदगी ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं जैसे कि आखिर भारतीय वायु सेना अपने एयरक्राफ्ट को समुद्री इलाके के ऊपर से तब क्यों ले गई जबकि उसमें वह उपकरण ही फिट नहीं था जो क्रेश होने की स्थिति में मलबे को पानी के नीचे से ढूंढ पाए.
क्या मलबा ढूंढ जा सकेगा
विमान से अंतिम बार जहां संपर्क हुआ है उस जगह की गहराई करीब साढ़े तीन किलोमीटर है और इस गहराई तक खोज पाना पनडुब्बी और युद्धपोत के बस की बात नही है. यही नहीं यह विमान समुद्र के ऊपर उड़ान के लिहाज से नही बना हुआ है और तो और इसमें ऑटोमेटिक डिपेंडेंड सर्विलांस बोर्डकॉस्ट भी नही लगा है. अगर यह सिस्टम लगा होता तो यह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम से जुड़ा होता. इससे विमान के हर लोकेशन का साफ साफ पता लग जाता.
अंडरवॉटर लोकेटर बीकन की गैरमौजूदगी में अब जहाज़ और पनडुब्बी से तलाशी अभियान पर निकले विशेषज्ञ सोनार कंसोल के ज़रिए पानी के अंदर मलबे को ढूंढेंगे. यानि एक तेज़ साउंड (आवाज़) सिग्नल की मदद से पानी के अंदर मौजूद किसी भी तरह के धातु की जगह का पता लगाया जाएगा. लेकिन यह एक बेहद ही लंबी प्रक्रिया है, समझिए की एक गहरे काले जंगल में टॉर्च की मदद से कुछ ढूंढने जैसा है. 2009 में ब्राज़ील के तट पर एयर फ्रांस का AF-447 विमान क्रैश हो गया था जिसमें 228 लोग मारे गए थे. जांचकर्ताओं को इस पद्धति के जरिए मलबा ढूंढने में दो साल लग गए.
गंभीर सवाल खड़े हुए
गौरतलब है कि 22 जुलाई को चेन्नई से 29 लोगों को लेकर चले AN32 विमान में इस बीकन के न होने से मलबे को ढूंढने में बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि अभी तक बंगाल की खाड़ी से एयरक्राफ्ट का मलबा नहीं मिल सका है. इस उपकरण की गैरमौजूदगी ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं जैसे कि आखिर भारतीय वायु सेना अपने एयरक्राफ्ट को समुद्री इलाके के ऊपर से तब क्यों ले गई जबकि उसमें वह उपकरण ही फिट नहीं था जो क्रेश होने की स्थिति में मलबे को पानी के नीचे से ढूंढ पाए.
क्या मलबा ढूंढ जा सकेगा
विमान से अंतिम बार जहां संपर्क हुआ है उस जगह की गहराई करीब साढ़े तीन किलोमीटर है और इस गहराई तक खोज पाना पनडुब्बी और युद्धपोत के बस की बात नही है. यही नहीं यह विमान समुद्र के ऊपर उड़ान के लिहाज से नही बना हुआ है और तो और इसमें ऑटोमेटिक डिपेंडेंड सर्विलांस बोर्डकॉस्ट भी नही लगा है. अगर यह सिस्टम लगा होता तो यह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम से जुड़ा होता. इससे विमान के हर लोकेशन का साफ साफ पता लग जाता.
अंडरवॉटर लोकेटर बीकन की गैरमौजूदगी में अब जहाज़ और पनडुब्बी से तलाशी अभियान पर निकले विशेषज्ञ सोनार कंसोल के ज़रिए पानी के अंदर मलबे को ढूंढेंगे. यानि एक तेज़ साउंड (आवाज़) सिग्नल की मदद से पानी के अंदर मौजूद किसी भी तरह के धातु की जगह का पता लगाया जाएगा. लेकिन यह एक बेहद ही लंबी प्रक्रिया है, समझिए की एक गहरे काले जंगल में टॉर्च की मदद से कुछ ढूंढने जैसा है. 2009 में ब्राज़ील के तट पर एयर फ्रांस का AF-447 विमान क्रैश हो गया था जिसमें 228 लोग मारे गए थे. जांचकर्ताओं को इस पद्धति के जरिए मलबा ढूंढने में दो साल लग गए.
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