
हिजबुल मुजाहिदीन का टॉप कमांडर बुरहान मुज़फ़्फ़र वानी (फाइल फोटो)
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हिंसा में अब तक 21 लोगों की जान ले ली है
दक्षिण कश्मीर में आतंकियों को समर्थन मिलने की खबर सामने आ रही है
पिछले 6 महीने में आतंकवाद से जुड़ने वाले युवाओं की संख्या 23 है
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पढ़ें : कश्मीर के हालात
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अनजान नहीं थे हमारे सुरक्षा बल
वैसे पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई किस्से सामने आए हैं, जिनमें आतंकवादियों को लोगों का खूब समर्थन मिल रहा है, खासकर दक्षिण कश्मीर में। ऐसे में एक पोस्टर ब्वॉय के मारे जाने के बाद इस तरह की समस्या खड़ी होगी इससे भी हमारे सुरक्षा बल अनजान नहीं थे, लेकिन फिर क्यों इतने लोग मारे गए। एक सीनियर अफसर ने एनडीटीवी को बताया कि 'हम अपनी तरफ से पूरा एहतियात बरत रहे हैं, लेकिन अगर लोगों का हुजूम नाकों और पोस्ट पर अटैक करेगा तो पुलिस भी अपना बचाव तो करेगी ही।' उनके मुताबिक भीड़ ज्यादातर उन पोस्ट पर अटैक कर रही है जो दूर इलाकों में है। हमारे कुछ पुलिस स्टेशन बहुत अंदरूनी इलाकों में हैं, वहां से कुछ हिंसा की वारदातें सामने आई हैं।

सोशल मीडिया भी हालात में तनाव पैदा करता है
एक सीनियर अफसर ने कहा कि 'सबसे ज्यादा मुश्किल पुलिस को अनंतनाग कुलगाम शोपीयन टांगमार्ग में हो रही है। जो पुलिस वाले गायब हैं, वे दामाल हंजीपुरा पुलिस स्टेशन के हैं, जो कि कुलगाम में है। इन तीनों को हम ढूंढ़ रहे हैं। पता लगा रहे हैं कि वे अपने आप कहीं चले गए या फिर कोई उन्हें जबरन ले जाया गया।' वैसे बुरहान के मारे जाने से दो महीने पहले भी दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में हिजबुल मुजाहिदीन ने आतंकवादी नसीर पंड़ित के मारे जाने पर खुलेआम उसे भी गोलियों की सलामी दी थी। पुलिस का कहना है कि सोशल मीडिया भी हालात में तनाव पैदा करता है। वानी के फेसबुक अकाउंट में जिस पैमाने पर अपने विचार पोस्ट करता था, उससे लग रहा था कि वह अलगावाद की राह से धीरे-धीरे हट गया था और इस्लामिक स्टेट से ज्यादा प्रभावित हो रहा था।
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उमर ने हटाया वानी के पक्ष में पोस्ट
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घाटी में बढ़ती हुई हिंसक वारदातों के कई पहलू हैं
एक अफसर के अनुसर, 'वानी ने अपनी राह उसी दिन तय कर ली थी जब उसने बंदूक उठाई और सोशल मीडिया पर पुलिस वालों को मारने के लिए लोगों को उकसाने लगा।' घाटी में बढ़ती हुई हिंसक वारदातों के कई पहलू हैं। वानी को यूथ आइकॉन बताकर दरअसल मीडिया भी पाकिस्तान का प्रोपेगंडा कर रहा है। इस्लामाबाद ने तो हिजबुल कमांडर को शहीद क़रार दे ही दिया है। उस पर अब जनमत संग्रह की बात भी कर रहा है। ऐसे में मीडिया को सावधान रहने की ज़रूरत है, क्योंकि हकीकत यह है कि बुरहान वानी ने चाहे जितना भी ज़ोर लगाया हो, लेकिन इस साल आतंकवाद से जुड़ने वाले स्थानीय लड़कों की संख्या कम हुई है। पहले छह महीनों की संख्या 23 है।
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