बीते 10 अप्रैल को रामनवमी के मौके पर सांप्रदायिक हिंसा के बाद खरगोन शहर में एक व्यापारी की दुकान को बुलडोजर से गिराने पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. सिंगल जज बेंच ने खरगोन के व्यापारी जाहिद अली द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया है.
जाहिद अली ने सरकार/प्रशासन की मनमानी और अवैध कार्रवाई के खिलाफ न्यायिक जांच, ध्वस्त संपत्ति के मुआवजे और उनके पुनर्निर्माण की मांग की है. याचिकाकर्ता द्वारा अतिरिक्त न्यायिक कार्य करने वाले संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की भी मांग की गई है. अदालत ने नौ जून को राज्य सरकार, राज्य के गृह विभाग, खरगोन जिला प्रशासन और पुलिस के आलाधिकारियों के अलावा खरगोन नगर पालिका के मुख्य नगरपालिका अधिकारी को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है.
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याचिकाकर्ता के वकील एमएम बोहरा के अनुसार, "खरगोन (10 अप्रैल) में सांप्रदायिक हिंसा के ठीक एक दिन बाद स्थानीय अधिकारियों की एक टीम ने याचिकाकर्ता की दुकान पर बुलडोजर चला दिया, जो आजीविका का एकमात्र स्रोत था. आज तक मेरे मुवक्किल को अधिकारियों ने यह नहीं बताया कि उसकी दुकान को बिना किसी पूर्व सूचना के क्यों गिराया गया. वह उसकी संपत्ति का कानूनी मालिक है और इसके लिए सभी करों का भुगतान कर रहा था. याचिकाकर्ता उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से संपत्तियों के कानूनी मालिक होने के बावजूद तोड़-फोड़ मनमाने ढंग से और अवैध रूप से की गई थी."
कोर्ट में बताया गया कि दुकान गिराने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था, या सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया था. याचिकाकर्ता दंगा भड़काने की घटना में आरोपी या शामिल भी नहीं था. याचिकाकर्ताओं के अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य होने के कारण प्रतिशोध में निर्णय लेने के लिए न्याय और जूरी होने के कारण प्रशासन के खिलाफ याचिका दायर की गई थी.
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प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत और कानून के मानवीय आधार के खिलाफ थी. प्रशासन ने बिना किसी उचित सूचना के मनमाने ढंग से और अवैध रूप से तोड़फोड़ कर याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित आजीविका के अधिकार और आश्रय के अधिकार से वंचित कर दिया है.
अप्रैल में भी इंदौर बेंच ने राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया था, जबकि एक बेकरी मालिक और एक रेस्तरां मालिक द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, जिनकी कानूनी रूप से स्वामित्व वाली संपत्तियों को 10 अप्रैल की सांप्रदायिक हिंसा के बाद खरगोन में अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर ध्वस्त कर दिया गया था.
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