विक्रम साराभाई ने 11 नवंबर 1947 को सबसे पहले पीआरएल की स्थापना की
आजादी के बाद देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को शुरू करने में अहम भूमिका निभाने वाले महान वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई की आज पुण्यतिथि है. उनका कहना था कि हम राष्ट्र के निर्माण में यदि अर्थपूर्ण योगदान देते हैं तो एडवांस टेक्नोलॉजी विकसित कर मनुष्य और समाज की परेशानियों का समाधान खोज सकते हैं.
विक्रम साराभाई का पूरा नाम विक्रम अंबालाल साराभाई था और 12 अगस्त 1919 को उनका जन्म अहमदाबाद में हुआ था. वह प्रसिद्ध साराभाई परिवार से ताल्लुक रखते थे. इस परिवार का भारतीय आजादी आंदोलन में योगदान रहा.
विक्रम साराभाई ने कैंब्रिज से पढ़ाई करने के बाद सबसे पहले 1947 में अहमदाबाद में ही फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की थी. इसके लिए उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों को एक रिसर्च संस्थान स्थापित करने के लिए मनाया. नतीजतन पीआरएल अस्तित्व में आया. उस वक्त उनकी आयु महज 28 साल थी. उसके बाद उन्होंने एक के एक बाद एक कई संस्थानों की स्थापना में योगदान दिया.
वह परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन भी रहे. उन्होंने अहमदाबाद के अन्य उद्योगपतियों की मदद से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद की स्थापना की.
उसके बाद भारतीय अंतरिक्ष रिसर्च संगठन (इसरो) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई. 1966 में नासा से उनकी बातचीत का ही नतीजा था कि 1975-76 के दौरान सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्पेरीमेंट (साइट) लांच किया गया. उनके प्रयासों का ही नतीजा था कि 1975 में देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लांच किया गया.
उनको 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया गया. 1966 में उनको पदम भूषण से सम्मानित किया गया और 1972 में पदम विभूषण (मरणोपरांत) से नवाजा गया. 1971 में 52 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
विक्रम साराभाई का पूरा नाम विक्रम अंबालाल साराभाई था और 12 अगस्त 1919 को उनका जन्म अहमदाबाद में हुआ था. वह प्रसिद्ध साराभाई परिवार से ताल्लुक रखते थे. इस परिवार का भारतीय आजादी आंदोलन में योगदान रहा.
विक्रम साराभाई ने कैंब्रिज से पढ़ाई करने के बाद सबसे पहले 1947 में अहमदाबाद में ही फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की थी. इसके लिए उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों को एक रिसर्च संस्थान स्थापित करने के लिए मनाया. नतीजतन पीआरएल अस्तित्व में आया. उस वक्त उनकी आयु महज 28 साल थी. उसके बाद उन्होंने एक के एक बाद एक कई संस्थानों की स्थापना में योगदान दिया.
वह परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन भी रहे. उन्होंने अहमदाबाद के अन्य उद्योगपतियों की मदद से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद की स्थापना की.
उसके बाद भारतीय अंतरिक्ष रिसर्च संगठन (इसरो) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई. 1966 में नासा से उनकी बातचीत का ही नतीजा था कि 1975-76 के दौरान सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्पेरीमेंट (साइट) लांच किया गया. उनके प्रयासों का ही नतीजा था कि 1975 में देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लांच किया गया.
उनको 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया गया. 1966 में उनको पदम भूषण से सम्मानित किया गया और 1972 में पदम विभूषण (मरणोपरांत) से नवाजा गया. 1971 में 52 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
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