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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: किसके साथ जाएंगे मुसलमान, लालू, नीतीश या ओवैसी, कहां खड़ी है BJP

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मुसलमान वोट बैंक एक बार फिर महत्वपूर्ण हो गया है. बिहार के इस चौथे सबसे बड़े वोट बैंक को लुभाने में सभी दल लगे हुए हैं. इसमें सफल कौन होता है, इसके लिए हमें चुनाव परिणाम का इंतजार करना होगा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: किसके साथ जाएंगे मुसलमान, लालू, नीतीश या ओवैसी, कहां खड़ी है BJP
  • बिहार में विधानसभा चुनाव का मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच होगा.
  • अति पिछड़ा वर्ग बिहार का सबसे बड़ा वोट बैंक है, इसके बाद पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति का स्थान है.
  • मुसलमान बिहार का चौथा सबसे बड़ा वोट बैंक हैं.
  • बिहार में मुस्लिमों की संख्या करीब 17 फीसदी है, जिसमें 73 फीसदी पसमांदा मुस्लिम हैं
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नई दिल्ली:

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति गरमाती जा रही है. राजनीतिक दलों ने गोलबंदी तेज कर दी है. राजनीतिक दल अपने-अपने वोट बैंक को गोलबंद करने में जुटे हुए हैं. राज्य में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन और विपक्षी महागठबंधन के बीच माना जा रहा है. प्रशांत किशोर का जन सुराज और असदुद्दीन ओवैसी का एआईएमआईएम इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.  जाति और धर्म के आधार पर देखें तो अति पिछड़ा वर्ग बिहार का सबसे बड़ा वोट बैंक है. इसके बाद क्रमश: पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और मुस्लिमों का नंबर आता है. 

बिहार में मुस्लिम वोटों की सियासत

बिहार सरकार की ओर से कराए गए जातीय सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य की आबादी में मुस्लिमों की संख्या करीब 17 फीसदी है. सर्वे के मुताबिक इसमें से 73 फीसदी लोग पसमांदा मुस्लिम हैं. इसमें से सबसे बड़ा हिस्सा बिहार के सीमांचल के इलाकों में रहता है. बिहार के सीमांचल में किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया जिले आते हैं.इन चार जिलों में 45 फीसदी से अधिक की आबादी मुस्लिम है. इन चार जिलों में प्रदेश विधानसभा की 24 सीटें हैं. 

बिहार के इतने बड़े वोट बैंक पर हर राजनीतिक दल की नजर है. हर कोई इसे लुभाने पर लगा हुआ है. बिहार में 1990 के दशक में मुस्लिम वोटों का सबसे बड़ा हिस्सा लालू प्रसाद यादव के पास था. लेकिन बिहार में जैसे-जैसे नीतीश कुमार का उदय हुआ है, मुस्लिम वोट का एक हिस्सा उनकी तरफ चला गया. इस अपने साथ बनाए रखने के लिए नीतीश ने कई जतन भी किए. उन्होंने 2006 से 2014 के बीच छह मुस्लिमों को राज्य सभा भेजा. इसके बाद भी वो मुस्लिमों को अपने साथ नहीं रख पाए.

इफ्तार पार्टी में शामिल होते आरजेडी नेता तेजस्वी यादव.

इफ्तार पार्टी में शामिल होते आरजेडी नेता तेजस्वी यादव.

साल 2015 का विधानसभा चुनाव लालू यादव की आरजेडी, नीतीश कुमार के जेडीयू, कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन ने मिलकर लड़ा था. सीएसडीएस के एक अध्ययन में पता चला कि उस चुनाव में जेडीयू ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, वहां 78 फीसदी मुसलमानों ने उसे वोट किया. वहीं आरजेडी को अपनी सीटों पर केवल 59 फीसदी मुसलमानों के ही वोट मिले. कुल 69 फीसदी मुसलमानों ने महागठबंधन को वोट दिया. 

नीतीश  कुमार का मुस्लिम प्रेम और मुसलमान

नीतीश कुमार की जेडीयू 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आरजेडी से अपनी राहें जुदा कर लीं.जेडीयू बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गई. इसके साथ ही मुसलमान भी उसके पास से अलग हो गए.इसका परिणाम यह हुआ कि महागठबंधन के पक्ष में 89 फीसदी मुसलमानों ने वोट दिया. वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के सभी 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. नीतीश की कैबिनेट में जेडीयू कोटे से जमा खान मंत्री हैं, लेकिन उन्होंने 2020 का चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा था. बाद में वो जेडीयू में शामिल हो गए थे.  

साल 2020 के चुनाव में मुस्लिम वोट केवल जेडीयू से ही नहीं खिसका बल्कि आरजेडी को भी मुस्लिम वोटों का नुकसान उठाना पड़ा. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंन ने सीमांचल की 24 में से 17 सीटें जीत ली थीं. लेकिन 2020 के चुनाव में महागठबंधन केवल सात सीटें जीत पाया. जो सीटें आरजेडी के हाथ से निकलीं, उसमें से पांच सीटें असदुद्दीन ओवैसी का एआईएमआईएम ने जीत ली थीं. हालांकि कुछ दिन बाद ही ओवैसी की पार्टी के चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे. 

असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने 2020 में पांच विधानसभा सीटें जीती थीं.

असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने 2020 में पांच विधानसभा सीटें जीती थीं.

आरजेडी ने क्यों नहीं दी एआईएमआईएम को महागठबंधन में जगह

बिहार में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट होते ही एआईएमआईएम ने महागठबंधन में शामिल होने की कोशिशें शुरू कर दीं. पहले एआईएमआईएम के नेताओं ने आरजेडी और कांग्रेस के नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर बातचीत की. लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने पर एआईएमआईएम ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को सीधे पत्र लिखा. लेकिन उनका जवाब आने से पहले राजद के राज्य सभा सदस्य प्रो. मनोज झा ने एआईएमआईएम को सलाह दी कि बीजेपी विरोधी वोटों को बंटने से रोकने के लिए बिहार का चुनाव ही न लड़े. यह बिहार में मुस्लिम वोटों के बंटवारे से पैदा हुआ भय था. यह भय असदुद्दीन ओवैसी के बिहार आने से आरजेडी को सता रहा है.वह अपने बड़े वोट बैंक में हिस्सेदारी नहीं देना चाहती है. उसे लगता है बिहार में ओवैसी का मजबूत होना उसे ही कमजोर कर देगा. 

इस बार के चुनाव में बीजेपी की नजर मुसलमानों के सबसे बड़े वर्ग पसमांदा मुसलमानों पर है.

इस बार के चुनाव में बीजेपी की नजर मुसलमानों के सबसे बड़े वर्ग पसमांदा मुसलमानों पर है.

मुसलमानों को कैसे लुभा रही है बीजेपी

बिहार में केवल आरजेडी, कांग्रेस और सामाजिक न्याय की दूसरी पार्टियां ही मुस्लिम वोटों की दावेदार नहीं हैं. बीजेपी की भी नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है. वह मुसलमानों में पिछड़े यानी पसमांदा को साधने की कोशिश में है. मुसलमानों में सबसे अधिक पसमांदा ही हैं. इसके लिए बीजेपी ने कई 'पसमांदा मिलन समारोह' आयोजित किए. अपना पहला चुनाव लड़ने जा रही प्रशांत किशोर की जन सुराज भी मुसलमानों पर डोरे डाल रही है.अब इसमें सफलता किसे मिलेगी, इसका पता चुनाव परिणाम में ही चलेगा. 

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