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This Article is From Mar 24, 2017

अयोध्या विवाद : श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने ठुकराया सुलह का सुझाव, कहा - इसका कोई औचित्य नहीं

अयोध्या विवाद : श्रीराम जन्मभूमि न्यास ने ठुकराया सुलह का सुझाव, कहा - इसका कोई औचित्य नहीं
अयोध्या: अयोध्या के विवादित स्थल के मुद्दे को बातचीत के जरिये सुलझाने के उच्चतम न्यायालय के सुझाव को श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने ठुकराते हुए शुक्रवार को कहा कि मंदिर आंदोलन से जुड़े संतों का प्रतिनिधिमंडल इस सिलसिले में जल्द ही प्रधानमंत्री से मिलकर बातचीत करेगा. महंत दास ने यहां संवाददाताओं से कहा कि विवादित स्थल पर मंदिर के पक्ष में पुरातात्विक साक्ष्य मिलने के बाद सुलह-समझौते का अब कोई औचित्य नहीं है. बातचीत जैसे निर्थक आलाप से हिन्दुओं को भ्रमित ना किया जाए.

उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़े संतों का प्रतिनिधिमंडल सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव को लेकर जल्द ही प्रधानमंत्री से मिलकर बातचीत करेगा. मालूम हो कि न्यास के कुछ पदाधिकारी विवादित स्थल मामले में अदालत में पक्षकार हैं. यह मामला फिलहाल उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है.

न्यास अध्यक्ष ने कहा कि बड़े संघर्ष के बाद हिन्दुस्तान को आजादी मिली. उसके बाद इस राष्ट्र के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ. क्या विवादित स्थल को लेकर दोनों पक्षों के बीच समझौता, अयोध्या में एक और विभाजन को जन्म नहीं देगा? उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के दो वर्ष बाद ही सरदार पटेल और अन्य नेताओं के कुशल प्रयास से गुजरात के सोमनाथ ज्योतिलिंग पर भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया था. वहीं, अयोध्या मे श्रीराम जन्मभूमि का विवाद न्यायालय के चक्कर लगाता रहा. अगर उसी समय इसका समाधान कर दिया जाता तो शायद इतना खून-खराबा नहीं होता.

मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय ने गत 21 मार्च को अयोध्या के विवादित स्थल के मामले को 'संवेदनशील' और 'भावनात्मक मामला' बताते हुए कहा था कि इसका हल तलाश करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को नये सिरे से प्रयास करने चाहिए.  प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि ऐसे धार्मिक मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है और उन्होंने सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए मध्यस्थता करने की पेशकश भी की थी.

हालांकि उच्चतम न्यायालय द्वारा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को अदालत से बाहर सुलझाने के सुझाव और परस्पर संवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कुछ प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने स्वागत तो किया, मगर वे अदालत के बाहर इस मामले के समाधान को लेकर ज्यादा आशान्वित नहीं हैं.

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