याकूब मेमन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय में मुंबई बम विस्फोट कांड में मौत की सजा पाए याकूब अब्दुल रजाक मेमन की याचिका पर सुनवाई के अंतिम क्षणों में बुधवार को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी और वरिष्ठ अधिवक्ता टी.आर. अंद्यारिजुना के बीच उस समय तीखी झड़प हो गई जब रोहतगी ने इस मुजरिम को ‘देशद्रोही’ बताया।
याकूब के वकील की दलीलें समाप्त होने के बाद जब वरिष्ठ अधिवक्ता अंद्यारिजुना ने मेमन की याचिका के समर्थन में अपना पक्ष रखना शुरू किया तो अटार्नी जनरल ने कहा कि इसमें हस्तक्षेप का आपको कोई अधिकार नहीं है। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अंद्यारिजुना ने कहा कि दया याचिका रहम का मसला नहीं है। यह दोषी के सांविधानिक अधिकार का मसला है और सारे विकल्प खत्म हुए बगैर मेमन को गुरुवार सुबह सात बजे फांसी नहीं दी जा सकती है।
आमतौर पर शांत रहने वाले अंद्यारिजुना ने कहा, ‘‘उसकी दया याचि़का (महाराष्ट्र के राज्यपाल के समक्ष) अभी भी लंबित है। ऐसा कैसे हो सकता है। उसकी दया याचिका लंबित होने के दौरान उसे कैसे फांसी दी जा सकती है।’’ इस पर रोहतगी ने जवाब दिया कि यह यहां निर्णय का मामला नहीं है। इस पर अंद्यारिजुना ने मौत की सजा पाए कैदी के मौलिक अधिकारों का हवाला दिया और कहा कि उसकी जिंदगी एक डोर पर टिकी है और अंतिम सांस तक जिंदगी पर विजय प्राप्त करने के उसके प्रयास का परिहास नहीं करना चाहिए।
इस पर अटार्नी जनरल ने सवाल किया, ‘‘257 व्यक्तियों (विस्फोट में मारे गए) और जख्मी हुए सैकड़ों व्यक्तियों के अधिकारों का क्या होगा।’’ उन्होंने मेमन को ‘देशद्रोही’ बताते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय अपने फैसले में यह कहता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘मौत का फरमान जारी करना सही है। हमें इसमें किसी प्रकार की कानूनी खामी नहीं मिली। इस तथ्य के मद्देनजर हमारा निष्कर्ष है कि इस न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा सुधारात्मक याचिका पर लिये गये निर्णय में कोई गलती नहीं निकाली जा सकती है। ’’ न्यायालय ने दिन भर चली सुनवाई के बाद कहा कि टाडा अदालत द्वारा 30 अप्रैल को जारी मौत के फरमान में कोई त्रुटि नहीं निकाली जा सकती। परिणाम स्वरूप रिट याचिका खारिज की जाती है।
मेमन को सुने बगैर ही मौत का फरमान गलत तरीके से जारी करने की दलील अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि घटनाक्रम के सिलसिले से पता चलता है कि उसने राष्ट्रपति द्वारा पहली दया याचिका खारिज करने को चुनौती नहीं दी।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘पहली दया याचिका अस्वीकार होने के बाद उसने इसे चुनौती नहीं दी। 22 जुलाई, 2015 को उसने एक और दया याचिका दायर की। सुधारात्मक याचिका लंबित होने के दौरान क्या वह दूसरी ऐसी दया याचिका दायर करने का पात्र था। दया याचिका से कैसे निबटा जाए, इस मामले में हम जाना नहीं चाहते।’’ पीठ ने अटार्नी जनरल की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि मेमन ने पहली पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद सुधारात्मक याचिका के जरिये कानूनी विकल्प का सहारा नहीं लिया। पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक फांसी देने की तिथि से 14 दिन पहले वारंट जारी करने का सवाल है तो समय सीमा का पालन किया गया था।
राष्ट्रपति द्वारा चार अप्रैल, 2014 को दया याचिका अस्वीकार होने की सूचना 26 मई, 2014 को दिये जाने के बाद मेमन ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर नहीं की। न्यायालय ने कहा कि सजा के बाद मुजरिम किसी भी समय राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे सांविधानिक प्राधिकार के समक्ष क्षमा और सजा में माफी के लिये प्रतिवेदन कर सकता है। न्यायालय ने कहा कि मेमन की ओर से राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की गयी थी और उसे इसकी जानकारी थी।
याकूब के वकील की दलीलें समाप्त होने के बाद जब वरिष्ठ अधिवक्ता अंद्यारिजुना ने मेमन की याचिका के समर्थन में अपना पक्ष रखना शुरू किया तो अटार्नी जनरल ने कहा कि इसमें हस्तक्षेप का आपको कोई अधिकार नहीं है। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अंद्यारिजुना ने कहा कि दया याचिका रहम का मसला नहीं है। यह दोषी के सांविधानिक अधिकार का मसला है और सारे विकल्प खत्म हुए बगैर मेमन को गुरुवार सुबह सात बजे फांसी नहीं दी जा सकती है।
आमतौर पर शांत रहने वाले अंद्यारिजुना ने कहा, ‘‘उसकी दया याचि़का (महाराष्ट्र के राज्यपाल के समक्ष) अभी भी लंबित है। ऐसा कैसे हो सकता है। उसकी दया याचिका लंबित होने के दौरान उसे कैसे फांसी दी जा सकती है।’’ इस पर रोहतगी ने जवाब दिया कि यह यहां निर्णय का मामला नहीं है। इस पर अंद्यारिजुना ने मौत की सजा पाए कैदी के मौलिक अधिकारों का हवाला दिया और कहा कि उसकी जिंदगी एक डोर पर टिकी है और अंतिम सांस तक जिंदगी पर विजय प्राप्त करने के उसके प्रयास का परिहास नहीं करना चाहिए।
इस पर अटार्नी जनरल ने सवाल किया, ‘‘257 व्यक्तियों (विस्फोट में मारे गए) और जख्मी हुए सैकड़ों व्यक्तियों के अधिकारों का क्या होगा।’’ उन्होंने मेमन को ‘देशद्रोही’ बताते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय अपने फैसले में यह कहता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘मौत का फरमान जारी करना सही है। हमें इसमें किसी प्रकार की कानूनी खामी नहीं मिली। इस तथ्य के मद्देनजर हमारा निष्कर्ष है कि इस न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा सुधारात्मक याचिका पर लिये गये निर्णय में कोई गलती नहीं निकाली जा सकती है। ’’ न्यायालय ने दिन भर चली सुनवाई के बाद कहा कि टाडा अदालत द्वारा 30 अप्रैल को जारी मौत के फरमान में कोई त्रुटि नहीं निकाली जा सकती। परिणाम स्वरूप रिट याचिका खारिज की जाती है।
मेमन को सुने बगैर ही मौत का फरमान गलत तरीके से जारी करने की दलील अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि घटनाक्रम के सिलसिले से पता चलता है कि उसने राष्ट्रपति द्वारा पहली दया याचिका खारिज करने को चुनौती नहीं दी।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘पहली दया याचिका अस्वीकार होने के बाद उसने इसे चुनौती नहीं दी। 22 जुलाई, 2015 को उसने एक और दया याचिका दायर की। सुधारात्मक याचिका लंबित होने के दौरान क्या वह दूसरी ऐसी दया याचिका दायर करने का पात्र था। दया याचिका से कैसे निबटा जाए, इस मामले में हम जाना नहीं चाहते।’’ पीठ ने अटार्नी जनरल की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि मेमन ने पहली पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद सुधारात्मक याचिका के जरिये कानूनी विकल्प का सहारा नहीं लिया। पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक फांसी देने की तिथि से 14 दिन पहले वारंट जारी करने का सवाल है तो समय सीमा का पालन किया गया था।
राष्ट्रपति द्वारा चार अप्रैल, 2014 को दया याचिका अस्वीकार होने की सूचना 26 मई, 2014 को दिये जाने के बाद मेमन ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर नहीं की। न्यायालय ने कहा कि सजा के बाद मुजरिम किसी भी समय राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे सांविधानिक प्राधिकार के समक्ष क्षमा और सजा में माफी के लिये प्रतिवेदन कर सकता है। न्यायालय ने कहा कि मेमन की ओर से राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की गयी थी और उसे इसकी जानकारी थी।
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