
आदमी लंबी-लंबी प्लानिंग करता है. एक महीने की प्लानिंग, छह महीने की प्लानिंग, नौकरी की प्लानिंग, शादी की प्लानिंग, रिटायरमेंट की प्लानिंग... मगर सच में क्या इसकी जरूरत है? क्या एक क्षण भी किसी के वश में है? 12 जून को एयर इंडिया विमान हादसे ने ये जता दिया कि कुछ भी इंसान के वश में नहीं है. विमान में सवार लोग किसी न किसी प्लानिंग के तहत ही यात्रा पर निकले होंगे. मगर सारी धरी की धरी रह गई. विमान में सवार यात्रियों का दुखद अंत तो हुआ ही, अहमदाबाद के बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल मेस में खाना खा रहे और मौजूद लोगों पर भी ये प्लेन काल की तरह आया और पल भर में दूसरी दुनिया लेता गया. पीछे छोड़ गया तबाही.
एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर, जिसमें 242 यात्री सवार थे - 230 यात्री, 10 चालक दल के सदस्य और दो पायलट - दोपहर 1:38 बजे सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से रवाना हुआ. लंदन के गैटविक हवाई अड्डे के लिए रवाना हुआ यह विमान उड़ान भरने के 32 सेकेंड के भीतर ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया. दुर्घटना में केवल एक ब्रिटिश-भारतीय यात्री विश्वास कुमार रमेश बच गया.
शारलाबेन ठाकोर कौन है
शारलाबेन ठाकोर बीजे मेडिकल कॉलेज के छात्रावास की कैंटीन में खाना बनाती थीं. विमान दुर्घटना के समय ठाकोर और उनकी दो वर्षीय पोती छात्रावास में थीं. वह मेडिकल स्टूडेंट्स और प्रोफेसरों के लिए दोपहर का खाना बनाती थीं. उनका बेटा इस भोजन को कॉलेज परिसर में स्टूडेंट्स और प्रोफेसरों को पहुंचाता था, लेकिन यह सब कुछ सेकेंड में ही खत्म हो गया. उनका बेटा अब अपनी मां और बेटी के शव की तलाश कर रहा है. विमान दुर्घटना के समय दोनों कॉलेज में एक साथ थे.
दुर्घटना के एक दिन बाद भी सिविल अस्पताल के डॉक्टर दुर्घटना में मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों के डीएनए नमूने एकत्र कर रहे हैं, जबकि पुलिस मलबे के नीचे दबे शवों की तलाश कर रही है. इस उम्मीद में कि शायद कोई जिंदा बचा हो. शारलाबेन ठाकोर और छोटी आध्या अब भी लापता हैं.
दुर्घटना के समय शारलाबेन का बेटा रवि सिविल अस्पताल में टिफिन बॉक्स पहुंचा रहा था. NDTV से बात करते हुए, उसने कहा, "12 जून हमारे लिए एक सामान्य दिन की तरह था. हर दिन की तरह, मैं दोपहर 1 बजे अस्पताल के कर्मचारियों और छात्रावास को भोजन पहुंचाने के लिए निकला था. लौटने पर, हमें पता चला कि एक विमान मेस में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. जिस जगह पर मेरी मां बैठी थीं, वह जल गई थी."
72 घंटे का क्या है मामला
नम आंखों से रवि ने कहा कि उन्होंने अपना डीएनए सैंपल दे दिया है और उन्हें उम्मीद है कि उनकी बेटी का शव मिल जाएगा. पायल ठाकोर ने कहा, "मेरी मां मेस में गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी. मेरी भतीजी भी उनके साथ थी. हम कल से ही उनकी तलाश कर रहे हैं, लेकिन उनका पता नहीं चल पाया है." जहां रवि के डीएनए सैंपल का इस्तेमाल उनकी बेटी की पहचान के लिए किया जाएगा, वहीं पायल के डीएनए सैंपल से उनकी मां का पता लगाने में मदद मिलेगी. पायल ने रोते हुए पूछा, "हम उनके बारे में कुछ नहीं जानते. हम उन्हें कहां खोजें? हम उन्हें खोजने में असमर्थ हैं; फिर भी, हमें 72 घंटे तक इंतजार करने के लिए कहा गया है. हम उनकी तलाश में इधर-उधर भाग रहे हैं, लेकिन सब व्यर्थ है."
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