
अहमदाबाद से लंदन की उड़ान. विमान में 242 यात्री सवार. उड़ने के कुछ ही सेकंड्स में विमान आग का गोला बन गया और पलक झपकते ही 1000 डिग्री की लपटों ने सबकुछ खाक कर दिया. 241 यात्रियों को सोचने तक का मौका नहीं मिला. उनके शव इतनी बुरी तरह जल गए कि पहचान करना नामुमकिन हो गया. इस नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिए भारत का सबसे बड़ा डीएनए मैचिंग अभियान शुरू किया गया.
वक्त हाथों की रेत की तरह फिसल रहा है, और इसी के साथ हताहतों के परिजनों की बेसब्री भी बढ़ रही है. 40 से ज्यादा फोरेंसिक एक्सपर्ट्स, डॉक्टर और सपोर्टिंग स्टाफ दिन-रात चौबीसों घंटे, बिना रुके, बिना थके एक बेहद महत्वपूर्ण मिशन में जुटे हुए हैं. मिशन मृतकों के अवशेषों की पहचान करके उनके परिजनों से मिलान करना और सही परिजनों को उनके प्रियजनों के अवशेष सौंपना. लेकिन ये काम आखिर हो कैसे रहा है, किस तरह युद्धस्तर पर डीएनए मैचिंग का काम चल रहा है. किस तरह देश के सबसे बड़े डीएनए मैचिंग मिशन को अंजाम दिया जा रहा है, इसकी अनसुनी कहानी आज हम आपको बताएंगे.
ऐसे चल रहा डीएनए मैचिंग महामिशन
मेघानीनगर में क्रैश साइट से मृतकों के शव और अवशेषों को इकट्ठा किया गया.
- इसे सावधानीपूर्वक से सील पैक किया गया ताकि खराब होने से बचाया जा सके.
- अवशेषों को फोरेंसिक लैब भेजा गया, जहां हड्डियों और टिश्यूज से डीएनए निकाले गए.
- परिजनों को अपना ब्लड सैंपल देने के लिए बी जे मेडिकल कॉलेज बुलाया गया.
- ब्लड सैंपल को डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए फोरेंसिक साइंस लैबों में भेजा गया.
- फोरेंसिक साइंस निदेशालय में दांतों, ऊतकों आदि से डीएनए निकाले गए.
- बुरी तरह जली हड्डियों को साफ करके बोन मैरो से डीएनए निकाले गए.
- RT-PCR और सीक्वेंसिंग जैसी प्रक्रिया से अलग-अलग डिटेल्ड डीएनए प्रोफाइल तैयार किए गए.
- नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी में एक्सपर्ट्स डॉक्टर पीड़ितों और परिजनों के डीएनए की पहचान में जुटे हैं.
- अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड के मुताबिक, पहचान के लिए 23 तरह के जेनेटिव तत्व एलील्स की पहचान करना जरूरी होता है.
- पहचान सुनिश्चित होने के बाद परिजनों को उनके प्रियजनों के अवशेष सिविल अस्पताल में सौंपे जा रहे हैं.
सबसे बड़ा डीएनए मैचिंग मिशन
अब से पहले भारत में डीएनए मैचिंग का इतना बड़ा मिशन अंजाम नहीं दिया गया. पिछले साल राजकोट के गेमिंग जोन में लगी आग में जान गंवाने वाले 27 लोगों की पहचान की गई थी. 2023 में ओडिशा ट्रेन हादसे में मारे गए 30 लोगों की डीएनए पहचान के लिए बड़ा अभियान चलाया गया था. लेकिन इस बार संख्या बहुत ज्यादा है. देश का हर व्यक्ति इस हादसे से व्यथित है. परिजन परेशान हैं. ऐसे में लोगों की भावनाओं और जरूरत को देखते हुए सरकार के निर्देश पर मृतकों की पहचान का युद्धस्तर पर मिशन शुरू किया गया. पुलिस, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और अन्य एजेंसियों के सैकड़ों अधिकारियों कर्मचारियों, विशेषज्ञों को लगाया गया.
3 लैब में 300 से ज्यादा सैंपलों की जांच
गांधीनगर के फोरेंसिक साइंस निदेशालय और नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की टीमें तुरंत एक्टिव हो गईं. हादसे के तुरंत बाद पूरी जगह को सील करके मृतकों के 300 से ज्यादा सैंपल इकट्ठा कर लिए गए. तीन घंटे के अंदर ही सैंपलों को अस्पतालों तक पहुंचाने का बंदोबस्त कर दिया. उधर राजकोट, सूरत और वडोदरा की तीन फोरेंसिक साइंस लैबों से डीएनए मैचिंग की किट और अन्य उपकरणों का इंतजाम किया गया. एक्सपर्ट्स और कर्मचारियों को तुरंत अहमदाबाद और गांधीनगर पहुंचने को कहा गया.
पहले 36 घंटे में पहला डीएनए मैच
विमान हादसे में हताहत लोगों की पहचान के लिए उनके परिजनों के 250 से अधिक सैंपल लिए गए. 3 फोरेंसिक लैब में डीएनए निकालने और मैचिंग का इंतजाम किया गया. 40 से ज्यादा एक्सपर्ट डॉक्टरों को पहचान साबित करने में लगाया गया. उनकी मदद के लिए 200 से अधिक अधिकारी कर्मचारी भी लगाए गए. पूरी टीम दिन-रात काम में जुटी हुई है. इसी का नतीजा है कि सैंपल मिलने के महज 36 घंटों के अंदर पहले शव की पहचान कर ली गई. पहले 100 घंटों में ही 167 डीएनए मैच कर लिए गए.
सात दिनों के अंदर गुरुवार को 224 लोगों के डीएनए मैचिंग की जा चुकी है. 204 लोगों के शव उनके परिजनों को सौंप दिए गए हैं. इनमें 30 ब्रिटिश नागरिक, 4 पुर्तगाली नागरिक शामिल हैं. कहा जा रहा है कि डीएनए मैचिंग के इस महामिशन ने इस क्षेत्र में भारत की क्षमताओं को बहुत आगे कर दिया है.
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