यह ख़बर 16 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

सबकी जुबां पर सवाल : क्या मोदी के खिलाफ लड़ेंगे केजरीवाल?

नई दिल्ली:

अरविंद केजरीवाल ने जैसे ही दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया सवाल उठने लगे कि क्या केजरीवाल लोकसभा चुनाव लड़ेंगे? और उससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या केजरीवाल नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे?

हम पत्रकारों के पास यह सवाल पूछने के कई कारण हैं। पहला यह कि केजरीवाल अब दिल्ली की जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके हैं, और राजनीति में आए हैं तो चुनाव तो लड़ेंगे ही। दूसरा जब तक केजरीवाल खुद चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगे, तब तक उनकी पार्टी के लिए माहौल नहीं बन पाएगा। तीसरा यह कि केजरीवाल ने जब दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा था, तो सीधे मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को चुनौती देकर करारी शिकस्त दी थी।

अब जब लोकसभा लड़ने की बारी है, तो पार्टी ने पहले ही कह दिया है कि कांग्रेस की तो कहानी ही खत्म है और उनका असली मुकाबला बीजेपी से है। बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा नरेंद्र मोदी हैं, इसलिए सवाल उठना बहुत लाजमी है कि क्या केजरीवाल लड़ेंगे मोदी के खिलाफ?

और वैसे भी अगर केजरीवाल मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे तो यह ऐतिहासिक चुनावी महामुकाबला होगा, लेकिन इस सवाल का जवाब मिलना अभी आसान नहीं, क्योंकि अभी यह तय नहीं है कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होंगे या अलग। अगर साथ हुए तो प्राथमिकता दिल्ली विधानसभा रहेगी, क्योंकि केजरीवाल को फिर से यह साबित करना है कि वह अपनी जिम्मेदारी से भागे नहीं हैं और वैसे भी दिल्ली ही एकमात्र ऐसी जगह अभी तक है पार्टी ने अपने आप को साबित किया है, हालांकि पूरी तरह से नहीं।

अभी पार्टी को शासन क्षमता साबित करनी है, तो जब तक कम से कम दिल्ली में पार्टी अपना झंडा नहीं लहरा देती, उसकी प्राथमिकता कुछ और नहीं हो सकती। ऐसे में अरविंद केजरीवाल को दिल्ली पर ही ध्यान देना होगा।

इसके अलावा केजरीवाल बनाम मोदी वैसा नहीं है, जैसा शीला बनाम केजरीवाल था। शीला दीक्षित कांग्रेस सरकार की 15 साल पुरानी मुख्यमंत्री थी, जिनको अपनी एंटी इंकम्बेंसी के साथ, केंद्र की 10 साल पुरानी कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी भी झेलनी थी। लेकिन मोदी के साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि वह जिस बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, वह 10 साल से विपक्ष में बैठी हुई है और आमतौर पर जनता में नाराजगी सरकार से होती है विपक्ष से नहीं।

मैं अरविंद केजरीवाल की शीला दीक्षित को दी चुनौती को कम नहीं आंक रहा हूं, वह चुनौती और वह जीत निश्चित रूप से ऐतिहासिक थी, लेकिन मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि केजरीवाल बनाम मोदी और शीला बनाम केजरीवाल में बहुत अंतर है। और अभी तो यह भी तय नहीं है कि मोदी कहां से चुनाव लड़ेंगे, गुजरात से या उत्तर प्रदेश से और क्या पता मोदी अभी चुनाव लड़ें भी या नहीं। तो, इतनी सारी अगर-मगर के बीच इस सवाल का जवाब कहां से मिल पाएगा?

मैं इस सवाल का इतना लंबा विश्लेषण इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि हम लोग यह सवाल अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से कर रहे हैं, लेकिन सीधा जवाब नहीं मिलता। फिर भी लोग हमसे पूछते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि हमारे पास अंदर की खबर होगी।

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राजनीति में हर चीज आधिकारिक रूप से बतायी तो नहीं जाती, लेकिन इसे कवर करने वाले रिपोर्टर कुछ अंदर की खबर रखते हैं और समझ भी...तो जो कुछ एक रिपोर्टर के पास इस मुद्दे पर था, सब मैंने यहां बयान कर दिया है और अगर आप इससे संतुष्ट नहीं, तो मैं बस इतना कहता हूं कि थोडा इंतजार कीजिए...पर्दा उठने में अभी कुछ और वक्त बाकी है....