नई दिल्ली:
स्वामी विवेकानंद को दुनिया भर में भारतीय आध्यात्म और हिंदुत्व के प्रतिनिधित्व के रूप में देखा जाता रहा है। 4 जुलाई को उनकी 114वीं पुण्यतिथि के मौके पर दुनिया के कई कोनों में उनकी विचारधारा को जानने और समझने वालों ने उन्हें याद किया। इस मौके पर पढ़िए उन वक्तव्यों को जिसने विवेकानंद की 'वसुधैव कुटुंबकम' की सोच और फलसफे को दुनिया भर तक पहुंचाया -
- उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए।
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
- कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
- तुम अपनी अंतरात्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
- हम जितना ज्यादा बाहर जाएं और दूसरों का भला करें, हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होगा और परमात्मा उसमें बसेंगे।
- उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बने रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकल कर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
- उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
- अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए उतना बेहतर है।
- विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!
- किसी की निंदा न करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।
- इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
- जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
- जितनी हमारी नैतिक प्रकृति उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं