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This Article is From Jan 22, 2015

कमाल खान की कलम से : सपा को सताने लगी बसपा से दूरी!

कमाल खान की कलम से : सपा को सताने लगी बसपा से दूरी!
राम गोपाल यादव की फाइल तस्वीर
लखनऊ:

समाजवादी पार्टी को यूपी में अब मायावती से जुदाई सताने लगी है। सपा की यह टीस पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव के उस बयान से महसूस की जा सकती है कि "अरे हम अकेले थे इसलिए बीजेपी ने बुरी तरह हरा दिया। हरा दिया या नहीं?"

रामगोपाल यूपी में होने वाले विधानपरिषद चुनाव के सिलसिले में लखनऊ में थे, जहां उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि "अगर सपा और बसपा साथ होते तो बीजेपी को हवा में उड़ा देते।"

वह यह तो कहते हैं कि "सियासत में सिर्फ सियासी मतभेद होते हैं, लेकिन कोई दुश्मनी नहीं होती।" लेकिन मायावती के साथ को लेके वह नाउम्मीद हैं।
        
1993 में यूपी में एक नई तारीख लिखी गई थी जब पिछड़ों और मुसलमानों की पार्टी मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी और दलितों की पार्टी कहलाने वाली बसपा ने चुनाव से पहले गठबंधन किया। विधानसभा चुनाव में 167 सीट बसपा लड़ी जो 67 जीत गई जबकि 256 सीटें सपा लड़ी जो 109 जीत गई और यूपी में उनकी हुकूमत बन गई। लेकिन ताक़त और अहंकार की लड़ाई ने दोनों को 2 जून 1995 को अलग कर दिया। बिलकुल रेशमा के गाने "चार दिनों दा प्यार ओ रब्बा बड़ी लम्बी जुदाई" की तरह सपा-बसपा में मेल तो सिर्फ 18 महीने का रहा लेकिन जुदाई को 20 साल होने को है।

दोनों मिल कर एक सियासी चमत्कार कर सकते हैं, इसलिए लोकसभा चुनावों में बीजेपी के हाथों करारी शिकस्त के बाद उन्हें जुदाई की यह टीस ज़्यादा महसूस हो रही है।

रामगोपाल के इस दर्द को समझने के लिए इन आंकड़ों को समझना बहुत ज़रूरी है, पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 71 सीटें मिलीं और 42.3 फीसदी वोट। सपा को 5 सीटें मिलीं और 22.2 फीसदी वोट। बसपा का खता नहीं खुला लेकिन उसे वोट मिले 19.6 फीसदी। इस तरह सपा और बसपा के कुल वोट 41 फीसदी होते है। यानि बीजेपी से सिर्फ आधा फीसदी कम। जबकि बीजेपी 71 सीट पाती है और अलग-अलग लड़ के सपा 5 सीट और बसपा शून्य।

कहते हैं कि ठंड में पुरानी चोट दर्द करती है। ठंड भी काफी है तो दर्द तो होगा ही।

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