
तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता का सोमवार रात निधन हो गया (फाइल फोटो)
चेन्नई:
तमिलनाडु में दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता को उनके समर्थक ममता स्वरूत 'अम्मा' कहकर पुकारते हैं, लेकिन पार्टी नेताओं और अधिकारियों के बीच वह बेहद सख्त प्रशासक के रूप में जानी जाती रहीं. उनकी छवि एक ऐसे कद्दावर नेता की थी, जिनके सामने कोई टिक नहीं पाता था. उन्हें 'ना' सुनने की जैसे आदत ही नहीं थी और जब वह 'यू डोन्ट नो' (तुम नहीं जानते) कहती तो वह बातचीत उनका अंतिम शब्द हुआ करता था.
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जयललिता के निधन से जुड़ी तमाम जानकारियां यहां पढ़ें
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तमिलनाडु में कार्यरत अफसरों को पता था कि जयललिता जब 'यू डोन्ट नो' बोलें, तो समझो वह बातचीत खत्म कर रही हैं. इसके बाद सामने वाला कुछ नहीं बोलता था. राज्य सरकार के आला अधिकारियों के मुताबिक, वह अपने फैसले बड़ी जल्दी ले लेती थीं और जो लोग उनके फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत करते उन्हें मुख्यमंत्री का गुस्सा भी झेलना पड़ता था.
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जब अम्मा से इंटरव्यू के बाद करण थापर को किया था 'नज़रबंद'
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दिवंगत मुख्यमंत्री के साथ काम करने चुके एक वरिष्ठ आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी बताते हैं, 'समीक्षा बैठकों के लिए वह पूरी तैयारी करके आती थीं. बातों को समझने की उनकी क्षमता लाजवाब थी. ज्यादा से ज्यादा यही होता कि वह कुछ सुझाव मांगती और फिर उसी वक्त फैसला ले लिया जाता था.'
राज्य के तमाम वरिष्ठ नौकरशाह मुद्दों को समझने की उनकी काबिलियत और सुलझी हुई सोच के कायल थे और उनकी याद्दाश्त भी कमाल की थी. इन अधिकारियों के मुताबिक, जयललिता बिल्कुल व्यवस्थित ढंग से काम करने में यकीन करती थीं. वे बताते हैं कि मुख्यमंत्री के पास एक डायरी होती थी, जिसमें राज्य के सभी आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारियों का रिकॉर्ड होता था. अधिकारियों के तबादले, नियुक्ति और प्रमोशन से जुड़े फैसले लेने से पहले वह अपनी यह डायरी जरूर देखती थीं और फिर फैसला करती थी.
राज्य के उन तमिल संगठनों और जातिगत राजनीति करने वाले दलों पर भी जयललिता बारीक नजर रखती थीं, जो कि सामाजिक तनाव पैदा कर सकते थे. उन्होंने 2001 से 2006 के बीच के अपने कार्यकाल में अपने पूर्व सहयोगी वायको को हिरासत में लेने का आदेश दिया था. वायको पर आरोप था कि उन्होंने अपने एक भाषण में लिट्टे का समर्थन किया है. जयललिता के ही आदेश पर साल 2013 में पीएमके नेता रामदास और उनके बेटे अंबुमणि को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.
जयललिता तक पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं थी. लेकिन उनके करीबी और भरोसेमंद लोग को काफी छूट हासिल थी, बस उन्हें कुछ करने से पहले अम्मा को बताना होता था. अगर कोई भी जयललिता का भरोसा खो देता, तो उसे निकालने में वह जरा भी नहीं हिचकती थीं. इसी वजह से उन्होंने अपनी करीबी शशिकला नटराजन और दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरण से भी एक बार नाता तोड़ लिया था.
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जयललिता के निधन से जुड़ी तमाम जानकारियां यहां पढ़ें
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तमिलनाडु में कार्यरत अफसरों को पता था कि जयललिता जब 'यू डोन्ट नो' बोलें, तो समझो वह बातचीत खत्म कर रही हैं. इसके बाद सामने वाला कुछ नहीं बोलता था. राज्य सरकार के आला अधिकारियों के मुताबिक, वह अपने फैसले बड़ी जल्दी ले लेती थीं और जो लोग उनके फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत करते उन्हें मुख्यमंत्री का गुस्सा भी झेलना पड़ता था.
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जब अम्मा से इंटरव्यू के बाद करण थापर को किया था 'नज़रबंद'
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दिवंगत मुख्यमंत्री के साथ काम करने चुके एक वरिष्ठ आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी बताते हैं, 'समीक्षा बैठकों के लिए वह पूरी तैयारी करके आती थीं. बातों को समझने की उनकी क्षमता लाजवाब थी. ज्यादा से ज्यादा यही होता कि वह कुछ सुझाव मांगती और फिर उसी वक्त फैसला ले लिया जाता था.'
राज्य के तमाम वरिष्ठ नौकरशाह मुद्दों को समझने की उनकी काबिलियत और सुलझी हुई सोच के कायल थे और उनकी याद्दाश्त भी कमाल की थी. इन अधिकारियों के मुताबिक, जयललिता बिल्कुल व्यवस्थित ढंग से काम करने में यकीन करती थीं. वे बताते हैं कि मुख्यमंत्री के पास एक डायरी होती थी, जिसमें राज्य के सभी आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारियों का रिकॉर्ड होता था. अधिकारियों के तबादले, नियुक्ति और प्रमोशन से जुड़े फैसले लेने से पहले वह अपनी यह डायरी जरूर देखती थीं और फिर फैसला करती थी.
राज्य के उन तमिल संगठनों और जातिगत राजनीति करने वाले दलों पर भी जयललिता बारीक नजर रखती थीं, जो कि सामाजिक तनाव पैदा कर सकते थे. उन्होंने 2001 से 2006 के बीच के अपने कार्यकाल में अपने पूर्व सहयोगी वायको को हिरासत में लेने का आदेश दिया था. वायको पर आरोप था कि उन्होंने अपने एक भाषण में लिट्टे का समर्थन किया है. जयललिता के ही आदेश पर साल 2013 में पीएमके नेता रामदास और उनके बेटे अंबुमणि को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.
जयललिता तक पहुंच पाना हर किसी के बस की बात नहीं थी. लेकिन उनके करीबी और भरोसेमंद लोग को काफी छूट हासिल थी, बस उन्हें कुछ करने से पहले अम्मा को बताना होता था. अगर कोई भी जयललिता का भरोसा खो देता, तो उसे निकालने में वह जरा भी नहीं हिचकती थीं. इसी वजह से उन्होंने अपनी करीबी शशिकला नटराजन और दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरण से भी एक बार नाता तोड़ लिया था.
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