नई दिल्ली:
एस बैंड स्पेक्ट्रम के आवंटन में कथित घोटाले को लेकर आरोपों के केन्द्र में आए इसरो ने घोषणा की कि उसने देवास मल्टीमीडिया के साथ करार समाप्त करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी थी। उसने दावा किया कि इस कारण सरकार को कोई वित्तीय हानि नहीं हुई है। बहरहाल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने स्वीकार किया कि वर्ष 2005 में हुए समझौते के ब्यौरों से अंतरिक्ष आयोग या केन्द्रीय कैबिनेट को अवगत नहीं कराया गया। देवास को इसरो के एक पूर्व अधिकारी ने शुरू किया था और कंपनी को दो उपग्रहों के ट्रांसपोंडर्स का 90 प्रतिशत यूसेज का अधिकार मिलना था। उन्होंने कहा कि एक बिन्दु को केन्द्रीय मंत्रिमंडल को स्पष्ट तौर पर नहीं बताया गया था कि जीसेट 6 और जीसेट 6ए उपग्रहों का अधिकतर उपयोग इस अनूठे और वाणिज्यिक अनुप्रयोग के लिए किया जायेगा। इसके बारे में मैसर्स देवास और एंट्रिक्स के बीच समझौता हुआ था। एंटिक्स इसरो की वाणिज्यिक शाखा है। देवास और एंट्रिक्स के बीच हुए दावे के कारण दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने संबंधी मीडिया खबरों के बीच इसरो प्रमुख ने संवाददाता सम्मेलन में स्पष्ट किया कि अभी तक देवास या एंट्रिक्स को न तो स्पेक्ट्रम, न ही ट्रांसपोडर्स और न ही उपग्रह दिए गए हैं।
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इसरो, स्पेक्ट्रम, देवास