
धर्मगुरु दलाई लामा के 1959 में तिब्बत से भागने के दौरान उनकी सुरक्षा करने वाले सैनिकों के ग्रुप के आखिरी जीवित सदस्य को 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. इस पूर्व सैनिक की रेजीमेंट ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. तिब्बती आध्यात्मिक गुरु, चीनी सैनिकों से बचने के लिए सैनिक का वेश बनाकर हिमालय के रास्ते से 13 दिन की यात्रा कर भारत आए थे. नरेन चंद्र दास, जिनका सोमवार को असम में अपने निवास में निधन हुआ, उस समय महज 22 वर्ष के थे. उन्होंने भारतीय सेना के सबसे पुराने सशस्त्र बल, असम राइफल्स में अपनी ट्रेनिंग उसी समय पूरी की थी.
31 मार्च 1959 को छह अन्य सैनिकों के साथ नरेन भी दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश के लुमला लेकर आए थे. दास में स्थानीय मीडिया को दिए इंटरव्यू में पिछले साल बताया था कि किस तरह वे और अन्य सैनिकों ने पैदल चलकर पहाड़ी रास्तों से गुजरे थे जबकि दलाई लामा घोड़े पर थे. इस रिटायर सैनिक ने बताया था कि उनके ग्रुप को युवा मिक्षु (दलाई लामा) से बात करने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वे (सैनिक) उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहे थे. 86 साल के दलाई लामा इसके बाद से निर्वासन में भारत में रह रहे हैं.
इन दोनों (दलाई लामा और नरेन दास) की पहली बार भावुक मुलाकात इस घटना के करीब 60 साल बाद वर्ष 2017 में हुई थी. उस समय दास को देखकर तिब्बती धर्मगुरु ने कहा था, 'तुम्हारे चेहरे को देखकर मुझे अहसास हो गया कि मैं भी अब बहुत बूढ़ा हो गया हूं. ' एक साल बाद दास को धर्मशाला आमंत्रित किया गया था जहां दलाई लामा ने दिल्ली की इजाजत से निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापनाकी थी. दास ने बाद में बताया था, 'मैं वहां परिवार के साथ गया था और उन्होंने मुझे गले लगाया था. उन्होंने मुझे स्मृतिचिह्न भी भेंट किया था, मैं इस मुलाकात को भूल नहीं पाऊंगा. '
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