
भारतीय रक्षा एवं वैमानिकी के क्षेत्र में आज एक नए युग का सूत्रपात हुआ, जब रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने देश में बना पहला हल्का लड़ाकू विमान तेजस भारतीय वायु सेना को सौंपा। करीब 32 साल के इंतजार के बाद भारतीय वायुसेना को देसी लड़ाकू विमान मिला है। यह विमान हिन्दुस्तान एरोनेटिक्स लिमिटेड ने बनाया है।
रक्षा मंत्री ने इस मौके पर तेजस की उड़ान भी देखी। उन्होंने कहा कि मौजूदा जानकारी के आधार पर हमें रिसर्च और तकनीक जोर देना चाहिए साथ ही घिसे पिटे चीजों से बाहर निकलकर सोचने की जरुरत है।
वहीं एचएलएल के प्रमुख आर के त्यागी ने कहा कि इस विमान में 60 फिसदी देसी उपकरण लगे हैं। त्यागी के मुताबिक अगले साल छह तेजस बनाए जाएंगे और फिर अगले साल आठ से 16 विमान हर साल बनाने की कोशिश की जाएगी।
32 साल पहले देश में ही हल्के लड़ाकू विमान बनाने के इस मुश्किल और महत्वाकांक्षी सफर की शुरुआत हुई थी, जिसका पहला मील का पत्थर आज तेजस के रूप में भारतीय वायुसेना को सौंपा गया। इस विमान का सौंपा जाना एक ऐसी परियोजना के तहत देश में ही निर्मित किए जा रहे लड़ाकू विमानों को शामिल करने की प्रक्रिया है, जिसपर 8,000 करोड़ रुपये की लागत आ चुकी है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की इस परियोजना पर 30,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत आने का अनुमान है।
सूत्रों ने कहा कि सौंपे गए विमान को प्रारंभिक परिचालन मंजूरी-2 मिल चुकी है, जो इस बात का संकेत है कि तेजस विभिन्न परिस्थितियों में उड़ सकता है। इस साल के अंत तक इसे अंतिम परिचालन मंजूरी (एफओसी) मिल जाने की उम्मीद है।
विमान के इस संस्करण में नवीनतम इलेक्ट्रॉनिक युद्ध विशेषता, जो दो हफ्ते पहले हल्के लड़ाकू विमानों में से एक में लगाई गई, हवा के बीच दोबारा ईंधन भरने, लंबी दूरी की मिसाइल दागने की क्षमता और अन्य चीजों का अभाव है, जिन्हें एफओसी मंजूरी वाले विमानों में लगाया जाएगा।
सरकार के स्वामित्व वाली हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा बनाए जा रहे विमान को प्रारंभिक परिचालन मंजूरी-1 (आईओसी-1) जनवरी 2011 में मिल गई थी।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने तेजस श्रृंखला उत्पाद-1 (एलसीए-एसपी 1) भारतीय वायु सेना के प्रमुख एयर मार्शल अरूप राहा को सौंपा।
डीआरडीओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'देश के लिए यह एक बहुत बड़ा दिन है।' इस मौके पर डीआरडीओ प्रमुख अविनाश चंद्र मौजूद नहीं थे, जिनके अनुबंध को मंत्री ने 31 जनवरी को समाप्त करने का आदेश हाल ही में दिया था।
विमान द्वारा पिछले साल 30 सितंबर को पहली उड़ान सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद इसे द्वितीय आईओसी प्रदान की गई थी।
सूत्रों ने बताया कि विमान की पहली स्क्वाड्रन बनाने के लिए 2017-2018 तक 20 विमान बनाए जाएंगे। भारतीय वायुसेना के बेड़े में बूढ़े होते मिग-21 की जगह लेने के लिए 1983 में एलसीए कार्यक्रम शुरू किया गया था, लेकिन विभिन्न कारणों से इसके तैयार होने की कई समयसीमाएं निकल गईं।
अधिक निवेश के साथ एक व्यवस्थित तरीके से उत्पादन की देखभाल के लिए एचएएल के एलसीए परियोजना समूह को एक पूर्ण विकसित प्रभाग में उन्नत किया गया है। एचएएल एलसीए की हजारों उड़ानों को अंजाम दे चुका है और लेह, जामनगर, जैसलमेर, उत्तरलाई, ग्वालियर, पठानकोट और गोवा जैसी जगहों पर इसके परीक्षण कर चुका है, जिनमें ठंडे मौसम, युद्ध साजो सामान एवं हथियार पहुंचाने, मल्टी मोड रडार (एमएमआर), रडार वार्निंग रिसीवर (आरडब्ल्यूआर), गर्म मौसम और मिसाइल दागने जैसे उड़ान परीक्षण शामिल हैं।
एचएएल के अधिकारियों ने बताया कि तेजस जामनगर और जैसलमेर में परीक्षणों के दौरान हथियार पहुंचाने की क्षमता का सफल प्रदर्शन भी कर चुका है। (एजेंसी इनपुट के साथ)
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