नई दिल्ली:
केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने गुरुवार को नई दिल्ली में दमे के बारे में स्कूलों के लिए एक नियमावली जारी की. यह नियमावली एक गैर लाभकारी संगठन लंग केयर फाउंडेशन ने तैयार की है और एम्स (नई दिल्ली), सर गंगा राम अस्पताल (नई दिल्ली), फोर्टिस (कोलकाता) और अपोलो (बेंगलुरू) के डॉक्टरों सहित भारत के प्रमुख डॉक्टरों ने इसकी समीक्षा की है.
11 विभिन्न भाषाओं में अनुवादित इस नियमावली को भारत भर के पर्यावरण क्लबों (इको क्लबों) के जरिए 1 लाख से अधिक स्कूलों में लागू करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्वीकार किया गया है. इस नियमावली को सरल भाषा में तैयार किया गया है, इसमें बच्चों में दमा और स्कूलों द्वारा लागू की जाने वाली बेहतरीन कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी को शामिल किया गया है.
इस अवसर पर डॉ हर्षवर्धन ने कहा, “दमा नियमावली स्कूली पर्यावरण प्रणाली में दमे के संबंध में मौलिक जानकारी प्राप्त करने में सभी साझेदारों की मदद करेगा और ऐसा माहौल तैयार करने की दिशा में उचित और अमल में लाने योग्य समाधान की पेशकश करेगा जिससे दमे का प्रभावी प्रबंध किया जा सके और इससे पीड़ित बच्चे स्कूल में स्वस्थ, खुशहाल और सक्रिय जीवन बिता सकें.” उन्होंने कहा कि पल्स पोलियो अभियान के बारे में अपने व्यक्तिगत अनुभव से, मैं आश्वस्त हूं कि अध्यापकों, स्कूल प्रशासन, माता-पिता और बच्चों के मिलेजुले प्रयासों से हम स्कूलों में दमा के संबंध में सहयोगपूर्ण माहौल तैयार करने और देश के प्रत्येक बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे.
इस पहल को उजागर करते हुए लंग केयर फाउंडेशन के सीइओ और सह संस्थापक श्री अभिषेक कुमार ने एनडीटीवी से कहा, “भारत में दमा की प्रवृत्ति वाले बच्चों की बढ़ती संख्या के साथ ऐसी जानकारी काफी महत्वपूर्ण हो गई है.” स्कूल जाने वाले 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे दमा से पीड़ित हैं. यदि दमे को ठीक से नियंत्रित नहीं किया जाए तो बच्चे की शारीरिक वृद्धि में बाधा आ सकती है. बच्चे के जल्दी-जल्दी स्वास्थ्य देखरेख सुविधाएं लेने की वजह से उसके कक्षा में अनुपस्थित रहने और अपने साथियों के साथ कदम से कदम नहीं मिला पाने के कारण इसका बच्चे पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है. दमे के बारे में और आपात स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी नहीं होने के कारण हाल में स्कूलों में अनेक मौतों के मामले सामने आए हैं. इन सभी को रोका जा सकता है और यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि स्कूल का नेतृत्व और कर्मचारी समस्या की मौजूदगी और उसकी गंभीरता को समझकर दमे के लिए अनुकूल माहौल बनाएं और सक्रिय उपाए करें तथा सुरक्षा, स्वास्थ्य और छात्रों की भलाई के लिए अपनी प्रतिबद्धता के तहत एक आपात दमा प्रबंधन योजना तैयार करें.
यह समझने की आवश्यकता है कि दमे से पीड़ित बच्चे सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं. दमे को यदि नियंत्रण में कर लिया जाए तो ये बच्चे उच्च स्तर के खेलों की प्रतिस्पर्धा में भी भाग ले सकते हैं.
11 विभिन्न भाषाओं में अनुवादित इस नियमावली को भारत भर के पर्यावरण क्लबों (इको क्लबों) के जरिए 1 लाख से अधिक स्कूलों में लागू करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्वीकार किया गया है. इस नियमावली को सरल भाषा में तैयार किया गया है, इसमें बच्चों में दमा और स्कूलों द्वारा लागू की जाने वाली बेहतरीन कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी को शामिल किया गया है.
इस अवसर पर डॉ हर्षवर्धन ने कहा, “दमा नियमावली स्कूली पर्यावरण प्रणाली में दमे के संबंध में मौलिक जानकारी प्राप्त करने में सभी साझेदारों की मदद करेगा और ऐसा माहौल तैयार करने की दिशा में उचित और अमल में लाने योग्य समाधान की पेशकश करेगा जिससे दमे का प्रभावी प्रबंध किया जा सके और इससे पीड़ित बच्चे स्कूल में स्वस्थ, खुशहाल और सक्रिय जीवन बिता सकें.” उन्होंने कहा कि पल्स पोलियो अभियान के बारे में अपने व्यक्तिगत अनुभव से, मैं आश्वस्त हूं कि अध्यापकों, स्कूल प्रशासन, माता-पिता और बच्चों के मिलेजुले प्रयासों से हम स्कूलों में दमा के संबंध में सहयोगपूर्ण माहौल तैयार करने और देश के प्रत्येक बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे.
इस पहल को उजागर करते हुए लंग केयर फाउंडेशन के सीइओ और सह संस्थापक श्री अभिषेक कुमार ने एनडीटीवी से कहा, “भारत में दमा की प्रवृत्ति वाले बच्चों की बढ़ती संख्या के साथ ऐसी जानकारी काफी महत्वपूर्ण हो गई है.” स्कूल जाने वाले 10 प्रतिशत से अधिक बच्चे दमा से पीड़ित हैं. यदि दमे को ठीक से नियंत्रित नहीं किया जाए तो बच्चे की शारीरिक वृद्धि में बाधा आ सकती है. बच्चे के जल्दी-जल्दी स्वास्थ्य देखरेख सुविधाएं लेने की वजह से उसके कक्षा में अनुपस्थित रहने और अपने साथियों के साथ कदम से कदम नहीं मिला पाने के कारण इसका बच्चे पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है. दमे के बारे में और आपात स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी नहीं होने के कारण हाल में स्कूलों में अनेक मौतों के मामले सामने आए हैं. इन सभी को रोका जा सकता है और यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि स्कूल का नेतृत्व और कर्मचारी समस्या की मौजूदगी और उसकी गंभीरता को समझकर दमे के लिए अनुकूल माहौल बनाएं और सक्रिय उपाए करें तथा सुरक्षा, स्वास्थ्य और छात्रों की भलाई के लिए अपनी प्रतिबद्धता के तहत एक आपात दमा प्रबंधन योजना तैयार करें.
यह समझने की आवश्यकता है कि दमे से पीड़ित बच्चे सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं. दमे को यदि नियंत्रण में कर लिया जाए तो ये बच्चे उच्च स्तर के खेलों की प्रतिस्पर्धा में भी भाग ले सकते हैं.
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