नागरिकता कानून को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस कानून की वजह से मुस्लिमों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है और दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी और उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ विश्वविद्यालय में छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भी हुई है इसको नियंत्रित करने के लिए पुलिस को भी बल का सहारा लेना पड़ा. प्रदर्शनों में शामिल हो रहे लोगों के मन में आशंका है वर्तमान सरकार नागरिकता कानून के जरिए एक तरह से मुसलमानों को निशाना बना रही है. सवाल इस बात का है क्या ये क्या वैसा हकीकत में भी है? कई तरह के सवाल और अफवाहें फैल रही हैं. क्या इससे भारत के मुसलमानों के अधिकार छीने जाएंगे? तीन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को ही भारत की नागरिकता क्यों? ऐसे ही इस कानून को लेकर उठ रहे 9 बड़े सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की है NDTV से जुड़े पत्रकार अखिलेश शर्मा ने.
प्रश्न- क्या यह भारतीय हिंदुओं, मुसलमानों या किसी अन्य को प्रभावित करता है?
उत्तर- नहीं. यह किसी भी तरह से किसी भारतीय के अधिकारों को नहीं छीनता है वह चाहे मुसलमान हो या हिंदू या फिर कोई अन्य धर्म को मानने वाला.
प्रश्न- यह किस पर लागू होता है?
उत्तर- यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ना झेलने वाले केवल उन हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाइयों पर लागू होगा जो 1 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके है.
प्रश्न- इन तीन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को यह कानून कैसे लाभ पहुंचाएगा?
उत्तर- उनके निवास की समय सीमा 11 वर्ष से घटा कर पांच वर्ष कर दी गई है. इस कानून के तहत वे नागरिकता पर अधिकार के तहत दावा कर सकते हैं.
प्रश्न- यानी क्या इन तीन देशों के मुसलमान कभी भी भारत की नागरिकता नहीं ले सकेंगे?
उत्तर- ऐसा नहीं है. वे भारत की नागरिकता ले सकते हैं. इसके लिए उन्हें प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्राप्त करने के नियमों के तहत आवेदन करना होगा जिनमें 11 वर्ष से निवास आदि शामिल हैं.
प्रश्न- क्या इस कानून के तहत इन तीन देशों के अवैध प्रवासियों को स्वत: ही निर्वासित कर दिया जाएगा?
उत्तर- ऐसा नहीं होगा. अब तक चली आ रही प्रक्रिया का ही पालन होगा. मौजूदा कानून के तहत ही प्राकृतिक रूप से नागरिक बनने के उनके आवेदन पर कार्यवाही होगी. हर व्यक्ति के मामले के हिसाब से तय होगा.
प्रश्न- केवल इन तीन देशों के बारे में ही कानून क्यों बना? केवल धार्मिक प्रताड़ना को ही आधार क्यों बनाया गया?
उत्तर- केवल इन तीन देशों में ही धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का इतिहास रहा है. विशेष रूप से पाकिस्तान में धार्मिक आधार पर निशाना बनाया जाता रहा है.
प्रश्न- पाकिस्तान के बलूच और अहमदिया या फिर म्यानमार के रोहिंग्या को इस कानून के दायरे में क्यों नहीं रखा गया?
उत्तर- उनके मामलों पर मौजूदा कानून के तहत विचार होगा. उनके लिए विशेष श्रेणी नहीं बनाई गई है.
प्रश्न- श्रीलंका के तमिलों को इस कानून के दायरे में क्यों नहीं लाया गया?
उत्तर- श्रीलंका का गृह युद्ध समाप्त हुए एक दशक से अधिक हो गया. वहां धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि नस्ल या संजातीय आधार पर भेदभाव हुआ करता था. श्रीलंका में इस भेदभाव पर काबू पा लिया गया है.
प्रश्न- क्या संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत भारत शरणार्थियों को अपने यहां शरण देने के लिए बाध्य नहीं है?
उत्तर- हां और भारत अपने दायित्व से भाग नहीं रहा. लेकिन वह हर शरणार्थी को नागरिकता देने के लिए बाध्य नहीं है. हर देश के अपने नियम हैं. भारत इस कानून के तहत किसी भी शरणार्थी को वापस नहीं भेज रहा. वह संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत उन्हें शरण देगा इस अपेक्षा के साथ कि जब उनके यहां हालात ठीक होंगे तो वे अपने घर वापस चले जाएंगे. लेकिन इन तीन देशों के धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के बारे में इस कानून में इस वास्तविकता को स्वीकार किया गया है कि वहां धार्मिक रूप अल्पसंख्यकों के लिए हालात कभी नहीं सुधरेंगे.
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