
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (Amit shah) के कथन के बाद कि वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish kumar) के ही नेतृत्व में पार्टी चुनावी मैदान में जाएगी का सब अपने अपने तरीक़े से विश्लेषण कर रहे हैं. निश्चित रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए इससे अच्छी ख़बर नहीं हो सकती क्योंकि बिहार बीजेपी के शीर्ष नेता सुशील मोदी के बाद अमित शाह के उनके पक्ष में बयान आने के बाद सब कुछ साफ हो गया है और कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं है. साथ ही यह केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के लिए भी वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में झटका माना जा रहा है. जिनको नीतीश कुमार को हर दिन घेरने की योजना पर पहले केंद्रीय नेतृत्व ने रोक लगा दी और साथ ही अब उनकी 'राजनीतिक महत्वकांक्षा' भी अब पूरी होती नहीं दिख रही जो उन्होंने अपने समर्थकों के माध्यम से 'गिरिराज अगला मुख्यमंत्री' जैसा सोशल मीडिया पर प्रचार शुरू किया था. और गिरिराज के लिए सबसे बड़ी कड़वी बात यह है कि पार्टी में ख़ासकर बिहार में गठबंधन को लेकर आख़िर चलती सुशील मोदी की ही है. इसलिए गिरिराज का मोदी घेरो और नीतीश कुमार का विकल्प बनने की योजना फ़िलहाल धराशायी हो चुकी हैं.
अमित शाह के बयान से यह भी साफ़ हुआ है कि कुछ नेताओं के आक्रामक बयान के बावजूद उन्हें मालूम हैं कि बिहार का राजनीति त्रिकोणीय हैं जिसमें एक को हराने के लिए दो दल साथ हो जाएं तो सारी रणनीति फेल हो जाती है. इसके साथ ही नीतीश कुमार पर अभी तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा सकता. दूसरा वे पूरे यूपी और बिहार में पिछड़ों के बड़े नेताओं में से एक हैं जिनको चुनौती देना अपने लिए एक राजनीतिक दुश्मन को खड़ करना है.
लेकिन अमित शाह ने अपने एक इंटरव्यू में माना है कि कि कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं और ये नीतीश कुमार को संकेत हैं कि साथ सरकार चलना तो ठीक है लेकिन ये कैसे होगा कि आपके प्रवक्ता और नेता पवन वर्मा अपने हर लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरेंगे और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के साथ भाजपा को हराने की रननीति बनाएंगे. ये ऐसे मुद्दे हैं जिससे बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व ख़ुश नहीं हैं. हालांकि नीतीश कुमार के बारे में उनको जानने वाले मानते हैं की अगर प्रशांत किशोर से बीजेपी को दिक्कत है तो शायद वो उन्हें पार्टी में कोई पद ना दें.
वैसे भी पिछले साल छात्र संघ चुनाव के बाद उन्होंने पार्टी के कामों से उन्हें अलग रखा था क्योंकि उन्हें मालूम था कि प्रशांत बीजेपी के साथ कोई ना कोई विवाद शुरू कर देते हैं. इसलिए बीजेपी से जब सीटों का तालमेल हो या लोकसभा चुनाव में प्रचार की रणनीति, इन सब कामों में नीतीश ने आरसीपी सिंह और ललन सिंह जैसे अपने पुराने सिपहसलारों पर भरोसा किया.
जहां तक इस बयान का तात्कालिक असर है वो निश्चित रूप से पांच विधानसभा और एक लोकसभा सीट के परिणाम पर दिखेगा. साथ ही सत्ता के गलियारे में जो अधिकारियों के बीच राजनीतिक बयानबाज़ी का एक कानाफूसी होती है उस पर भी विराम लगेगा. अब नीतीश आराम से अपने सरकार के कामकाज पर ध्यान दे सकते हैं क्योंकि जलजमाव के दौरान जैसा राजनीतिक 'तू तू मैं मैं' हुआ उसने लोगों के ग़ुस्से में आग में घी डालने का काम किया है.
हालांकि विधानसभा चुनावों के लिए सब कुछ अब ठीक हो गया है, ऐसी भी बात नहीं है. दोनो दलों के बीच विधानसभा चुनावों के पूर्व सीटों को लेकर खींचातान होना तय है. BJP नेता चाहते हैं कि जैसे नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में बराबरी-बराबरी के सिद्धांत को माना है वैसा ही विधानसभा चुनाव में भी वो मानें. बीजेपी का कहना है कि नीतीश कुमार ने इस सिद्धांत को मानने की उदारता 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के लिए दिखाई थी जब दोनों पार्टियां बराबरी बराबरी के सीटों पर लड़ी थीं.
अमित शाह ने गिरिराज सिंह को लगाई फटकार
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