असम: कोरोना महामारी के बीच गांव लौटे युवाओं के लिए रोजगार सृजन में यूं मददगार बन रहे परीक्षित दत्‍ता..

कोरोना महामारी के प्रकोप के दौर में जब प्रवासी अपने घर वापस लौट रहे थे,  दत्ता ने कम से कम 60 युवाओं को मछली पालन का प्रशिक्षण दिया और उन्हें मत्स्य पालन उद्योग के रूप में स्थापित करने में मदद की. वे उन्नत जैव ईंधन प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं जिससे छोटी सी जगह में ही किसान बड़ी संख्या में 'मछली पैदा करने' में सक्षम हैं.

असम: कोरोना महामारी के बीच गांव लौटे युवाओं के लिए रोजगार सृजन में यूं मददगार बन रहे परीक्षित दत्‍ता..

परीक्षित दत्ता ने करीब 60 पुरुषों को गोलाघाट जिले में 'फिशरीज' स्थापित करने में उनकी मदद की है

गोलाघाट (असम):

Coronavirus Pandemic:  असम के गोलाघाट जिले (Assam's Golaghat district) के 42 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता (social worker) रोजगार सृजन में युवाओं के लिए मददगार बनकर उभरे हैं. रिदम एग्रीकल्चर ग्रुप के कार्यकारी अध्यक्ष परीक्षित दत्ता (Parikshit Dutta) उन युवाओं की मदद कर रहे हैं जो कि कोरोना वायरस महामारी और इसके बाद जारी लॉकडाउन (Coronavirus lockdown,)के कारण देश के महानगरों में नौकरी या आश्रय के बिना रह गए हैं. वे फॉर्म फिश जैसे उपायों के जरिये घर में ही उनके लिए आजीविका के अवसर पैदा कर इन लोगों के लिए गांवों में ही सुनहरे भविष्‍य की उम्‍मीद पैदा कर रहे हैं.. इस बात को समझते हुए कि देश में COVID-19 मामलों की लगातार हो रहे इजाफ के बीच गांवों और छोटे शहरों में आर्थिक रूप से व्यवहार्य कार्य विकसित करने की आवश्यकता है, दत्‍ता ने शहर से गांव लौटे युवाओं के लिए यह पहल की है. शहरों में कोरोना के बढ़ते केसों के मद्देनजर कई प्रवासी अपने घर लौट आए हैं. उनके लिए फिलहाल शहर जल्‍दी वापस लौटेने की स्थिति नहीं है, ऐसे में गांव में रहते हुए रोजगार के अवसर की तलाश किसी चुनौती से कम नहीं है. दत्‍ता इस काम में इन युवाओं के लिए सहारा बन रहे हैं.

पीली टी-शर्ट में एक युवक ने NDTV को बताया, "मैं शहर वापस नहीं जाऊंगा और गांव में ही काम करने की कोशिश करूंगा. मैं किसानों के परिवार से हूं इसलिए मुझे देखना होगा कि मैं क्या कर सकता हूं." रिदम एग्रीकल्चर ग्रुप के कार्यकारी अध्यक्ष परीक्षित दत्ता ने यहां पर एक NGO के रूप में कदम रखा है यह एनजीओ गांवों में रोजगार सृजन के काम में जुटा है.

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कोरोना महामारी के प्रकोप के दौर में जब प्रवासी अपने घर वापस लौट रहे थे,  दत्ता ने कम से कम 60 युवाओं को मछली पालन का प्रशिक्षण दिया और उन्हें मत्स्य पालन उद्योग के रूप में स्थापित करने में मदद की. वे उन्नत जैव ईंधन प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं जिससे छोटी सी जगह में ही किसान बड़ी संख्या में 'मछली पैदा करने' में सक्षम हैं. दत्‍ता ने बताया, "उन युवाओं के लिए कुछ करने की जरूरत थी जो गांव वापस लौटे हैं, ऐसे में हमने मत्स्य पालन शुरू करने में मदद करने के बारे में सोचा. हमने उन्हें छोटी मछली और मछली पकड़ने के जाल दिए हैं और उन्हें एक को-आपरेटिव संस्‍था शुरू करने में मदद की है. ”दत्ता द्वारा प्रशिक्षण प्राप्‍त पुरुषों के समूह को 50,000 छोटी मछलियाँ प्रदान की गई हैं और अब तक पांच 'फिशरीज' खोली जा चुकी हैं. गांव में ही एक ब्‍लू शर्ट पहने युवा ने NDTV से कहा, "हम, युवाओं की मानसिकता रही है कि गांव में कुछ भी नहीं किया जा सकता है और इसलिए हम बाहर जाते हैं. लेकिन मछली पालन के इस काम ने हमें प्रेरित किया है. इसने हमें यह सोचने की अनुमति दी है कि हम अपने लिए बहुत कुछ कर सकते हैं."

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गौरतलब है कि असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने हाल ही में मत्स्य विभाग को निर्देश दिया था कि COVID-19 के प्रकोप के कारण राज्य में लौटने वाले युवाओं के लिए एक केंद्र सरकार की योजना के तहत रोजगार के अवसर पैदा करें और ब्‍लू रिवोल्‍यूशन लाने में मदद करें.उन्होंने ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के तट पर "मछली लैंडिंग पोर्ट" स्थापित करने और बेहतर बाजार संपर्क के लिए "मछली किसान-उत्पादक समूह" बनाने के निर्देश भी अधिकारियों को दिए हैं.