संसद पर आतंकवादी हमले के 12 साल बाद मामले के दोषी अफजल गुरु को शनिवार सुबह आठ बजे दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। फांसी देने की पूरी कार्रवाई गोपनीय रखी गई।
यहां के तिहाड़ जेल में अफजल को जिस सेल में रखा गया था उसके बाहर सुबह आठ बजे मरते दम तक फांसी पर लटका दिया गया। मरने के तुरंत बाद उसे दफना भी दिया गया।
13 दिसंबर 2001 को पांच हथियार बंद आतंकवादी संसद भवन परिसर में घुस आए और हमला बोल दिया। इस हमले में 10 लोग मारे गए थे। जिस समय हमला हुआ था उस समय संसद भवन में 100 सांसद मौजूद थे।
अफजल के अंत पर छह रोज पहले उस समय मुहर लग गई जब 3 फरवरी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी।
कश्मीर घाटी के सोपोर कस्बे के समीप दोआबगाह (सीर) गांव के रहने वाले अफजल को शुक्रवार की शाम से पता था कि उसे फांसी दे दी जाएगी। उसकी आखिरी घड़ी को याद करते हुए तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने बताया कि शनिवार सुबह पांच बजे वह जगा और फांसी के तख्ते पर जाने से पहले उसने नमाज अदा की।
सर्वोच्च न्यायालय से फांसी पर मुहर लगने के बाद से जिस सेल में उसने अपना लंबा अकेलापन गुजारा उसी के समीप उसे दफना दिया गया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले के दोषी पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के महज तीन माह बाद अफजल की फांसी की खबर जैसे ही फैली, वैसे ही कश्मीर घाटी में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
बड़े शहरों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया और पुलिस एवं अर्ध सैनिक बलों, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को प्रदर्शनकारियों को काबू में रखने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी। सुरक्षा बलों से संघर्ष के दौरान कई लोग घायल हो गए जिनमें से दो की हालत नाजुक है।
हुर्रियत कान्फ्रेंस के नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारूक ने अफजल की फांसी पर चार दिन का शोक घोषित किया है। गुट ने कहा है, "यह राजनीतिक हत्या है जिसका भारत की न्याय प्रणाली से लेना-देना नहीं है।"
मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, "मेरे गृह मंत्री पद संभालने के बाद अफजल गुरु का भी मामला राष्ट्रपति की ओर से मुझे भेजा गया। मैंने मामले का विस्तृत अध्ययन किया और 21 जनवरी को राष्ट्रपति के पास अपनी सिफारिश भेज दी और वहां से फाइल मेरे पास 3 फरवरी को लौट कर आई। न्यायपालिका ने 8 फरवरी को फांसी की तारीख मुकर्रर की और समय भी तय किया।"
जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें शुक्रवार शाम 8 बजे फैसले की सूचना दी गई।
अफजल को फांसी दिए जाने का भाजपा और वाम दलों ने भी स्वागत किया है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का नजरिया हालांकि भिन्न है। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर ने कहा, "आज की फांसी में शालीनता की दरकार थी। वह कसाब के जैसा नहीं था। वह एक भारतीय था।"
संसद पर हमला मामले में आरोप से बरी किए गए दिल्ली विश्वविद्यालय के व्याख्याता एसएआर गिलानी ने कहा कि प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया।
गिलानी ने बताया, "मैंने सुबह साढ़े छह पौने सात बजे अफजल की पत्नी को जगाया और उसे फांसी की अफवाह के बारे में बताया। यह उसके लिए हतप्रभ करने वाली सूचना थी। उसने कहा कि परिवार के किसी भी सदस्य को इसके बारे में नहीं बताया गया है।"
अफजल गुरु के छोटे भाई यासीन गुरु ने भी कहा कि उन्हें फांसी दिए जाने या राष्ट्रपति द्वारा याचिका ठुकराए जाने की कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि अफजल की पत्नी तबस्सुम गहरे सदमे में है। वह और परिवार के सभी सदस्य अब उसका शव सौंपे जाने की मांग कर रहे हैं।
इसके विपरीत गृह सचिव आरके सिंह ने दावा किया है कि परिवार को फांसी के बारे में सूचित कर दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 में अफजल को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। उसे अक्टूबर, 2006 में फांसी होनी थी लेकिन उसकी पत्नी की ओर से दया याचिका दायर करने के बाद इस पर रोक लग गई।
अफजल के परिवार में उसकी पत्नी तब्बसुम और 14 वर्षीय बेटा गालिब है।
अफजल को 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुए हमले के बाद गिरफ्तार किया गया था। उसे शौकत हुसैन, शौकत की पत्नी अफशान गुरु, और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राख्याता एसएआर गिलानी के साथ दोषी ठहराया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 में अफजल की फांसी की सजा की पुष्टि कर दी थी, जबकि शौकत गुरु की कारावास की सजा पूरी हो जाने पर उसे रिहा कर दिया गया था।
अफशान गुरु और एसएआर गिलानी को संदेह का लाभ मिला और सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों को मामले से बरी कर दिया था।
यहां के तिहाड़ जेल में अफजल को जिस सेल में रखा गया था उसके बाहर सुबह आठ बजे मरते दम तक फांसी पर लटका दिया गया। मरने के तुरंत बाद उसे दफना भी दिया गया।
13 दिसंबर 2001 को पांच हथियार बंद आतंकवादी संसद भवन परिसर में घुस आए और हमला बोल दिया। इस हमले में 10 लोग मारे गए थे। जिस समय हमला हुआ था उस समय संसद भवन में 100 सांसद मौजूद थे।
अफजल के अंत पर छह रोज पहले उस समय मुहर लग गई जब 3 फरवरी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी।
कश्मीर घाटी के सोपोर कस्बे के समीप दोआबगाह (सीर) गांव के रहने वाले अफजल को शुक्रवार की शाम से पता था कि उसे फांसी दे दी जाएगी। उसकी आखिरी घड़ी को याद करते हुए तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने बताया कि शनिवार सुबह पांच बजे वह जगा और फांसी के तख्ते पर जाने से पहले उसने नमाज अदा की।
सर्वोच्च न्यायालय से फांसी पर मुहर लगने के बाद से जिस सेल में उसने अपना लंबा अकेलापन गुजारा उसी के समीप उसे दफना दिया गया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले के दोषी पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के महज तीन माह बाद अफजल की फांसी की खबर जैसे ही फैली, वैसे ही कश्मीर घाटी में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
बड़े शहरों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया और पुलिस एवं अर्ध सैनिक बलों, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को प्रदर्शनकारियों को काबू में रखने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ी। सुरक्षा बलों से संघर्ष के दौरान कई लोग घायल हो गए जिनमें से दो की हालत नाजुक है।
हुर्रियत कान्फ्रेंस के नरमपंथी धड़े के नेता मीरवाइज उमर फारूक ने अफजल की फांसी पर चार दिन का शोक घोषित किया है। गुट ने कहा है, "यह राजनीतिक हत्या है जिसका भारत की न्याय प्रणाली से लेना-देना नहीं है।"
मामले पर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, "मेरे गृह मंत्री पद संभालने के बाद अफजल गुरु का भी मामला राष्ट्रपति की ओर से मुझे भेजा गया। मैंने मामले का विस्तृत अध्ययन किया और 21 जनवरी को राष्ट्रपति के पास अपनी सिफारिश भेज दी और वहां से फाइल मेरे पास 3 फरवरी को लौट कर आई। न्यायपालिका ने 8 फरवरी को फांसी की तारीख मुकर्रर की और समय भी तय किया।"
जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें शुक्रवार शाम 8 बजे फैसले की सूचना दी गई।
अफजल को फांसी दिए जाने का भाजपा और वाम दलों ने भी स्वागत किया है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का नजरिया हालांकि भिन्न है। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर ने कहा, "आज की फांसी में शालीनता की दरकार थी। वह कसाब के जैसा नहीं था। वह एक भारतीय था।"
संसद पर हमला मामले में आरोप से बरी किए गए दिल्ली विश्वविद्यालय के व्याख्याता एसएआर गिलानी ने कहा कि प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया।
गिलानी ने बताया, "मैंने सुबह साढ़े छह पौने सात बजे अफजल की पत्नी को जगाया और उसे फांसी की अफवाह के बारे में बताया। यह उसके लिए हतप्रभ करने वाली सूचना थी। उसने कहा कि परिवार के किसी भी सदस्य को इसके बारे में नहीं बताया गया है।"
अफजल गुरु के छोटे भाई यासीन गुरु ने भी कहा कि उन्हें फांसी दिए जाने या राष्ट्रपति द्वारा याचिका ठुकराए जाने की कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि अफजल की पत्नी तबस्सुम गहरे सदमे में है। वह और परिवार के सभी सदस्य अब उसका शव सौंपे जाने की मांग कर रहे हैं।
इसके विपरीत गृह सचिव आरके सिंह ने दावा किया है कि परिवार को फांसी के बारे में सूचित कर दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 में अफजल को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। उसे अक्टूबर, 2006 में फांसी होनी थी लेकिन उसकी पत्नी की ओर से दया याचिका दायर करने के बाद इस पर रोक लग गई।
अफजल के परिवार में उसकी पत्नी तब्बसुम और 14 वर्षीय बेटा गालिब है।
अफजल को 13 दिसम्बर 2001 को संसद पर हुए हमले के बाद गिरफ्तार किया गया था। उसे शौकत हुसैन, शौकत की पत्नी अफशान गुरु, और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राख्याता एसएआर गिलानी के साथ दोषी ठहराया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 में अफजल की फांसी की सजा की पुष्टि कर दी थी, जबकि शौकत गुरु की कारावास की सजा पूरी हो जाने पर उसे रिहा कर दिया गया था।
अफशान गुरु और एसएआर गिलानी को संदेह का लाभ मिला और सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों को मामले से बरी कर दिया था।
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