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आज छह महीने बाद वह समय आ चुका था जब उसे वह करने दिया जाए, जिसके लिए बीते कई महीनों से वह प्रयासरत्त थी... जी हां, अब समय था अन्नप्राशन अनुष्ठान का. हिंदू समाज में यह बच्चे के जीवन का एक अहम पल होता है. जैसा कि हम जानते हैं शुरुआती छह महीनों तक नवजात शिशुओं को बेहद सावधानी और ध्यान से रखा जाता है. इन छह महीनों में सिर्फ मां का दूध ही बच्चे को दिया जाता है. और इन छह महीनों के बाद जब उसे तरल पदार्थ से ठोस भोजन देना शुरू किया जाता है तो यह उसके जीवन का एक अहम पड़ाव होता है... इस समय को हिंदू समुदाय में व्यापक रूप से मनाया जाता है, जिसे अन्नप्रसार नाम से जाना जाता है.
क्या है अन्नप्राशन अनुष्ठान ?
हिंदू धर्म में जीवन के अहम अनुष्ठानों में से एक है अन्नप्राशन अनुष्ठान. अन्नप्राशन वास्तव में वह समय है जब बच्चे को पहली बार अन्न खिलाया जाता है. अन्नप्राशन एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब होता है 'भोजन खिलाना'. और इस अनुष्ठान के दौरान क्योंकि जीवन में पहली बार अन्न दिया जाता है तो यह पूरे परिवार के लिए पर्व की तरह होता है.
यह अनुष्ठान उत्तर भारत, बंगाली समुदाय, और मलयाली समुदाय में काफी अहम महत्व रखता है. जहां उत्तर भारत में इसे अन्नप्राशन कहा जाता है वहीं बंगाली में इसे चोरुनल वे घारवाल में इसे भक्तखुलई के रूप में जाना जाता हैं.
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कैसे किया जाता है अन्नप्राशन संस्कार?
अन्नप्राशन संस्कार समारोह को 4 महीने से कम उम्र के बच्चे या पहले साल पूरा होने के बाद नहीं किया जाना चाहिए. यह संस्कार किस स्तर पर किया जाएगा यह परिवार के अपने निर्णय पर होता है. कुछ लोग इसे बड़े स्तर पर मनाते हैं, तो कुछ इसे घर के लोगों के साथ ही छोटे स्तर पर मनाते हैं. पहला प्रसाद देवी देवताओं के लिए बनाया जाता है. लोग बच्चे की स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु के लिए कामना करते हैं और अन्न का आहार देने से पहले उसको आशीर्वाद देते हैं. बच्चे के इस संस्कार के दौरान पारंपरिक कपड़े पहनाए जाते हैं. शिशु को अपने मामा की गोद में बैठाया जाता हैं जो उन्हें ठोस भोजन का पहला निवाला खिलते हैं.
मामा के द्वारा पहला निवाला खिलने के बाद, परिवार के दूसरे लोग भी बच्चे को अपने हाथ से भोजन चखाते हैं. इस दौरान बच्चे को चांदी की थाली में खाना दिया जाता है. इस समारोह में चावल, मछली और सब्जियों की एक कटोरी और गुड़ जैसे अन्य खाद्य पदार्थ होते हैं. पुजारियों को पूजा करने के लिए बुलाया है और बच्चे की स्वस्थ और शुभ शुरुआत के लिए प्रार्थना की जाती है.
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क्या है महत्व?
भारत में अन्नप्राशन संस्कार की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है. कुछ इतिहासकारों के अनुसार, यह समारोह ईरानी संस्कृति और पारसी के बीच भी प्रचलित है. बंगाल में, अन्नप्राशन 'मुखखे भाट' के रूप में भी जाना जाता है. बच्चा जब 6 से 9 महीनों की उम्र के बीच तरल पदार्थ से ठोस पदार्थ लेने के लिए तैयार होता है तब यह समारोह किया जाता है. लड़कों के लिए, यह समारोह छठे या आठवें माह में आयोजित किया जाता है, और लड़कियों के लिए शुभ तारीख के अनुसार. अगर अन्नप्राशन के लिए अभी बच्चा कमजोर है, तो समारोह बाद में किया जा सकता है. हिंदू ग्रंथों के मुताबिक, अन्नप्राशन समारोह को 4 महीने से कम उम्र के बच्चे या पहले साल पूरा होने के बाद नहीं किया जाना चाहिए.
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