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This Article is From Aug 28, 2017

माइंडलेस एंटरटेनर करने में यकीन नहीं रखते फरहान अख्तर

एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज कॉनक्लेव में ‘छोटे शहर की बड़ी कहानी...’ सेशन में बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर करियर से लेकर परिवार तक पर की बात

माइंडलेस एंटरटेनर करने में यकीन नहीं रखते फरहान अख्तर
नई दिल्ली: एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज कॉनक्लेव में ‘छोटे शहर की बड़ी कहानी...’ सेशन में बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर ने मंच संचालक निधि कुलपति से खुलकर दिल की बातें की. फरहान सिंगर, कंपोजर, डायरेक्टर और एक्टर तक के रोल निभा चुके हैं. वे जावेद अख्तर और हनी ईरानी के पुत्र हैं. ‘दिल चाहता है’ उनकी पहली फिल्म थी और जल्द ही उनकी ‘लखनऊ सेंट्रल” रिलीज होने वाली है. उन्होंने फिल्मों को लेकर अपनी पसंद के बारे में बताया, “मैं कोशिश करता हूं कि ऐसी कहानी पर काम किया जाए जो नए किस्म की हो. माइंडलेस एंटरटेनमेंट न हो. ऐसा मैसेज होना चाहिए जो दर्शक अपने साथ ले जा सकें. इंस्पिरेशन हो या सोशल मैसेज हो. ‘लखनऊ सेंट्रल’ में अच्छी बात यह थी जो इसके एक डायलॉग से साफ हो जाती है ‘बंदे बंद हो सकते हैं, लेकिन सपने नहीं’. यही बात इस फिल्म को बयान कर देती है.”

Video: अब छोटे शहरों पर कहानियां क्यों बन रही हैं, बता रहे हैं फरहान



छोटे शहरों पर बन रही फिल्में
मेरा यह मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री में जो कहानियां कही जाती हैं, वह ऑडियंस के मद्देनजर ही कही जाती है. इस समय ऐसी कहानियां कही जा रही हैं क्योंकि दर्शक ऐसा चाहते हैं. फिल्म इंडस्ट्री और लोग चाहते थे कि हम अपने लोगों की बात करें. दस साल पहले एनआरआइ का जमाना था. लव स्टोरी बहुत पॉपुलर थीं. रोमांस को पेश किया जाता था. फैंटसी की दुनिया बनती चली गई. लेकिन लोग अपने बारे में बातें शेयर करना चाहते हैं. 

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धीरे-धीरे आता है बदलाव
मेरे ख्याल से चीजें ऐसे ही होती हैं. कोई भी इंडस्ट्री धीरे-धीरे बदलती है. रातोरात नहीं. एक समय दिल्ली से लोग आए फिल्म इंडस्ट्री में आए. उस समय बहुत सारी फिल्में दिल्ली से बनी थीं. यह दो चार साल पहले की बात है. अब दिल्ली की स्टोरी से लोग बोर हो चुके हैं. अब यूपी-बिहार-राजस्थान से राइटर आ रहे हैं. तो कहानियां भी वैसी ही आ रही हैं. अब वह सब कहानियों में नजर आ रहा है. हम काफी खुशनसीब हैं. 

कैसे आए फिल्मों में 
मेरे घरवालों को लगता था कि इसका कुछ नहीं हो सकता. मैं बहुत शर्मिला था. मैं लोगों को नहीं बताना चाहता था कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में जाना चाहता था. इसलिए मैं बहाने मारा करता था. 1992 में ऐसा कुछ हुआ कि मैं कॉलेज नहीं जा रहा था. मेरी मां परेशान थी कि यह अपनी जिंदगी के साथ कुछ नहीं कर रहा. मैं कॉमर्स की डिग्री कर रहा था. लेकिन मेरी दिलचस्पी नहीं थी. फिर मैंने सब कुछ छोड़ एक प्रोडक्शन कंपनी के साथ असिस्टेंट के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. वहां मेरे बॉस ने मुझे डिसिप्लिन लाने के लिए कहा और करियर पर फोकस करने को कहा. 

Video: हिट फिल्म के लिए लोकेशन नहीं, कहानी अच्छी होनी चाहिए: फरहान



युवाओं से आगे बढऩे के लिए
हर इनसान के अंदर एक टैलेंट है. वह किसी भी एरिया में हो सकता है. अगर आप उसे फोकस करके पहचान सकें, और फिर उस पर काम कर सकें तो बेस्ट है. अपने में अनुशासन पैदा करें. कुछ करें, जो आपको करना पसंद हो.

सुकून किसमें मिलता है
सबसे ज्यादा मुझे म्यूजिक में सुकून मिलता है. म्यूजिक थेरेपी की तरह है. जब स्टेज पर परफॉर्म करता हूं, उस शांति को बयान करना मुश्किल है.

कौन-सा कैरेक्टर है सबसे करीब
‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ का इमरान मेरी जिंदगी के सबसे करीब है. वह किरदार जोया और रीमा ने मेरी पर्सेनेलिटी पर ही बेस किया था.

माता-पिता का दबाव
घरवालों ने हमें जिदंगी में कभी फील नहीं करवाया तुम्हें कुछ करना ही होगा. हमारे ऊपर नाम को आगे ले जाने का कभी बोझ नहीं था. पिताजी कहते थे जो करना है वह करो. ऐसे में जो आप करते हैं, खुलकर करते हैं. हम दोनों भाई बहन को एक करेज मिला है. वह हमे पेरेंट्स के नॉन इंटरफेरेंस से मिला है.

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