हाल में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड, अरुणाचल में गलत तरीके से कांग्रेस सरकारें गिराकर राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसले को पलटा, और इस पृष्ठभूमि में पीएम के साथ हुई एक बैठक में कई मुख्यमंत्रियों ने कहा कि केंद्र को सहयोगात्मक संघीय व्यवस्था का सम्मान कर उसे बढ़ावा देना चाहिए, जिसके लिए पीएम बार-बार प्रतिबद्धता जताते हैं... दिल्ली में अंतरराज्यीय परिषद के सत्र में पीएम के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी - दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल व बिहार के सीएम नीतीश कुमार - उनके सामने थे... सत्र में नीतीश ने एक बड़ी मांग रखी - राज्यपाल का पद खत्म हो, या उसमें बड़े स्तर पर संशोधन हो... विपक्ष का आरोप रहा है कि राज्यपाल केंद्र के इशारे पर काम करते हैं, ताकि गैर-बीजेपी सरकारों को मामूली कारणों से भी गिराया जा सके, और वे राष्ट्रपति शासन के ज़रिये सीधे केंद्र द्वारा शासित हों...
- राज्यपाल को नियुक्त करने तथा हटाने के बारे में राज्य सरकार का मत है कि सबसे पहले तो देश के मौजूदा संघीय लोकतांत्रिक ढांचे में राज्यों में राज्यपालों के पद को जारी रखने की कोई ज़रूरत ही नहीं है... बहरहाल, अगर इसे खत्म किया जाना मुमकिन नहीं हो, तब हमारा विचार है कि राज्यपाल की नियुक्ति के प्रावधानों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए, तथा उन्हें पारदर्शी बनाया जाए...
- इसके साथ-साथ, राज्यपाल की नियुक्ति के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री से भी सलाह ली जानी चाहिए, और सरकारिया आयोग द्वारा सुझाए गए मानकों का पालन किया जाना चाहिए... राज्यपाल की नियुक्ति माननीय राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन राज्यपाल को हटाए जाने से पहले राज्य के मुख्यमंत्री से औपचारिक सलाह-मशविरा ज़रूर किया जाना चाहिए, और अगर आवश्यकता हो, तो संविधान के अनुच्छेद 155 में संशोधन किया जाना चाहिए...
- नई सरकार के बनते ही राज्यपालों को बदलने की परिपाटी संवैधानिक प्रावधान कर रोकी जानी चाहिए... संविधान के अनुच्छेद 163 (2) में उल्लिखित राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को अधिक स्पष्ट किए जाने की ज़रूरत है... उनकी विवेकाधीन शक्तियां अनुच्छेद 356 के अंतर्गत केंद्र को रिपोर्ट भेजे जाने तक सीमित कर दी जानी चाहिए...
- अन्य सभी मामलों में राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सहायता और परामर्श से ही काम करना चाहिए, जैसी व्यवस्था संविधान के अनुच्छेदों 200 तथा 201 में की गई है...
- सरकारिया आयोग ने यह सिफारिश भी की थी कि मुख्यमंत्री को हटाए जाने से पहले राज्यपाल को उन्हें सदन में बहुमत सिद्ध करने का मौका देना होगा... इसका पूरी तरह पालन होना चाहिए...
- संविधान के अनुच्छेदों 355 और 356 के संदर्भ में आयोग ने कहा था कि इन प्रावधानों का प्रयोग बेहद गंभीर तथा अतिरेकी आपात परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, जब शेष सभी संवैधानिक प्रावधान विफल हो चुके हों...
- आयोग ने यह भी कहा था कि ऐसे हालात भी हो सकते हैं, जो गंभीर आपात परिस्थितियां नहीं कही जा सकें, परंतु कुछ खास इलाकों में 'स्थानीय आपातकाल' जैसे हालात पैदा कर दें, तो ऐसे में केंद्र सरकार को अनुच्छेद 355 में प्रदत्त प्रावधानों के ज़रिये हस्तक्षेप करने की स्थिति में होना चाहिए...
- इस संदर्भ में हमारा मानना है कि संविधान में 'गंभीर आपात परिस्थितियों' की स्पष्ट व्याख्या की गई है, और उसमें गलत अर्थ लिए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है...
- केंद्र सरकार को संविधान के दायरे में रहकर ही काम करना चाहिए...
- बहरहाल, यदि यह सिद्ध हो जाता है कि राज्य सरकार अपने 'राजधर्म' का पालन नहीं कर रही है, तब दुर्लभतम से भी दुर्लभ हालात में, केंद्र सरकार संविधान के मौजूदा प्रावधानों का प्रयोग कर हस्तक्षेप कर सकती है...