Varuthini Ekadashi 2020: हिन्दू वर्ष की तीसरी एकादशी यानी वैशाख कृष्ण एकादशी को 'वरूथिनी एकादशी' (Varuthini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. वरूथिनी एकादशी का उत्तर भारत और दक्षिणा भारत में बड़ा महात्म्य है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुण्य और सौभाग्य मिलता है. साथ ही सृष्टि के रचयिता श्री हरि विष्णु स्वयं भक्त की रक्षा करते हैं. जो लोग वरूथिनी एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें दशमी के दिन से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. फिर एकादशी (Ekadashi) के एक दिन बाद यानी कि द्वादश को पूर्ण विधि-विधान से व्रत का पारण करना चाहिए. कहते हैं कि वरूथिनी एकादशी के व्रत के प्रताप से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
वरूथिनी एकादशी कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की तिथि को आने वाली एकादशी को वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक वरूथिनी एकादशी हर साल मार्च या अप्रैल महीने में आती है. इस बार वरूथिनी एकादशी 18 अप्रैल को है.
वरूथिनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी व्रत की तिथि: 18 अप्रैल 2020
एकादशी तिथि आरंभ: 17 अप्रैल 2020 को रात 8 बजकर 03 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 18 अप्रैल 2020 को रात 10 बजकर 17 मिनट तक
पारण का समय: 19 अप्रैल 2020 को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से सुबह 08 बजकर 27 मिनट तक
वरूथिनी एकादशी का महत्व
वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के 'वरूथिन्' से बना है, जिसका मतलब है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से विष्णु भगवान हर संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं, इसलिए इसे वरूथिनी ग्यारस कहा जाता है. पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इस व्रत से मिलने वाले पुण्य के बारे में युधिष्ठिर को बताते हैं, 'पृथ्वी के सभी मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त भी इस व्रत के पुण्य का हिसाब-किताब रख पाने में सक्षम नहीं हैं.'
वरूथिनी एकादशी की पूजा विधि
वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन और विष्णु के वराह अवतार की प्रतिमा की पूजा की जाती है. एकादशी का व्रत रखने के लिए एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से ही नियमों का पालन करना चाहिए. दशमी के दिन केवल एक बार ही भोजन ग्रहण करें. भोजन सात्विक होना चाहिए. एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद विष्णु के वराह अवतार की पूजा करें. व्रत कथा पढ़ें या सुनें. रात में भगवान के नाम का जागरण करना चाहिए. एकादशी के अगले दिन यानी कि द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन कराएं. साथ ही दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए.
व्रत कर रहे हैं तो इन बातों का रखें ध्यान:
1. कांसे के बर्तन में भोजन न करें
2. नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्जी और शहद का सेवन न करें.
3. कामवासना का त्याग करें.
4. व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए.
5. पान खाने और दातुन करने की मनाही है.
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