विज्ञापन
This Article is From Mar 22, 2014

चुनाव डायरी : झाड़ू यानी नोटा?

नई दिल्ली:

चुनावों में एक नया चलन शुरू हुआ है। नोटा का। यानी नन ऑफ द अबव (ऊपर दिए गए में से कोई नहीं) का। इलैक्ट्रानिंक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में सबसे नीचे नोटा का एक अलग बटन लगाया गया है। जो मतदाता किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते हैं, वो ये बटन दबा सकते हैं।

इस वोट का चुनाव परिणामों पर कोई असर नहीं होता। यानी अगर किसी चुनाव में नोटा को सबसे ज़्यादा वोट मिल भी जाएं तो नोटा को नहीं, बल्कि दूसरे नंबर पर आए उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाएगा। उम्मीदवारों की जमानत जब्त होने के फार्मूले में भी इनकी गिनती नहीं होती है। तो सवाल ये है कि कोई मतदाता अपने घर से चिलचिलाती धूप में निकल कर मतदान केंद्र पर घंटों लंबी लाइन में लगने के बाद नोटा को वोट देकर क्यों आएगा? लेकिन कई लोग ऐसा कर रहे हैं।

हाल के विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा बटन का इस्तेमाल किया गया। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के साढ़े ग्यारह करोड़ मतदाताओं में से 15 लाख ने नोटा का बटन दबाया। यानी सिर्फ सवा फीसदी वोटरों ने। ये कोई बहुत बड़ी संख्या नहीं है। लेकिन माना जा रहा है कि दिल्ली में कांग्रेस से नाराज़ कई वोटरों ने नोटा का बटन दबा कर उसे नुकसान पहुंचाया। इसी तरह छत्तीसगढ़ के माओवादी प्रभावित इलाकों में लोगों ने बड़ी संख्या में नोटा का बटन दबा कर राजनीतिक पार्टियों के प्रति अपना अविश्वास व्यक्त किया।

नोटा का बटन दबाने वाले ज्यादातर लोग वो हैं जिनका मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से विश्वास उठ चुका है। कांग्रेस हो या बीजेपी या फिर अन्य कोई प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दल, ये लोग इन्हें अपना समर्थन नहीं देना चाहते। छत्तीसगढ़ में माओवादियों के असर वाले इलाकों में बड़ी संख्या में नोटा को डले वोट ये दिखाते हैं।

दिल्ली में अगर आम आदमी पार्टी मैदान में नहीं होती, तो शायद यहां नोटा को ज़्यादा वोट मिले होते। यानी कांग्रेस और बीजेपी से नाराज ऐसे लोग जो नोटा का बटन दबाना चाहते थे, उन्होंने इसके बजाए झाड़ू को वोट देना बेहतर समझा।

तो क्या आम आदमी पार्टी एक ऐसे माध्यम के रूप में उभर रही है जिसके जरिये लोग अपना गुस्सा निकाल सकते हैं? ‘सब चोर हैं’, ये कहने वाले कई लोग समाज में हैं। व्यवस्था के प्रति गुस्सा रखने वाले लोग इस बात से नहीं हिचकिचाते कि उन्हें घर से चलकर मतदान केंद्रों में जा कर भी एक ऐसे बटन को दबाना है जिससे कुछ नहीं होने वाला। नकारात्मक मतदान देश या समाज को सही दिशा नहीं दे सकता। नोटा इसी का संकेत है।

कई लोगों के लिए नोटा को वोट देना आम आदमी पार्टी को वोट देने जैसा ही गया है। जिससे कुछ बदलने वाला नहीं, मगर व्यवस्था के प्रति अपने गुस्से का ज़रूर इज़हार किया जा सकता है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
आम आदमी पार्टी, नोटा, लोकसभा चुनाव 2014, आम चुनाव 2014, Aam Admi Party, NOTA, General Elections 2014, Lok Sabha Polls 2014
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com