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This Article is From Mar 13, 2014

चुनाव डायरी: 'केजरीवाल का मास्टरप्लान'

चुनाव डायरी: 'केजरीवाल का मास्टरप्लान'
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

कुछ दिन से आम आदमी पार्टी कवर करने वाले एक पत्रकार का दिल और दिमाग एक बात समझ नहीं पा रहा था- आखिर क्यों अरविंद केजरीवाल अचानक सारे लाव लश्कर लेकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ झंडा बुलंद किये जा रहे हैं? आखिर क्यों केजरीवाल की बात से ऐसा लग रहा है कि इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या मोदी हैं?


आखिर क्यों आम आदमी पार्टी से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि मोदी जहां से लड़ेंगे, वहीं से केजरीवाल उम्मीदवार होंगे?
आखिर क्यों अचानक केजरीवाल मोदी से किसी भी कीमत पर भिड़ने पर उतारू हैं?


बहुत सोच-विचार, चिंतन-मनन के बाद मैं जो समझ रहा हूं और जो समझाने जा रहा हूं, वह किसी पार्टी नेता से हुई बातचीत, या सूत्र के हवाले से आयी खबर नहीं है, बल्कि एक रिपोर्टर की समझ है, वह रिपोर्टर जिसने पहले दिन से आंदोलन कवर करना शुरू किया था। लेकिन आज एक राजनीतिक पार्टी को कवर कर रहा है।

असल में दिसंबर 2013 में आम आदमी पार्टी दिल्ली में शानदार प्रदर्शन करने के बाद लोकसभा चुनाव में ज़्यादा इंटरेस्टेड नहीं थी
लेकिन एक पोलिटिकल पार्टी बनाई है तो चुनाव लड़ना तो था ही इसलिए शुरुआत में ये तय हुआ कि पार्टी 100 -125 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, लेकिन इस पर सवाल यह था कि जनता आम आदमी पार्टी को क्यों चुनेगी?

क्योंकि अगर जनता बीजेपी को वोट देगी तो उसको नरेंद्र  मोदी प्रधानमंत्री के रूप में मिलेंगे, अगर जनता कांग्रेस को वोट देगी शायद राहुल गांधी प्रधानमंत्री के रूप में मिल जाएं, लेकिन आम आदमी जब लड़ ही चुनिंदा सीटों पर रही है, संगठन है नहीं, गठबंधन तो पार्टी का सिद्धांत है ही नहीं, तो जब आप की सरकार बननी ही नहीं तो जनता वोट क्यों देगी ?

फिर तर्क यह आया कि जिस तरह बिहार में जनता जेडीयू, या बंगाल में तृणमूल, उड़ीसा में बीजू जनता दल , तमिलनाडु में करूणानिधि या जयललिता की पार्टी को वोट करके जिताती है उसी तरह आप को भी जिता सकती है।

इस तर्क पर चुनाव लड़ा जाए और जनता से कहा जाए कि आप भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के लिए हमको चुनिए और मॉडल के रूप में दिल्ली को देखिये जहाँ हमारी सरकार है हमने वहाँ कितना बढ़िया शासन दिया है। लेकिन बात फिर यह थी कि ये सब क्षेत्रीय दल हैं जिनका अपने राज्य से बाहर ज़्यादा कुछ दांव पर नहीं है जबकि आप तो एक राष्ट्रीय पार्टी है जिसको पूरे देश में व्यवस्था बदलनी है।

इसलिए लगातार पार्टी ने अपनी रणनीति बदली और अब जिस ट्रैक पर चल रही है उसको बताने के लिए मैं यह कहानी सुना रहा हूं। असल में आम आदमी पार्टी सबसे पहले खुद को  मोदी के खिलाफ सबसे बड़ी- कांग्रेस से भी बड़ी- ताक़त के तौर पर पेश कर, ख़ुद को उसका विकल्प बताकर मोदी विरोधी और बीजेपी विरोधी वोटों पर अपना अपना दावा मज़बूत करना चाहती है।
इससे पार्टी को इन चुनावों में तो फायदा हो सकता है,  साथ ही आने वाले समय में वह खुद को कांग्रेस का विकल्प साबित कर कांग्रेस की जगह लेना चाहती है।यानी बीजेपी पर हमले के बहाने आप असल में कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएगी।  

इससे पहले भी दिल्ली में निचले तबके , अवैध कॉलोनी, झुग्गी आदि में जो परंपरागत वोटर कांग्रेस के थे आप ने उसका समर्थन जुटाकर ही दिल्ली में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी।

केजरीवाल मानते हैं कि इस समय वाकई मोदी की हवा है लेकिन उनसे टकराकर और बड़े पैमाने पर चुनाव लड़कर केजरीवाल कोशिश कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के बहाने देश में पार्टी का संगठन बनाया जाए। जब वोट मिलेंगे तो पता चलेगा कि पार्टी का असर कहाँ तक है और कितना है … लोकसभा चुनाव के बहाने जनसमर्थन दिखेगा (अगर है तो ) और संगठन खड़ा करने के बाद विधानसभा चुनाव या स्थानीय निकाय के चुनाव लड़ने में आसानी हो सकती है।

ऊपर से जब खुद केजरीवाल मोदी के सामने चुनाव लड़ेंगे तो इससे ये राय और मज़बूत होगी कि केजरीवाल एक जांबाज़ और निडर व्यक्ति हैं जो उस समय मोदी से सीधा भिड़ रहे हैं जब शायद हवा भी मोदी के पक्ष में बह रही है। इससे पहले दिल्ली की 15 साल पुरानी अपराजित मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शिकस्त देकर केजरीवाल अपनी इमेज ऐसी बना चुके हैं ....लेकिन क्या केजरीवाल मोदी से जीत पाएंगे, कोई जानकार वैसे ऐसा अभी नहीं कह रहा लेकिन जब कोई व्यक्ति इतनी बड़ी लड़ाई लड़ता है तो उसकी हार में भी उसकी जीत हो जाती है.....जनता में एक तरह की इज़्ज़त उस योद्धा के लिए रहती है जो अपने से बड़े योद्धा से युद्ध करता है।

हालांकि इस मास्टरप्लान को लागू करना केजरीवाल के लिए आसान नहीं क्योंकि एक तरफ उनका अपना मास्टरप्लान है तो दूसरी तरफ़ पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के अपने प्लान हैं। उनमें असंतोष और नाराज़गी  बढ़ती जा रही है जिसके अलग अलग कारण हैं- किसी को टिकट नहीं मिल रहा है तो कोई पार्टी के काम करने के तरीके से एतराज़ कर रहा है, किसी को कांग्रेस की बजाए मोदी पर यूँ हमला पसंद नहीं आ रहा है तो कोई इसलिए नाराज़ है क्योंकि पार्टी में बाहर से आकर लोग सीधे चुनाव लड़ रहे हैं या संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी हासिल कर रहे हैं और पुराने लोग मौका नहीं पा रहे हैं। वैसे भी आम आदमी पार्टी कि विचारधारा कोई एक नहीं बल्कि कई विचारधाराओं का संगम है। ज़रा भी विचार इधर उधर होते ही ऐसा कुछ हो ही जाता है कि मेरे जैसे पत्रकार के लिए खबर हो जाती है।

सवाल बहुत सारे हैं लेकिन इन सवालों के जवाब या तो पार्टी के पास है नहीं , या पार्टी जवाब ठीक ढंग से देकर अपने लोगों को समझा नहीं पा रही है। खैर, चुनाव में अभी कुछ वक़्त बाकी है। देखते हैं कि ये पार्टी चुनाव में क्या कुछ कर पायेगी और क्या कुछ इस पार्टी में चुनाव तक होगा।

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