सत्ता की आहट किसी पार्टी के कार्यकर्ता की चाल ढाल और उनके कुर्ते की खनक में दिख जाती है। हम जैसे ही वाराणसी के रथयात्रा स्थित बीजेपी के दफ्तर में जाते हैं चमक दमक और उत्साह से लबालब कार्यकर्ताओं से टकराने लगते हैं। कोई भारतीय जनता युवा मोर्चा का है तो कोई विद्यार्थी परिषद का तो कोई नरेंद्र मोदी आर्मी का युवा सदस्य मिल जाता है। वहाँ मौजूद ज़्यादातर युवा हैं। कुर्ते का कलफ़ और भाजपा का भगवा गमछा डाले टीका लगाए युवा गर्मजोशी से हाथ मिलाते हैं। किसी को मोदी के जीतने को लेकर कोई शक नहीं है। "जीत जायेंगे लेकिन हम चाहते हैं कि तीन लाख मतों से जीतें।"
दफ़्तर के दरवाज़े पर ही बनारस का नक़्शा रखा है। आज किस विधायक या नेता की ड्यूटी किस इलाक़े में है इसकी जानकारी ब्लैक बोर्ड पर लिख दी गई है। दफ़्तर के बरामदे में एक बड़ा सा पोस्टर है। बैनर का हेडिंग है आधुनिक भारत के महानतम मनीषी। सरदार पटेल और गोलवलकर की एक साथ चर्चा करते हुए तस्वीर है।
राहुल गांधी और कांग्रेस बीजेपी और आर एस एस की विचारधारा पर हमला करते हुए अक्सर सरदार पटेल का उदाहरण देते हैं लेकिन इसे लेकर बीजेपी बैकफ़ुट पर नहीं है। ये मोदी की रणनीति है। अगर कांग्रेस सरदार पटेल का नाम लेकर संघ पर हमला करती है तो उन्हीं की तस्वीर लगा दो। दफ़्तर में मोदी के कटआउट हैं तो दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर लगी है। इनके सामने फूल रखे हैं और अगरबत्ती जल रही है। सारे पोस्टर चमक रहे हैं। बीजेपी किसी त्योहार की तैयारी में नई तस्वीरों और नए कार्यकर्ताओं की तरह चमक रही है।
हम जैसे ही दफ़्तर में घुसते हैं कार्यकर्ता और नेता गर्मजोशी से मिलते हैं। टीवी एंकर होने के नाते मेरे साथ भी फोटो खिंचाते हैं। कोई पानी लाता है तो कोई कार्यकर्ताओं के लिए बंट रहे नाश्ते का प्लेट हमारी तरफ़ बढ़ाता है। इसी भीड़ में गुजरात के नेता हरिन पाठक मिलते हैं। जिनका टिकट काटकर परेश रावल को दिया गया था। जिस मीडिया ने हरिन पाठक को मोदी विरोधी और आडवाणी का क़रीबी बताया है वही यहाँ प्रचार के लिए आए हैं। हँसते हुए मिले और चाय भी पिलाई। कार्यकर्ताओं की भीड़ में एन एस यू आई के पूर्व अध्यक्ष हाथ मिलाने के लिए बढ़ते हैं। सर पर केसरिया गमछा बनारसी स्टाइल में बँधा है। एक और कांग्रेस नेता भी मिलते हैं। कहते हैं मोदी जी से प्रभावित होकर आए हैं। क्या करें। हम कार्यकर्ताओं को लक्ष्य चाहिए। हम इसी पर जीते हैं। कांग्रेस ने लड़ना ही छोड़ दिया है।
बीजेपी की महिला कार्यकर्ताओं में भी जोश हैं। उड़ीसा से आई एक महिला नेता मेरे साथ फोटो खींचाती हैं मगर मोदी का नाम आते ही उनका चेहरा खिल उठता है।
इस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकर्ताओं को जीत लिया है। एक इंजीनियर साहब से मुलाक़ात होती है। रिटायर होने के बाद मोदी के लिए काम कर रहे हैं। कहते हैं मैं बीजेपी का सदस्य नहीं हूँ मगर मोदी के लिए मेहनत कर रहा हूँ। मुंबई के जोशी जी तो बक़ायदा वोलेंटियर का फ़ार्म भरकर वाराणसी प्रचार में आए हैं।
इसके बाद कार्यकर्ता दफ़्तर घुमाने लगते हैं। अलग अलग प्रांत के उत्साही कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात होती है। सब एक ही सवाल पूछते हैं। दो सौ बहत्तर सीट आएगी या तीन सौ ज़्यादा। बीजेपी का कार्यकर्ता अब स्पष्ट बहुमत को ही अपनी जीत मान रहा है। उसे यक़ीन हो चला है कि इतनी सीटें आ रही हैं। आई टी सेल के युवा प्रभारी तीसरी मंज़िल पर ले जाते हैं। उनकी टीम में बीस से पचीस युवा हैं जो वाराणसी पर बने फ़ेसबुक पेज को अपडेट कर रहे हैं। कुछ सदस्य लोगों की समस्या की रिकार्डिंग लेकर आते हैं और पेज पर अपलोड करते हैं।
बीजेपी के दफ़्तर का माहौल ऊर्जा से भरा है। सब जीत की आशा में दिन रात काम कर रहे हैं। कोई स्टीकर की टोपी पहना घूम रहा है तो कोई चश्मे पर मोदी की तस्वीर चिपकाये। यहाँ आते ही अहसास हो जाता है कि यह कोई दूसरी बीजेपी है। यूपी की राजनीति की स्थिरता से आज़ाद आकाश छूने के उत्साह से भरी हुई। जो बात करता है सिर्फ यही कहता है कि हमें यूपी में पचास सीटें आ रही है। न भी आए तो किया फ़र्क पड़ता है। मूल बात यह है कि मोदी ने सबको सपना दिखा दिया है। सबको उसे साकार करने में एकजुट कर दिया है।
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