लस्सी वाकई लाजवाब थी। मोटी मलाई की परत के साथ। 'आह वाह' कर ही रहा था कि नज़र उस तस्वीर पर पड़ गई, जिस पर लिखा था - कॉमरेड सूरजपाल वर्मा जी। इटावा के चौक पर इतनी अच्छी लस्सी मिलेगी और वह भी किसी कॉमरेड की दुकान पर, सोचा न था। भारत एक किस्सा-प्रधान देश है। कब कोई किस्सा मिल जाए, कोई नहीं जानता।
सूरजपाल वर्मा इटावा के पुराने कम्युनिस्ट नेता रहे हैं। उनके पुत्र हीरालाल पटेल तो छूटते ही कहने लगे कि हमारे घर प्रकाश करात आते हैं, वृंदा करात आती हैं। सीपीएम के कई सांसदों का भी नाम लेने लगे। हीरालाल जी हमारे लिए लस्सी बनाते-बनाते इटावा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की हालत बताने लगे। कहा कि अभी भी पार्टी का ही काम करते हैं। वोट किसे देते हैं? अब काम तो कम्युनिस्ट का करते हैं, लेकिन वोट सपा को देते हैं। क्या करें, हमारी पार्टी का वजूद कमज़ोर है। तो कभी पार्टी छोड़ने का मन नहीं किया? नहीं जी, विचारधारा नहीं छोड़ सकते।
सुबह की शुरुआत एक बेहतरीन लस्सी से हो जाए तो क्या बात। उसके बाद इटावा के ही यासीनगर गांव गए। यह गांव शाक्य समाज का माना जाता है। मतलब यहां बुद्ध, चंद्रगुप्त और अशोक को अपने गौरवशाली इतिहास का नायक मानने वाले शाक्य समाज के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। शाक्य, कुशवाहा, मौर्य और सैनी ओबीसी में यादवों के बाद दूसरे नंबर की प्रभावशाली जातियां हैं। इस गांव में भी कुछ कम्युनिस्ट कार्यकर्ता मिले। एक नौजवान ने कहा कि वह अपनी जाति की पहचान को उभारना चाहता है, मगर उसकी जाति में जागरूकता आने में वक्त लगेगा। बात आगे बढ़ी तो नौजवान ने कहा कि वह कम्युनिस्टों के धरना-प्रदर्शन में जाता तो है, मगर वोट बीजेपी को देगा, क्योंकि माकपा यहां जीत नहीं सकती। हम अपना वोट क्यों बर्बाद करें।
मतदान और लहर को इतनी आसानी से नहीं समझा जा सकता। वोट देने की प्राथमिकताएं हर मतदाता की अलग होती हैं। फिलहाल हम तो कॉमरेड की लस्सी पीकर गदगद हैं।
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