केंद्रीय कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा को दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया...
नई दिल्ली:
चुनाव आयोग ने पिछले दिनों कुछ केंद्रीय मंत्रालयों की ओर से किए गए फैसलों से पहले आयोग की अनुमति नहीं लिए जाने पर नाराजगी जताई है. केंद्रीय कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा को खत लिखकर यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि आदर्श आचार संहिता पर उसके दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जाए. आयोग ने कहा है कि मंत्रालयों ने आयोग की अनुमति के बगैर कुछ ऐसे फैसले किए जिससे पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के दौरान सभी पार्टियों को मिलने वाला समान अवसर प्रभावित हो सकता है.
आयोग ने खास तौर पर वित्त मंत्रालय, नीति आयोग और रक्षा मंत्रालय का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने आचार संहिता लागू होने की अवधि में भी अहम मामलों को आयोग के पास नहीं भेजा. आचार संहिता चार जनवरी को ही लागू हो गई थी और पांच राज्यों में चुनाव खत्म होने तक प्रभावी रहेगी.
सिन्हा को लिखे पत्र में कहा गया, "आयोग ने गौर किया है कि कुछ मामलों में मंत्रालयों-विभागों ने मामले को आयोग के पास भेजे बगैर ऐसे फैसले किए, जिनमें चुनावी राज्यों में पार्टियों को मिलने वाले समान अवसर को प्रभावित करने की क्षमता है. ऐसे फैसले खासकर नीति आयोग, रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने किए." आयोग के सूत्रों ने बताया कि 27 जनवरी को सरकार को भेजे गए संदेश की वजह वित्त मंत्रालय का वह फैसला था जिसमें उसने मंजूरी लिए बगैर ही बजट की तारीख तय कर दी, जबकि यह स्पष्ट था कि नयी तारीख के मुताबिक केंद्रीय बजट उस वक्त पेश होगा जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में चुनाव प्रक्रिया चल रही होगी.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में आयोग की अनुमति के बगैर विशेष ग्राम सभाएं आयोजित करने पर आयोग ने 20 जनवरी को नीति आयोग की खिंचाई की थी और कहा था कि ऐसे कार्यक्रम चुनाव खत्म होने के बाद ही आयोजित किए जाने चाहिए.
उसी दिन आयोग ने रक्षा मंत्रालय को उत्तराखंड में संयुक्त कमांडर सम्मेलन के आयोजन की अनुमति दी थी. हालांकि, आयोग ने मंत्रालय को इस शर्त के साथ अनुमति दी थी कि सम्मेलन का उद्घाटन करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम को राज्य में होने वाली रैली से नहीं जोड़ेंगे.
कांग्रेस ने आयोग से शिकायत की थी कि भाजपा इस कार्यक्रम का इस्तेमाल पूर्व एवं सेवारत सैनिकों को प्रभावित करने के लिए कर सकती है ताकि पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों में इसका फायदा उठाया जा सके.
आयोग ने खास तौर पर वित्त मंत्रालय, नीति आयोग और रक्षा मंत्रालय का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने आचार संहिता लागू होने की अवधि में भी अहम मामलों को आयोग के पास नहीं भेजा. आचार संहिता चार जनवरी को ही लागू हो गई थी और पांच राज्यों में चुनाव खत्म होने तक प्रभावी रहेगी.
सिन्हा को लिखे पत्र में कहा गया, "आयोग ने गौर किया है कि कुछ मामलों में मंत्रालयों-विभागों ने मामले को आयोग के पास भेजे बगैर ऐसे फैसले किए, जिनमें चुनावी राज्यों में पार्टियों को मिलने वाले समान अवसर को प्रभावित करने की क्षमता है. ऐसे फैसले खासकर नीति आयोग, रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने किए." आयोग के सूत्रों ने बताया कि 27 जनवरी को सरकार को भेजे गए संदेश की वजह वित्त मंत्रालय का वह फैसला था जिसमें उसने मंजूरी लिए बगैर ही बजट की तारीख तय कर दी, जबकि यह स्पष्ट था कि नयी तारीख के मुताबिक केंद्रीय बजट उस वक्त पेश होगा जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में चुनाव प्रक्रिया चल रही होगी.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में आयोग की अनुमति के बगैर विशेष ग्राम सभाएं आयोजित करने पर आयोग ने 20 जनवरी को नीति आयोग की खिंचाई की थी और कहा था कि ऐसे कार्यक्रम चुनाव खत्म होने के बाद ही आयोजित किए जाने चाहिए.
उसी दिन आयोग ने रक्षा मंत्रालय को उत्तराखंड में संयुक्त कमांडर सम्मेलन के आयोजन की अनुमति दी थी. हालांकि, आयोग ने मंत्रालय को इस शर्त के साथ अनुमति दी थी कि सम्मेलन का उद्घाटन करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम को राज्य में होने वाली रैली से नहीं जोड़ेंगे.
कांग्रेस ने आयोग से शिकायत की थी कि भाजपा इस कार्यक्रम का इस्तेमाल पूर्व एवं सेवारत सैनिकों को प्रभावित करने के लिए कर सकती है ताकि पांच राज्यों में होने जा रहे चुनावों में इसका फायदा उठाया जा सके.
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