दिल्ली में चुनावी सरगर्मी ज़ोरों पर है। चुनावी अभियान खत्म होने में सिर्फ दो दिन बचे हैं और ऐसे में तमाम राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए हर संभव हथकंडा अपना रहे हैं।
इस राजनीतिक सुगबुगाबट के बीच स्थानीय स्तर पर नए जातीय समीकरण भी उभर कर सामने आ रहे हैं जो कई विधानसभा क्षेत्रों में नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
दक्षिणी दिल्ली का शाहपुर जाट गांव एक समय जाट-बहुल इलाका था। पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में बाहरी लोग यहां आकर बसते चले गए। एनडीटीवी ने जब इस गांव का दौरा किया तो पाया कि बाहरी लोगों के यहां बसने की वजह से दक्षिणी दिल्ली के इस गांव का सामाजिक माहौल बदल गया है। अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है गाव वालों की जातिगत पहचान जो अब भी यहां महत्वपूर्ण बनी हुई है।
गांव निवासी नरेश डागर मानते हैं कि अगर एक जाति का उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़ा होता है तो उसके प्रति जुड़ाव महसूस करना स्वभाविक है। वह दावा करते हैं कि गांव के 40 फीसदी लोग जाति के आधार पर वोट कर सकते हैं, यानी हर बार की तरह इस बार भी जातिगत पहचान चुनावों में अहम होगा और इसका असर भी दिखेगा।
शाहपुर जाट के पंडित हरिचंद्र वत्स का जन्म 70 साल पहले इसी गांव में हुआ। कहते हैं पिछले कुछ साल में जाति का महत्व थोड़ा कम हुआ है। उनकी नज़र में इस बार शाहपुर जाट गांव में वोटिंग पैटर्न बदलता दिखाई दे रहा है। हरिजन और जाट समुदाय के वोट दोनों बंटेंगे।
जानकारों के मुताबिक 2013 से पहले बीजेपी को पंजाबी खत्री और वैश्य समुदाय का समर्थन ज्यादा मिलता था, जबकि ओबीसी और दलितों में कांग्रेस की पकड़ ज्यादा मज़बूत थी। लेकिन 2013 में दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी की इंट्री ने पुराने जातीय समीकरणों को बदल दिया।
रिसर्च संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड डेवेलपिंग सोसाइटीज़ का आंकलन है कि दिल्ली के वोटरों में ब्राह्मण वोट 12%, जाट वोट 7-8%, पंजाबी खत्री वोट 7%, राजपूत 7%, वैश्य समाज 6%, जबकि दलित वोट 14% है।
राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार कहते हैं कि इन जातीय समुदायों का वोट चुनावों के वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करेगा। उनका दावा है कि 2015 के चुनावों से पहले जातीय समुदायों के रुख में बदलाव आ रहा है जिसका असर नतीजों पर पड़ेगा।
हालांकि गांव के नौजवान वोटरों की मानें तो उनके लिए जाति के मुकाबले रोज़गार और विकास ज्यादा मायने रखते हैं। वह चाहते हैं कि नई सरकार युवाओं की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरा उतरे और लोग जातिगत पहचान से ऊपर उठकर मतदान करें।
यानी युवा बदलाव और विकास की राजनीति चाहते हैं। अब यह देखना अहम होगा कि दिल्ली के चुनावों में जाति का असर किस हद तक ज़मीन पर चुनावी नतीजों को प्रभावित कर पाएगा।
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