जम्मू−कश्मीर के चुनावों में सबकी नज़र कश्मीरी पंडितों पर है। क्या वे चुनावी समीकरण बदल डालेंगे, हकीकत यह है कि कश्मीर घाटी में लौटे पंडित वहां अपने−आप को अजनबी महसूस करते हैं तो बाहर असुरक्षित।
हबाकदल पुराने कश्मीर का वह इलाका है, जहां कश्मीरी पंडित रहा करते थे। बीजेपी इसे अपने लिए सेफ सीट मान रही है, क्योंकि उसने अपना पूरा जोर उन प्रवासी पंडितों के वोट जमा करने में लगाया हुआ है, जो फिलहाल दिल्ली, गुडगांव, बेंगलुरु और पुणे में रहते हैं।
मोती लाल काल इस इलाके के उम्मीदवार हैं और पेशे से डॉक्टर हैं। फिलहाल दिल्ली में अपने वोटरों से मिल रहे हैं। उनका कहना है कि बीजेपी सिर्फ ऐसी पार्टी है, जो कश्मीरी पंडितों को लेकर संजीदा है।
दिल्ली में रह रहे कश्मीरियों का कहना है कि वे अपने आप को घाटी में सुरक्षित नहीं समझते इसीलिए वापस नहीं लौटना चाहते।
उधर, जब एनडीटीवी हबाकदल पहुंचा तो कुछ ऐसे परिवारों से मिला, जो अपने आप को घाटी में ही सेफ समझते हैं। उनमें 22 साल का सुनंदन पंडित एक है, तीन साल पहले बीटेक की पढ़ाई के लिए रोहतक गया था, लेकिन हालात कुछ ऐसे हो गए कि उसके माता-पिता उसे अपने साथ वापस घाटी ले आए। वह खुद को घाटी में ही सुरक्षित महसूस करता है।
उसने बताया कि मुझे यहां अच्छा लगता है। उसके पिता किरणजी ने हमें बताया कि रोहतक में जब वह था तो कश्मीरी होने की वजह से उस पर हमला किया गया था। किरणजी हाईकोर्ट में काम करते हैं, लेकिन इन दिनों उनका ज्यादा समय बेटे की पर्चियों को डॉक्टरों को दिखाने में बीतता है। परिवार का कहना है कि कश्मीरी पंडित न घाटी के रह गए हैं न बाहर के।
दरअसल, घाटी के कश्मीरी पंडितों को अपनी पहचान खोने का मलाल है। इन्हें लगता है कि इन्हें हर कोई भूल गया है, लेकिन चुनावों ने इन्हें फिर एक मौका दिया है। नौजवानों को अपने मुद्दे याद आ रहे हैं। उन्हें उम्मीद है हालात बदलेंगे।
रोजगार बहुत बड़ा मुद्दा है। यहां कितना कुछ है, उसे बस सही तरह से इस्तेमाल करने की जरूरत है। सुनंदन का कहना है कि इन पंडितों को बीजेपी से काफ़ी उम्मीद है।
सुनंदन की मां कल्पना को भी याद है कि 25 साल पहले हालात बेहद ख़राब थे। तब भी वे लोग अपना घर छोड़कर नहीं गए। एनडीटीवी पुराने कश्मीर की विधानसभा सीट हबाकदल के बीचों−बीच गणपतियार मंदिर भी गया। मंदिर बंकर के अन्दर था और मंदिर की देखभाल सीआरपीएफ के जवान करते हैं। आज इस इलाके में मुस्लिम लीग का असर है, लेकिन बीजेपी इसे अपने लिए सेफ़ सीट मान रही है।
वह कश्मीरी पंडितों की मदद से यहां जीत की उम्मीद कर रही है। अगर वोटों की बात करें तो हबाकदल में कुल 52000 वोट हैं। इनमें 14800 वोट प्रवासी कश्मीरी पंडितों के हैं।
फिलहाल यहां बस 35 कश्मीरी वोट हैं। बीजेपी का हिसाब ये है कि अगर यहां वोटिंग प्रतिशत काफी कम रहा तो पंडितों के वोट उसके लिए निर्णायक हो जाएंगे और वह घाटी में खाता खोल पाएगी।
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