Nalanda University Entrance Exam: आज जब बड़ी संख्या में भारतीय छात्र विदेश जाकर ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कैम्ब्रिज जैसे वर्ल्ड की टॉप यूनिवर्सिटीज में पढ़ना चाहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं करीब 800 साल पहले दुनियाभर के छात्र भारत के एक प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा में पढ़ने के लिए बेताब रहते थे. यह वह दौर था जब भारत शिक्षा का ग्लोबल सेंटर था और नालंदा यूनिवर्सिटी शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करती थी. इसमें एडमिशन पाना किसी सपने से कम नहीं था. बिना एंट्रेस एग्जाम किसी को भी एडमिशन नहीं मिलता था. जानिए इस प्राचीन यूनिवर्सिटी की प्रवेश प्रक्रिया का इतिहास..
नालंदा में एडमिशन इतना मुश्किल क्यों था
नालंदा यूनिवर्सिटी में दाखिला किसी इंटरव्यू या एक सिंपल टेस्ट से नहीं होता था. छात्रों को तीन कठिन चरणों वाली एंट्रेंस परीक्षा पास करनी होती थी और उनमें से भी सिर्फ 20% छात्र ही चुने जाते थे. कहा जाता है कि हर स्टूडेंट से गेट पर ही सवाल-जवाब किए जाते थे और द्वारपाल खुद यह तय करता था कि छात्र योग्य है या नहीं. यह प्रक्रिया इतनी सख्त थी कि कई विद्वान इसे 'एशिया की पहली चयन परीक्षा' कहते हैं.
कब और किसने बनाई थी नालंदा यूनिवर्सिटी
नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी. यह बिहार के नालंदा जिले में स्थित थी, जो आज भी इसके अवशेषों के लिए मशहूर है। नालंदा शब्द का अर्थ 'ज्ञान देने वाला' है. यह दुनिया की पहली रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटीज में से एक थी, जहां छात्र और शिक्षक दोनों कैंपस में ही रहते थे.
दुनियाभर से आते थे छात्र, कई सब्जेक्ट में होती पढ़ाई
नालंदा सिर्फ भारत का नहीं, बल्कि पूरे एशिया का एजुकेशन सेंटर था. यहां कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, श्रीलंका, मंगोलिया और इंडोनेशिया जैसे देशों से छात्र पढ़ने आते थे. यहां पढ़ाए जाने वाले विषयों में संस्कृत, बौद्ध धर्म, गणित, चिकित्सा (आयुर्वेद), खगोलशास्त्र, दर्शन और विज्ञान थे.
नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाई और शिक्षक
नालंदा में करीब 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक हुआ करते थे. यहां शिक्षकों को आचार्य कहा जाता था और उनकी तीन कैटेगरी थीं. प्रथम, द्वितीय और तृतीय. सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे शीलभद्र, जो 7वीं सदी में यूनिवर्सिटी के प्रमुख भी थे. यहां महायान बौद्ध धर्म, नागार्जुन, वसुबन्धु और धर्मकीर्ति जैसे महान विद्वानों की शिक्षाओं का गहन अध्ययन कराया जाता था.
दुनिया का सबसे बड़ा लाइब्रेरी सिस्टम
नालंदा का पुस्तकालय अपने समय का सबसे बड़ा और भव्य पुस्तकालय था. इसे 'धर्मगंज' कहा जाता था और यह 9 मंजिला था. इसमें करीब 3 लाख से ज्यादा किताबें और तीन मुख्य सेक्शन थे. रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर. इतिहासकारों के मुताबिक, जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर हमला किया, तो इस लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि तीन महीने तक जलती रहीं.
बख्तियार खिलजी ने मिटाया ज्ञान का मंदिर
12वीं सदी में अफगान शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर हमला कर दिया. उसने यहां के हजारों भिक्षुओं की हत्या कर दी और पूरी यूनिवर्सिटी को आग के हवाले कर दिया. इस विनाश के साथ भारत का वह गौरवशाली अध्याय खत्म हुआ, जहां से शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति की रोशनी पूरे विश्व में फैली थी. नालंदा के अवशेष आज भी बिहार के नालंदा जिले में मौजूद हैं. यहां 13 मठ, कई मंदिर और 1.5 लाख वर्ग फुट में फैले खंडहर देखने को मिलते हैं. यह जगह अब यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, जहां हर साल हजारों पर्यटक और शोधार्थी आते हैं. 2014 में भारत सरकार ने नालंदा यूनिवर्सिटी को आधुनिक रूप में फिर से स्थापित किया. यह नया नालंदा यूनिवर्सिटी अंतरराष्ट्रीय सहयोग से चल रहा है और आज भी वही परंपरा निभा रहा है.
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