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This Article is From Feb 20, 2014

क्या स्पिनरों पर भरोसा न दिखाना भारी पड़ा धोनी को?

नई दिल्ली:

क्या कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का पिछले रिकॉर्ड पर गौर नहीं करना न्यूजीलैंड दौरे में भारतीय टीम को भारी पड़ा? क्योंकि न्यूजीलैंड की सरजमीं पर भारत ने अब तक जितने भी टेस्ट मैच जीते उनमें स्पिनरों ने अहम भूमिका निभायी, जबकि धोनी ने अपने दो मुख्य स्पिनरों पर बेंच पर बिठाए रखा।

भारत ने न्यूजीलैंड में पांच टेस्ट मैचों में जीत दर्ज की। इन मैचों में स्पिनरों ने 70 विकेट हासिल किए जिससे साफ होता कि भारत की कीवियों के देश में मिली जीत में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण रही।

धोनी ने इसके बजाय टीम में तीन तेज गेंदबाज रखे जो टुकड़ों में ही अच्छा प्रदर्शन कर पाये। धोनी ने बायें हाथ के स्पिनर रविंद्र जडेजा को दोनों टेस्ट मैच की अंतिम एकादश में रखा, लेकिन वह 89 ओवरों में केवल तीन विकेट ले पाए। आंकड़ों पर नजर डालने पर पता चलता है कि कीवी सरजमीं पर भारत के ऑफ स्पिनर या लेग स्पिनर अधिक सफल रहे। धोनी ने अपने ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और लेग स्पिनर अमित मिश्रा को मौका नहीं दिया।

न्यूजीलैंड की धरती पर भारत को जीत दिलाने में ऑफ स्पिनर ईरापल्ली प्रसन्ना की भूमिका अहम रही। उन्होंने इनमें से चार मैच खेले और उनमें 33 विकेट चटकाए। लेग स्पिनर भगवत चंद्रशेखर और ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह ने क्रमश: आठ और सात विकेट लेकर एक-एक मैच में भारत को जीत दिलायी थी। बायें हाथ के स्पिनर बापू नाडकर्णी और बिशन सिंह बेदी न्यूजीलैंड में तीन-तीन मैचों में जीत के गवाह रहे। इनमें उन्होंने क्रमश: 12 और आठ विकेट लिये थे।

यही वजह थी कि पूर्व क्रिकेटरों ने भी धोनी को स्पिनरों विशेषकर अमित मिश्रा को टीम में रखने की सलाह दी थी जो कि पिछले कुछ दौरों से टीम के साथ महज 'यात्री' बने हुए हैं।

पूर्व तेज गेंदबाज करसन घावरी ने भी स्वीकार किया था कि यदि अश्विन एक-दिवसीय शृंखला में नहीं चल पाए थे तो धोनी को मिश्रा को अंतिम एकादश में रखना चाहिए था। उन्होंने हाल में कहा था, 'मैं समझता हूं कि अन्य स्पिनरों को मौका मिलना चाहिए था। मेरी निजी राय है कि अमित मिश्रा को मौका मिलना चाहिए था।'
सिर्फ भारत ही नहीं विदेशी कप्तानों ने भी न्यूजीलैंड में अपने स्पिनरों का अच्छा उपयोग किया। ऑस्ट्रेलिया को ही लीजिये। लेग स्पिनर शेन वार्न के रहते हुए ऑस्ट्रेलियाई टीम ने कीवियों को उनकी सरजमीं पर छह मैच में पराजित किया। इन मैचों में वार्न ने 36 विकेट लिये थे। वेस्टइंडीज के सनी रामादीन (चार मैच में 27 विकेट), पाकिस्तान के मुश्ताक अहमद (चार मैच में 17 विकेट) और मुश्ताक मोहम्मद (दो मैच में 16 विकेट) तथा श्रीलंका के मुरलीधरन (दो मैच में 15 विकेट) ने भी न्यूजीलैंड में अपनी टीमों की जीत के नायक रहे। अब

अगर न्यूजीलैंड में भारत की टेस्ट मैचों में जीत में तेज गेंदबाजों के योगदान पर गौर किया करें तो साफ हो जाता है कि उन्होंने महज सहयोगी की ही भूमिका निभायी। तेज या मध्यम गति के गेंदबाजों ने भी भारत की पांच विजय में केवल 25 विकेट लिये।
इनमें एक मैच में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मुनाफ पटेल का है जिन्होंने 2009 में हैमिल्टन में भारत की दस विकेट से जीत में 120 रन देकर पांच विकेट लिये थे। उस मैच में हालांकि हरभजन ने दूसरी पारी में 63 रन देकर छह विकेट हासिल किए थे।

विदेशों के जिन अन्य तेज गेंदबाजों ने न्यूजीलैंड में अच्छा प्रदर्शन किया उनमें पाकिस्तान के वसीम अकरम (50 विकेट), श्रीलंका के चामिंडा वास (36 विकेट), पाकिस्तान के वकार यूनिस (34 विकेट), वेस्टइंडीज के कर्टनी वाल्श (32 विकेट) और ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैकग्रा (030 विकेट) प्रमुख हैं।

स्पिनर हालांकि इनसे पीछे नहीं रहे क्योंकि विदेशों के चार स्पिनरों के नाम पर न्यूजीलैंड में 30 या इससे अधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज है।

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