बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
देश की सर्वोच्च अदालत ने देश में क्रिकेट की दिशा और दशा सुधारने का काम लोढा कमेटी के सुपुर्द किया. कमेटी ने इसके लिए कई सुझाव दिए जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की मुहर भी लगा दी, लेकिन अब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अपने संविधान का हवाला देकर कह दिया है राज्यसंघों के बगैर ये सुझाव नहीं माने जा सकते.
बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने अपने वकील के जरिए तो वहीं सचिव अजय शिर्के ने ई-मेल से यह हलफनामा सौंपा है. अनुराग ठाकुर के हलफनामे का 9वां बिंदु कहता है कि सारे सदस्यों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. सदस्यों ने कहा कि वे नए मेमोरेंडम को अपनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें पूरी तरह से अपनाना संभव नहीं होगा.
प्वाइंट 13-14 के मुताबिक, मैं बतौर अध्यक्ष सदस्यों को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता. सदस्यों के मुताबिक, तमिलनाडू सोसायटी एक्ट 1975, जिसके तहत बीसीसीआई पंजीकृत है, संविधान सिर्फ तीन-चौथाई सदस्यों की मौजूदगी और मतदान से ही बदला जा सकता है.
प्वाइंट 16, 17, 18 में हमने उन्हें समझाया भी कि सुझाव न मानने की सूरत में उन्हें मिलने वाली राशि रोकी जा सकती है, लेकिन सदस्यों ने साफ कह दिया कि 30/9/2016 की हुई बैठक में स्वीकृत बदलावों को ही वह मानेंगे, चाहे उन्हें मिलने वाली राशि को रोक दिया जाए.
मामले में याचिकाकर्ता आदित्य वर्मा ने इन हलफनामों के सामने आने के बाद कहा, बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अपमान कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है बोर्ड ने फंड की बंदरबांट की है. अगर बोर्ड में हिम्मत है तो वह डिलॉएट की रिपोर्ट लोढा कमेटी को सौंप दे.
हलफनामे की कुछ बातों से संकट भारत-इंग्लैंड सीरीज़ पर फिर से मंडराता दिख रहा है. इंग्लैंड की टीम 5 टेस्ट, 3 वनडे और तीन टी-20 की सीरीज़ खेलने भारत आ चुकी है. बोर्ड टेस्ट आयोजित कर रहे राज्य संघों से खत लिखकर पूछ चुका है कि क्या वह बगैर बीसीसीआई के फंड के अपने बूते टेस्ट मैचों का आयोजन कर सकते हैं. 5 में से 4 राज्यों ने जवाब हां में दिया. फिर बोर्ड ने एमओयू का मुद्दा उठाया इसके लिए इंग्लैंड तैयार हो गया है. अब हलफनामे से नया दांव खेला गया है.
बोर्ड अध्यक्ष ने अपने 7 पन्नों के हलफनामे में बड़ी मासूमियत से पूछा है कि वह उन्हें या सचिव को कोई नया स्पष्टीकरण देंगे, जबकि कमेटी पहले ही कह चुकी है रोज़ाना के कामों को लेकर उनके निर्देश स्पष्ट हैं. ऐसे में 57 पन्नों के इस नए मैच से लोढा पैनल की बल्लेबाजी पर कोई फर्क पड़ेगा ऐसा लगता तो नहीं है.
बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने अपने वकील के जरिए तो वहीं सचिव अजय शिर्के ने ई-मेल से यह हलफनामा सौंपा है. अनुराग ठाकुर के हलफनामे का 9वां बिंदु कहता है कि सारे सदस्यों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. सदस्यों ने कहा कि वे नए मेमोरेंडम को अपनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें पूरी तरह से अपनाना संभव नहीं होगा.
प्वाइंट 13-14 के मुताबिक, मैं बतौर अध्यक्ष सदस्यों को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता. सदस्यों के मुताबिक, तमिलनाडू सोसायटी एक्ट 1975, जिसके तहत बीसीसीआई पंजीकृत है, संविधान सिर्फ तीन-चौथाई सदस्यों की मौजूदगी और मतदान से ही बदला जा सकता है.
प्वाइंट 16, 17, 18 में हमने उन्हें समझाया भी कि सुझाव न मानने की सूरत में उन्हें मिलने वाली राशि रोकी जा सकती है, लेकिन सदस्यों ने साफ कह दिया कि 30/9/2016 की हुई बैठक में स्वीकृत बदलावों को ही वह मानेंगे, चाहे उन्हें मिलने वाली राशि को रोक दिया जाए.
मामले में याचिकाकर्ता आदित्य वर्मा ने इन हलफनामों के सामने आने के बाद कहा, बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अपमान कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है बोर्ड ने फंड की बंदरबांट की है. अगर बोर्ड में हिम्मत है तो वह डिलॉएट की रिपोर्ट लोढा कमेटी को सौंप दे.
हलफनामे की कुछ बातों से संकट भारत-इंग्लैंड सीरीज़ पर फिर से मंडराता दिख रहा है. इंग्लैंड की टीम 5 टेस्ट, 3 वनडे और तीन टी-20 की सीरीज़ खेलने भारत आ चुकी है. बोर्ड टेस्ट आयोजित कर रहे राज्य संघों से खत लिखकर पूछ चुका है कि क्या वह बगैर बीसीसीआई के फंड के अपने बूते टेस्ट मैचों का आयोजन कर सकते हैं. 5 में से 4 राज्यों ने जवाब हां में दिया. फिर बोर्ड ने एमओयू का मुद्दा उठाया इसके लिए इंग्लैंड तैयार हो गया है. अब हलफनामे से नया दांव खेला गया है.
बोर्ड अध्यक्ष ने अपने 7 पन्नों के हलफनामे में बड़ी मासूमियत से पूछा है कि वह उन्हें या सचिव को कोई नया स्पष्टीकरण देंगे, जबकि कमेटी पहले ही कह चुकी है रोज़ाना के कामों को लेकर उनके निर्देश स्पष्ट हैं. ऐसे में 57 पन्नों के इस नए मैच से लोढा पैनल की बल्लेबाजी पर कोई फर्क पड़ेगा ऐसा लगता तो नहीं है.
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