आम आदमी पार्टी का बज सकता है पंजाब में डंका

आम आदमी पार्टी का बज सकता है पंजाब में डंका

पंजाब में विधानसभा चुनाव की कुल 117 सीटें हैं...

यदि आप पंजाब के गांव-देहात से गुजरें तो आपको गांव की चौड़ी सड़कें नजर आएंगी. कुछ मकान तो दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी को भी मात दे रहे हैं. बेहतर बिजली और पानी के बेहतर इंतजाम से लगेगा कि वर्तमान बादल सरकार को सत्ता से बाहर करने की बात जनता क्यों करेगी. आप इन चीजों को देखकर अकाली दल के तीसरी बार सत्ता में आने पर शर्त लगाएंगे. लेकिन आप अपना दांव हार सकते हैं. सच्चाई इससे कुछ हटकर है. यह ऐसी सच्चाई है जो अकाली दल को सत्ता से दूर कर सकती है. यहां तक कि इस राज्य के दो पार्टी सिस्टम के चलन को पूरी तरह से बदल सकती है.
 
पंजाब के उत्तर पूर्वी भाग वाले मालवा क्षेत्र में राज्य की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 63 सीटें आती हैं. इस क्षेत्र में "केजरीवाल केजरीवाल, सारा पंजाब तेरे नाल" जैसे नारे चारों ओर दिखाई दे रहे हैं. यह वह क्षेत्र है जहां आम आदमी पार्टी ने सबको चौंकाते हुए 2014 के आम चुनाव में 4 लोकसभा सीटें जीती थीं. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह बादल के दबदबे वाला पटियाला क्षेत्र भी शामिल है. आम आदमी पार्टी की लहर यहां सब जगह दिखाई दे रही है.

 
bhagwant mann 650
(आम आदमी पार्टी के प्रमुख चेहरा भगवंत मान अपने कॉमेडी अंदाज में प्रचार कर रहे हैं..)

आप को परिवर्तन की पार्टी माना जाता है. परिवर्तन वह है जो वोटर चाहते हैं. उनका नारा है, "बदलो बादल". पिछले 10 वर्षों से सत्तासीन प्रकाश सिंह बादल और उनकी पार्टी केवल सत्ता विरोधी लहर का ही सामना नहीं कर रहे हैं बल्कि नई नौकरियां नहीं दे पाने, लोगों को सुरक्षा, कानून-व्यवस्था मुहैया नहीं करा पाने के कारण आलोचना झेल रहे हैं. नशे के कारोबार ने भी बादल सरकार को बहुत बदनाम किया है क्योंकि गांव के युवा इसकी चपेट में आ रहे हैं.

युवाओं के लिए रोजगार सबसे महत्वपूर्ण है जो आम आदमी पार्टी की सफलता में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. अच्छे पढ़े लिखे युवाओं के पास अच्छी नौकरियों के अवसर नहीं हैं. गांव के बड़े-बुजुर्गों को इस बात से ज्यादा निराशा है कि नशा युवाओं को बर्बाद कर रहा है. उनका कहना है कि वे यह तो नहीं बता सकते कि कितने युवा नशा लेते हैं लेकिन यह आसानी से बता सकते हैं कि कितने नहीं लेते हैं क्योंकि उनकी संख्या बहुत कम है. आप उनका दर्द और गुस्सा समझ सकते हैं. आम आदमी पार्टी इन युवाओं के सहारे उनके घरों तक पैठ बनाने का काम कर रही है.

लोग इस बात को लेकर भी बादल सरकार से नाराज हैं कि वह उन अपराधियों को पकड़ने में नाकाम रही जिन्होंने अक्टूबर 2015 में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पन्ने फाड़ दिए थे. जब मामले ने तूल पकड़ा तो यह भावनात्मक मुद्दा बन गया. इस सरकार ने उन लोगों को पकड़ने के लिए क्या किया? कुछ नहीं.
 
captain amarinder singh 650(पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पटियाला और लांबी से चुनाव मैदान में हैं.)

 अकाली दल की प्रतिद्वंदी कांग्रेस की पकड़ इस बार मालवा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में कम दिखाई दे रही है. ऐसा लग रहा है कि यहां के लोग परंपरा से हटकर 'बाहरी' को सत्ता देने के मूड में नजर आ रहे हैं. हालांकि कांग्रेस को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 2014 भी इसका मजबूत जनाधार इस क्षेत्र में रहा. खासकर शहरी विधानसभा सीटों (ग्रामीण और सिख बहुल इलाकों की तुलना में शहरी और हिंदू वोटों में पार्टी की मजबूत पकड़ है) में इसका मजबूत जनाधार है. कांग्रेस के पास बुजुर्ग मतदाता हैं जो अकाली दल से तो नाराज हैं लेकिन हरियाणा के अरविंद केजरीवाल के साथ भी वे जाने के कम इच्छुक हैं. मालवा में अकाली दल तीसरे नंबर पर नजर आ रही है. आम आदमी पार्टी यहां से दो तिहाई या अधिक सीटें कब्जाने की कोशिश में है. 
 
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(प्रकाश सिंह बादल (दाएं) अपने राजनीतिक जीवन में सबसे कड़े मुकाबले का सामना कर रहे हैं.)

फिर सवाल आता है कि क्या आम आदमी पार्टी के पास इसी तरह की पकड़ 54 सीटों वाले दो अन्य क्षेत्रों दोआब और माझा में है या नहीं. ब्यास और सतलज नदी के बीच फैले दोआब क्षेत्र में मालवा के जैसे ही अनुसूचित जातियों का वोट ज्यादा है. निचले तबके के वोट बैंक ने 2014 में आम आदमी पार्टी का साथ नहीं दिया था. क्या इस बार इस समीकरण में बदलाव आएगा? अगर ऐसा हुआ तो आम आदमी पार्टी के लिए जीत आसान हो जाएगी क्योंकि माझा में कांग्रेस मजबूत नजर आ रही है. उसी तरह से कांग्रेस को दोआब क्षेत्र में अपनी पकड़ को बनाए रखना होगा.

अकाली दल को तीसरी बार सत्ता मिलने के अवसर पर चर्चा किए बिना पंजाब चुनाव पर बात करना अजीब लगेगा लेकिन लोग दो पार्टियों के बीच जंग होने की बात कह रहे हैं. वो है झाड़ू और हाथ. यहां तक कि अकाली दल के समर्थक भी इस बात को स्वीकर रह रहे हैं. मुख्यमंत्री बादल के गांव में उनके घर के बाहर पहले फेज की वोटिंग से पूर्व सन्नाटा पसरा हुआ है.

वोटिंग के दिन जैसे-जैसे सूरज चढ़ेगा, क्या वैसे वैसे 'आप' की जीत का आभास कराएगा? तीन स्थितियां बन सकती हैं : आम आदमी पार्टी जीत सकती है, त्रिशुंकु विधानसभा बन सकती है, या कांग्रेस जीत सकती है. पहली स्थिति की संभावना सबसे ज्यादा है. दूसरी स्थिति संभावित है और तीसरी स्थिति बिल्कुल अलग हो सकती है. नि:संदेह ऐसा हो सकता है. 2012 में हर कोई कांग्रेस के जीतने की बात कह रहा था लेकिन बादल ने पूरा खेल बदलकर चुनावी विश्लेषकों को चकमा दे दिया था.

(अनुवाद : चतुरेश तिवारी)


(आईपी बाजपेयी एनडीटीवी के वरिष्‍ठ सलाहकार हैं)

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