19 दिसंबर को रिलीज हो रही ‘रात अकेली है: द बंसल मर्डर्स' — जो 2020 में आई फिल्म ‘रात अकेली है' का सीक्वल है, एक बार फिर अपनी स्टारकास्ट के कारण चर्चा में है. फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में नजर आएँगे नवाजुद्दीन सिद्दीकी, चित्रांगदा सिंह और राधिका आप्टे. फिल्म का निर्देशन हनी त्रेहान ने किया है, जिन्होंने पहली किस्त ‘रात अकेली है' को भी डायरेक्ट किया था. नवाज और चित्रांगदा दोनों ही ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अपनी पहचान मसौदे वाले, गहराई से बुने हुए सिनेमा से बनाई. इनमें से कई फिल्में कमर्शियल सिनेमा की श्रेणी में नहीं आतीं. चित्रांगदा सिंह, जिन्होंने ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी' से फिल्मों में कदम रखा, लंबे समय तक संजीदा और ऑफबीट सिनेमा की प्रतिनिधि रहीं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने कमर्शियल फिल्मों में भी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई है. हाल ही में वे ‘हाउसफुल 5' में नजर आईं और जल्द ही सलमान खान के साथ ‘बैटल ऑफ गलवान' में भी दिखेंगी.
लेकिन जब करियर की शुरुआत में ही उनकी तुलना स्मिता पाटिल से होने लगी थी, तब ऐसा क्या था जिसने उन्हें कमर्शियल सिनेमा से दूरी बनाए रखने पर मजबूर किया? एनडीटीवी से बातचीत में चित्रांगदा ने इसका साफ और ईमानदार जवाब दिया और ये भी माना कि कमर्शियल सिनेमा एक अभिनेता की पेशेवर वैल्यू बढ़ाता है.
चित्रांगदा ने कहा, “सच बताऊं, मुझे लगता है जब आप कमर्शियल काम करते हैं तो आपकी ऑडियंस बढ़ती है. कमर्शियली आपकी वैल्यू एक एक्टर के रूप में बेहतर होती है. लेकिन अगर बात सिर्फ परफॉर्मेंस की हो… आप इसे मसौदे वाला सिनेमा कह लें या कुछ भी, वही काम आपको एक ऐक्टर के तौर पर जिंदा रखता है. मेरे लिए जो चीज काम आई, वो ये कि मैंने कम काम किया, लेकिन अच्छा काम किया. इसलिए लोग मुझे भूले नहीं. आज भी इंडस्ट्री में लोग मेरे साथ काम करना चाहते हैं, वो इसलिए क्योंकि वो काम अच्छा था, चाहे कमर्शियल हो या न हो. मुझे नहीं लगता कि कमर्शियल सिनेमा आपको शेल्फ लाइफ देता है. परफॉर्मेंस-बेस्ड काम ही आपको लंबे समय तक जिंदा रखता है एक कलाकार के तौर पर. दोनों जरूरी हैं… और शायद बिना कोशिश के ही मैं दोनों तरह की फिल्मों में फिट हो गई.”
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