उत्तर प्रदेश में कैबिनेट की एक के बाद एक बैठकों का सिलसिला चल पड़ा है, और ताजातरीन बैठक में ज़्यादा बिजली, आलू किसानों से 487 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरकारी खरीद, गन्ना किसानों को जल्द भुगतान और सड़कों के गड्ढे भरने के काम की समय सीमा का ऐलान हो गया है. यानी भावनात्मक मुद्दों के अलावा जनता के सीधे सरोकार के मुद्दों पर भी नई सरकार सक्रिय हो गई दिखती है, इसीलिए कैबिनेट के फैसलों का आगा-पीछा देखने का यह सही मौका है.
क्या थीं प्राथमिकताएं...?
यह सिर्फ आज की बात नहीं है, बल्कि हमेशा से ही जनता अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिहाज़ से किसी भी सरकार से तीन न्यूनतम अपेक्षाएं रखती है, बिजली, सड़क और पानी. कैबिनेट की नई बैठक में बिजली की सप्लाई बेहतर करने का आश्वासन है. सड़कों के सभी गड्ढे भरने की समयसीमा का ऐलान है, लेकिन अभी पानी के बेहतर इंतज़ाम की बात नहीं हुई है, जबकि गर्मियों का यह महीना पानी के लिहाज़ से ही सबसे ज़्यादा संकट वाला समय है. हो सकता है, प्रदेश सरकार को जल प्रबंधन का यह काम भारी-भरकम लगा हो और इस बारे में बाद में सोचने का फैसला किया हो, लेकिन इस बारे में सरकार को जल्द ही ऐलान करने होंगे. खासतौर पर बुंदेलखंड के लिए अलग से इंतज़ाम के बारे में तुरंत ही कुछ करना होगा. वैसे तो इस बार देश में सामान्य वर्षा हुई है, लेकिन वर्षा जल के भंडारण के मामले में प्रदेश निश्चिंत नहीं हो पाया है, और कई जिलों में अब भी पीने के पानी तक का संकट हो जाता है.
बिजली पर नए ऐलानों के मायने...
उत्तर प्रदेश में बिजली की हालत में काफी सुधार की चर्चा बहुत पहले से हो रही है. पिछले साल उत्तर प्रदेश में पर्याप्त बिजली के दावे करने के पीछे भले ही यह तर्क दिया जाता रहा हो कि चुनाव के ऐन पहले कोई भी सरकार ऐसे कामों पर पूरा ज़ोर लगा देती है, लेकिन गांवों और छोटे कस्बों में बिजली कटौती की खबरें पिछली गर्मियों में जोर-शोर से छापी गई थीं. चूंकि वह चुनाव के पहले वाली गर्मियां थीं, सो विपक्ष और मीडिया को बार-बार बिजली कटौती का ज़िक्र करना ही था. लिहाज़ा नई सरकार को आते ही अब बिजली के मामले में सुधार के बारे में ऐलान करना स्वाभाविक है. हालांकि यह भी एक हकीकत है कि उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण प्रणाली के कमज़ोर रखरखाव के कारण निर्बाध बिजली सप्लाई में हमेशा से ही खासी परेशानी आती है. दो-चार महीनों में आधारभूत ढांचे का यह भारी-भरकम काम हो पाना आसान नहीं है, सो, सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि पर्याप्त बिजली उपलब्ध होने के बावजूद वह अपने फैसले को क्रियान्वित होते साबित कैसे कर पाएगी.
गड्ढे भरने का रोचक फैसला...
सड़कों का रखरखाव एक नियमित और रोज़मर्रा का काम है. इस काम की समयसीमा का ऐलान करना और इस फैसले का ज़रूरत से ज़्यादा प्रचार अनोखी बात है. इतना ही नहीं, देखने में यह काम कितना भी छोटा लगता हो, लेकिन यह दावा करना कि प्रदेश की सड़कों के सारे गड्ढे भर दिए जाएंगे, कुछ ज़्यादा ही उत्साह में कही बात लगती है, क्योंकि एक गड्ढे को भरने के फौरन बाद ही उसके उधड़ जाने की काफी आशंका रहती है. इसके अलावा हर जगह अनुमति से ज़्यादा वजन के वाहन सड़कों पर चलने के कारण सड़कें रोज़-रोज़ टूटती ही हैं. इस तरह किसी निश्चित दिन तक प्रदेश को गड्ढामुक्त करने का लक्ष्य हासिल करने लायक नहीं दिखता.
बेरोज़गारी से निपटना है बड़ा काम...
इसमें कोई शक नहीं कि उत्तर प्रदेश में पुरानी सरकार बेरोज़गारी के मामले में ज़्यादा कुछ नहीं कर पाई थी. पुरानी सरकार का दावा ज़रूर था कि उसके नेता की छवि एक युवा नेतृत्व की है, लेकिन देश की तरह उत्तर प्रदेश के युवा भी बेरोज़गारी को लेकर बेचैन और परेशान दिखते थे. ज़ाहिर है, नई सरकार के सामने भी यही बेरोज़गार युवा वर्ग बड़ी उम्मीदें लिए खड़ा है. वैसे प्रदेश सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक में उद्योग-धंधों के बारे में चर्चा तो हुई थी, लेकिन बेरोज़गारी के बारे में बिजली और गड्ढों को भरने जैसे निश्चित ऐलान नहीं हुए थे. सो, अगले फैसलों में सरकार से सबसे ज़्यादा दरकार इसी बात की होगी कि वह प्रदेश में बेरोज़गारी से निपटने का काम सबसे पहले करे. यही काम गेम चेंजर साबित हो सकता है.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
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This Article is From Apr 12, 2017
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Sudhir Jain
- ब्लॉग,
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Updated:अप्रैल 12, 2017 10:33 am IST
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Published On अप्रैल 12, 2017 10:33 am IST
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Last Updated On अप्रैल 12, 2017 10:33 am IST
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