अपने नामांकन के लिए घर से निकलने से पहले अरविंद केजरीवाल के ट्वीट से हंगामा हो गया है। हंगामा का मतलब चुनावी चकल्लस करने वालों को मज़ा आने लगा है। केजरीवाल ने ट्वीट कर किरण बेदी से कहा है कि मैं किरण बेदी को बहस के लिए चुनौती देता हूं जिसे कोई तटस्थ संचालित करे और सभी टीवी चैनल दिखायें। अगर ऐसा हुआ तो अमरीका की तरह भारत के चुनाव को बनाने का सपना देखने वालों की मुराद पूरी हो जाएगी। हर बार बहस की बात होती है और हर बार बात ही रह जाती है। हमारे दलों ने अमरीकी चुनाव की सारी नकल कर ली बस बहस के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाये।
ट्वीटर पर किरण बेदी और केजरीवाल के समर्थकों के बीच बहस के औचित्य को लेकर खूब मार-काट मची है। दोनों खेमे के लोग एक-दूसरे को ललकार रहे हैं। कोई कह रहा है कि किरण बेदी बहस के लिए तैयार हो जाएंगी तो दूसरा कह रहा है कि मैदान छोड़कर भाग जाएंगी। इस बहस में मैं भी कूद पड़ा कि अगर दोनों पक्षों को मंज़ूर हो तो मैं इसकी एकरिंग करने के लिए तैयार हूं। यह मेरी भी तटस्थता का इम्तिहान होगा कि मैं कितना बराबरी से दोनों पक्षों को बात कहने के लिए मौका देता हूं। यह भी कम बड़ा जोखिम नहीं होगा। जब दोनों के समर्थक एक एक बात को तराजू पर तौलते रहेंगे कि मैं उसकी तरफ झुका या इसकी तरफ झुका। जो भी है इस इम्तिहान में खुद को दांव पर लगाकर मैं भी थोड़े समय के लिए रोमांचित हो गया। खैर, कौन वो तटस्थ होगा इसका फैसला तो अरविंद और किरण को ही मिलकर करना चाहिए।
क्या अरविंद और किरण में बहस होनी चाहिए। अगर दिल्ली जैसे साक्षर राज्य में बहस नहीं हो सकती तो कहां होगी। कब होगी। दोनों एक अलग गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं। दोनों आज की राजनीतिक प्रणाली के आलोचक रहे हैं। यह सही है कि दांव अरविंद का है तो किरण स्वीकार करने में हिचकेंगी, लेकिन राजनीति में यह कोई बड़ी बात नहीं है। किरण बेदी भी स्वीकार कर केजरीवाल को मात दे सकती हैं। अगर बहस होगी तो हम इस राजनीति को नए सिरे से देख सकेंगे। नेतृत्व की तार्कित और बौद्धिक क्षमता को परख सकेंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक रोमांचक मौका होगा जिसे दिल्ली वालों को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। जब विधानसभा में आमने-सामने हो सकती हैं तो पहले क्यों नहीं हो सकती है।
अरविंद केजरीवाल का यह पुराना नुस्खा है कि बहस के लिए आमने-सामने हो जाइये। पिछले चुनाव में भी उन्होंने इसकी चुनौती दी थी। लोकसभा में भी नरेंद्र मोदी को एक तरह से ललकारते ही थे मगर बहस नहीं हुई। कांग्रेस कांप गई होगी कि राहुल और नरेंद्र मोदी का सोच कर ही। लेकिन दिल्ली में अरविंद और किरण इस मामले में बराबर हैं। उन्हें एक दूसरे से भय खाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
मुझे लगता है कि किरण बेदी को मान जाना चाहिए। उन्होंने हमारी संवाददाता केतकी आंग्रे से कहा है कि मैं बहस में यकीन नहीं करती हूं, करके दिखाने में रखती हूं। बहस विधानसभा के भीतर होती है। उन्होंने यह भी कहा है कि 500 चैनल हैं किस पर डिबेट करेंगे और किसको चुनेंगे। लेकिन अरविंद ने तो कह दिया है कि कोई तटस्थ करे और सारे चैनल दिखायें। मुझे नहीं लगता कि चैनलों को इससे दिकक्त होनी चाहिए। नेताओं की एक रैली को एक ही समय पर चैनल दिखाते तो हैं ही। कुमार विश्वास ने भी किरण बेदी का एक पुराना ट्वीट निकाल कर ट्वीट किया है। किरण बेदी ने ओबामा और रूमनी की बहस देखते हुए ट्वीट किया था और कहा था कि बहस देखने से मत चूकिये।
फिर भी किरण बेदी का यह कहना कि बहस सिर्फ विधानसभा के भीतर होती है, सही नहीं है। लोकतंत्र में असली बहस जनता के बीच होती है। जनता के आमने-सामने होती है, एक दूसरे की तरफ पीठ करके चुनौती देने से ही लोकतंत्र महान नहीं हो जाता। आमने-सामने आकर उसका और विस्तार होता है। फिर भी बहस की चुनौती स्वीकार करना एक बड़ा रणनीतिक फैसला भी है। केजरीवाल ने भी किसी रणनीति के तहत ही चुनौती दी होगी। इसी बहाने आज टीवी और सोशल मीडिया का स्पेस उनके नाम हो सकता है। पर यह सच है कि हमारे देश में चुनाव टीवी और ट्वीटर में ढलता जा रहा है। सब कुछ टीवी के लिए हो रहा है। टीवी के लिए ही दिखने वाला चेहरा लाया जाता है, नहीं दिखने लायक चेहरा राजनीति में पचास साल लगाकर भी रातों रात गायब कर दिया जाता है। इस लिहाज़ से किरण बेदी के पास मना करने का कोई औचित्य नहीं है।
बहस की चुनौती स्वीकार कर वे अपने कार्यकर्ताओं में गहरी पैठ बना सकेंगी। ये बहस उन्हें कहीं भी पहुंचा सकती है। हो सकता है कि किरण बेदी स्वीकार भी कर लें, लेकिन सोशल मीडिया और लोगों में यह दिलचस्पी तो बढ़ ही गई है कि क्या वे स्वीकार करेंगी। क्या अरविंद केजरीवाल बनाम किरण बेदी के बीच बहस होगी। अरविंद केजरवाल ने किरण बेदी से ट्वीटर पर ब्लॉक हटा लेने की गुज़ारिश की है। केजरीवाल ने कहा कि किरण बेदी ने उन्हें ब्लॉक कर दिया था।
किरण बेदी ने भी हमारी संवादताता अदिति राजपूत से कहा है कि केजरीवाल को उनके अराजक व्यवहार की वजह से बहुत पहले ही ब्लॉक कर दिया था। यह सब चलता रहेगा, लेकिन बहस की मांग में एक रोमांच तो है ही। देखते हैं क्या होता है। आप क्या कहते हैं?
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